आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- काह न पावकु जारि सक, का न समुद्र समाइ।
का न करै अबला प्रबल, केहि जग कालु न खाइ॥४७॥
का न करै अबला प्रबल, केहि जग कालु न खाइ॥४७॥
आग क्या नहीं जला सकती! समुद्रमें क्या नहीं समा सकता! अबला
कहानेवाली प्रबल स्त्री [जाति] क्या नहीं कर सकती! और जगत् में काल किसको
नहीं खाता!॥४७॥
का सुनाइ बिधि काह सुनावा।
का देखाइ चह काह देखावा॥
एक कहहिं भल भूप न कीन्हा।
बरु बिचारि नहिं कुमतिहि दीन्हा॥
का देखाइ चह काह देखावा॥
एक कहहिं भल भूप न कीन्हा।
बरु बिचारि नहिं कुमतिहि दीन्हा॥
विधाताने क्या सुनाकर क्या सुना दिया और क्या दिखाकर अब वह क्या
दिखाना चाहता है! एक कहते हैं कि राजाने अच्छा नहीं किया, दुर्बुद्धि
कैकेयीको विचारकर वर नहीं दिया,॥१॥
जो हठि भयउ सकल दुख भाजनु।
अबला बिबस ग्यानु गुनु गा जनु॥
एक धरम परमिति पहिचाने।
नृपहिं दोसु नहिं देहिं सयाने॥
अबला बिबस ग्यानु गुनु गा जनु॥
एक धरम परमिति पहिचाने।
नृपहिं दोसु नहिं देहिं सयाने॥
जो हठ करके (कैकेयीकी बातको पूरा करने में अड़े रहकर) स्वयं सब
दुःखों के पात्र हो गये। स्त्रीके विशेष वश होनेके कारण मानो उनका ज्ञान और
गुण जाता रहा। एक (दूसरे) जो धर्म की मर्यादा को जानते हैं और सयाने हैं, वे
राजा को दोष नहीं देते॥२॥
सिबि दधीचि हरिचंद कहानी।
एक एक सन कहहिं बखानी॥
एक भरत कर संमत कहहीं।
एक उदास भायँ सुनि रहहीं।
एक एक सन कहहिं बखानी॥
एक भरत कर संमत कहहीं।
एक उदास भायँ सुनि रहहीं।
वे शिबि, दधीचि और हरिश्चन्द्र की कथा एक दूसरे से बखानकर कहते
हैं। कोई एक इसमें भरतजी की सम्मति बताते हैं। कोई एक सुनकर उदासीनभाव से रह
जाते हैं (कुछ बोलते नहीं)॥ ३॥
कान मूदि कर रद गहि जीहा।
एक कहहिं यह बात अलीहा॥
सुकृत जाहिं अस कहत तुम्हारे।
रामु भरत कहुँ प्रानपिआरे॥
एक कहहिं यह बात अलीहा॥
सुकृत जाहिं अस कहत तुम्हारे।
रामु भरत कहुँ प्रानपिआरे॥
कोई हाथों से कान मूंदकर और जीभको दाँतों तले दबाकर कहते हैं कि
यह बात झूठ है, ऐसी बात कहने से तुम्हारे पुण्य नष्ट हो जायेंगे। भरतजी को तो
श्रीरामचन्द्रजी प्राणों के समान प्यारे हैं॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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