आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड


दो०- सुद्ध सच्चिदानंदमय, कंद भानुकुल केतु।
चरित करत नर अनुहरत, संसृति सागर सेतु॥८७॥

शुद्ध (प्रकृतिजन्य त्रिगुणों से रहित, मायातीत दिव्य मङ्गलविग्रह) सच्चिदानन्द कन्दस्वरूप सूर्यकुलके ध्वजारूप भगवान् श्रीरामचन्द्रजी मनुष्यों के सदृश ऐसे चरित्र करते हैं जो संसाररूपी समुद्र के पार उतरने के लिये पुलके समान हैं॥ ८७॥

यह सुधि गुहँ निषाद जब पाई।
मुदित लिए प्रिय बंधु बोलाई॥
लिए फल मूल भेंट भरि भारा।
मिलन चलेउ हियँ हरषु अपारा॥


जब निषादराज गुह ने यह खबर पायी, तब आनन्दित होकर उसने अपने प्रियजनों और भाई-बन्धुओं को बुला लिया और भेंट देने के लिये फल, मूल (कन्द) लेकर और उन्हें भारों (बहँगियों) में भरकर मिलने के लिये चला। उसके हृदयमें हर्ष का पार नहीं था॥१॥

करि दंडवत भेंट धरि आगें।
प्रभुहि बिलोकत अति अनुरागें।
सहज सनेह बिबस रघुराई।
पूँछी कुसल निकट बैठाई॥


दण्डवत् करके भेंट सामने रखकर वह अत्यन्त प्रेमसे प्रभुको देखने लगा। श्रीरघुनाथजीने स्वाभाविक स्नेहके वश होकर उसे अपने पास बैठाकर कुशल पूछी॥ २॥

नाथ कुसल पद पंकज देखें।
भयउँ भागभाजन जन लेखें॥
देव धरनि धनु धामु तुम्हारा।
मैं जनु नीचु सहित परिवारा॥


निषादराज ने उत्तर दिया-हे नाथ! आपके चरणकमल के दर्शन से ही कुशल है [आपके चरणारविन्दों के दर्शनकर] आज मैं भाग्यवान् पुरुषों की गिनती में आ गया। हे देव! यह पृथ्वी,धन और घर सब आपका है। मैं तो परिवारसहित आपका नीच सेवक हूँ॥३॥

कृपा करिअ पुर धारिअ पाऊ।
थापिय जनु सबु लोगु सिहाऊ॥
कहेहु सत्य सबु सखा सुजाना।
मोहि दीन्ह पितु आयसु आना।

अब कृपा करके पुर (श्रृंगवेरपुर) में पधारिये और इस दासकी प्रतिष्ठा बढ़ाइये, जिससे सब लोग मेरे भाग्यकी बड़ाई करें। श्रीरामचन्द्रजीने कहा-हे सुजान सखा ! तुमने जो कुछ कहा सब सत्य है। परन्तु पिताजीने मुझको और ही आज्ञा दी है।॥४॥

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    अनुक्रम

  1. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
  2. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
  3. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
  4. अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
  5. अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
  6. अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
  7. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
  8. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
  9. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
  10. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
  11. अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
  12. अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
  13. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
  14. अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
  15. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
  16. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
  17. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
  18. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
  19. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
  20. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
  21. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
  22. अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
  23. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
  24. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
  25. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
  26. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
  27. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
  28. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
  29. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का सहमना

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