आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड

श्रीराम का शृंगवेरपुर पहुँचना, निषाद के द्वारा सेवा



दो०- राम दरस हित नेम ब्रत, लगे करन नर नारि।
मनहुँ कोक कोकी कमल, दीन बिहीन तमारि॥८६॥


 [सब] स्त्री-पुरुष श्रीरामचन्द्रजी के दर्शनके लिये नियम और व्रत करने लगे और ऐसे दुःखी हो गये जैसे चकवा, चकवी और कमल सूर्यके बिना दीन हो जाते हैं।। ८६॥
 
सीता सचिव सहित दोउ भाई।
संगबेरपुर पहुँचे जाई॥
उतरे राम देवसरि देखी।
कीन्ह दंडवत हरषु बिसेषी॥

 
सीताजी और मन्त्रीसहित दोनों भाई शृंगवेरपुर जा पहुंचे। वहाँ गङ्गाजीको देखकर श्रीरामजी रथ से उतर पड़े और बड़े हर्षके साथ उन्होंने दण्डवत् की॥१॥

लखन सचिवँ सियँ किए प्रनामा।
सबहि सहित सुखु पायउ रामा।
गंग सकल मुद मंगल मूला।
सब सुख करनि हरनि सब सूला॥


लक्ष्मणजी, सुमन्त्र और सीताजी ने भी प्रणाम किया। सबके साथ श्रीरामचन्द्रजी ने सुख पाया। गङ्गाजी समस्त आनन्द-मङ्गलों की मूल हैं। वे सब सुखों की करनेवाली और सब पीड़ाओं की हरने वाली हैं॥२॥

कहि कहि कोटिक कथा प्रसंगा।
रामु बिलोकहिं गंग तरंगा।
सचिवहि अनुजहि प्रियहि सुनाई।
विबुध नदी महिमा अधिकाई॥

अनेक कथा-प्रसङ्ग कहते हुए श्रीरामजी गङ्गाजी की तरङ्गों को देख रहे हैं। उन्होंने मन्त्री को, छोटे भाई लक्ष्मणजी को और प्रिया सीताजी को देवनदी गङ्गाजी की बड़ी महिमा सुनायी॥३॥

मजनु कीन्ह पंथ श्रम गयऊ।
सुचि जलु फिअत मुदित मन भयऊ॥
सुमिरत जाहि मिटइ श्रम भारू।
तेहि श्रम यह लौकिक व्यवहारू॥

इसके बाद सबने स्नान किया, जिससे मार्ग का सारा श्रम (थकावट) दूर हो गया और पवित्र जल पीते ही मन प्रसन्न हो गया। जिनके स्मरणमात्र से [बार-बार जन्मने और मरने का] महान् श्रम मिट जाता है, उनको श्रम' होना–यह केवल लौकिक व्यवहार (नरलीला) है॥४॥

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    अनुक्रम

  1. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
  2. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
  3. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
  4. अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
  5. अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
  6. अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
  7. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
  8. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
  9. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
  10. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
  11. अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
  12. अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
  13. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
  14. अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
  15. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
  16. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
  17. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
  18. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
  19. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
  20. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
  21. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
  22. अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
  23. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
  24. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
  25. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
  26. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
  27. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
  28. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
  29. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का सहमना

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