आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- चंदु चवै बरु अनल कन, सुधा होइ बिषतूल।
सपनेहुँ कबहुँन करहिं किछु, भरतु राम प्रतिकूल॥४८॥
सपनेहुँ कबहुँन करहिं किछु, भरतु राम प्रतिकूल॥४८॥
चन्द्रमा चाहे [शीतल किरणोंकी जगह] आगकी चिनगारियाँ बरसाने लगे
और अमृत चाहे विषके समान हो जाय, परन्तु भरतजी स्वप्नमें भी कभी
श्रीरामचन्द्रजीके विरुद्ध कुछ नहीं करेंगे॥४८॥
एक बिधातहि दूषनु देहीं।
सुधा देखाइ दीन्ह बिषु जेहीं॥
खरभरु नगर सोचु सब काहू।
दुसह दाहु उर मिटा उछाहू॥
सुधा देखाइ दीन्ह बिषु जेहीं॥
खरभरु नगर सोचु सब काहू।
दुसह दाहु उर मिटा उछाहू॥
कोई एक विधाताको दोष देते हैं, जिसने अमृत दिखाकर विष दे दिया।
नगरभरमें खलबली मच गयी, सब किसीको सोच हो गया। हृदयमें दुःसह जलन हो गयी,
आनन्द-उत्साह मिट गया॥१॥
बिप्रबधू कुलमान्य जठेरी।
जे प्रिय परम कैकई केरी॥
लगीं देन सिख सीलु सराही।
बचन बानसम लागहिं ताही॥
जे प्रिय परम कैकई केरी॥
लगीं देन सिख सीलु सराही।
बचन बानसम लागहिं ताही॥
ब्राह्मणों की स्त्रियाँ, कुलकी माननीय बड़ी-बूढ़ी और जो
कैकेयी की परम प्रिय थीं, वे उसके शील की सराहना करके उसे सीख देने लगीं। पर
उसको उनके वचन बाण के समान लगते हैं॥२॥
भरतु न मोहि प्रिय राम समाना।
सदा कहहु यहु सबु जगु जाना॥
करहु राम पर सहज सनेहू।
केहिं अपराध आजु बनु देहू॥
सदा कहहु यहु सबु जगु जाना॥
करहु राम पर सहज सनेहू।
केहिं अपराध आजु बनु देहू॥
[वे कहती हैं-] तुम तो सदा कहा करती थीं कि श्रीरामचन्द्रके
समान मुझको भरत भी प्यारे नहीं हैं; इस बातको सारा जगत् जानता है।
श्रीरामचन्द्रजीपर तो तुम स्वाभाविक ही स्नेह करती रही हो। आज किस अपराधसे
उन्हें वन देती हो?॥३॥
कबहुँ न कियहु सवति आरेसू।
प्रीति प्रतीति जान सबु देसू॥
कौसल्याँ अब काह बिगारा।
तुम्ह जेहि लागि बज्र पुर पारा॥
प्रीति प्रतीति जान सबु देसू॥
कौसल्याँ अब काह बिगारा।
तुम्ह जेहि लागि बज्र पुर पारा॥
तुमने कभी सौतिया डाह नहीं किया। सारा देश तुम्हारे प्रेम और
विश्वास को जानता है। अब कौसल्या ने तुम्हारा कौन-सा बिगाड़ कर दिया, जिसके
कारण तुमने सारे नगरपर वज्र गिरा दिया।। ४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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