आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड

लक्ष्मण निषाद संवाद, श्रीराम सीता से सुमन्त्र का संवाद, सुमन्त्र का लौटना



सोवत प्रभुहि निहारि निषादू।
भयउ प्रेम बस हृदयँ बिषादू॥
तनु पुलकित जलु लोचन बहई।
बचन सप्रेम लखन सन कहई।


प्रभुको जमीनपर सोते देखकर प्रेमवश निषादराजके हृदयमें विषाद हो आया। उसका शरीर पुलकित हो गया और नेत्रोंसे [प्रेमाश्रुओंका] जल बहने लगा। वह प्रेमसहित लक्ष्मणजी से वचन कहने लगा-॥३॥

भूपति भवन सुभायँ सुहावा।
सुरपति सदनु न पटतर पावा॥
मनिमय रचित चारु चौबारे।
जनु रतिपति निज हाथ सँवारे॥


महाराज दशरथजी का महल तो स्वभाव से ही सुन्दर है, इन्द्रभवन भी जिसकी समानता नहीं पा सकता। उसमें सुन्दर मणियों के रचे चौबारे (छतके ऊपर बँगले) हैं, जिन्हें मानो रति के पति कामदेव ने अपने ही हाथों सजाकर बनाया है;॥४॥
 

दो०- सुचि सुबिचित्र सुभोगमय, सुमन सुगंध सुबास।
पलँग मंजु मनि दीप जहँ, सब बिधि सकल सुपास॥९०॥


जो पवित्र, बड़े ही विलक्षण, सुन्दर भोगपदार्थों से पूर्ण और फूलोंकी सुगन्धसे सुवासित हैं; जहाँ सुन्दर पलँग और मणियोंके दीपक हैं तथा सब प्रकारका पूरा आराम है;॥९०॥

बिबिध बसन उपधान तुराईं।
छीर फेन मृदु बिसद सुहाई॥
तहँ सिय रामु सयन निसि करहीं।
निज छबि रति मनोज मदु हरहीं॥

जहाँ [ओढ़ने-बिछानेके] अनेकों वस्त्र, तकिये और गद्दे हैं, जो दूधके फेनके समान कोमल, निर्मल (उज्ज्वल) और सुन्दर हैं; वहाँ (उन चौबारोंमें) श्रीसीताजी और श्रीरामचन्द्रजी रात को सोया करते थे और अपनी शोभा से रति और कामदेव के गर्व को हरण करते थे॥१॥

ते सिय रामु साथरों सोए।
श्रमित बसन बिनु जाहिं न जोए॥
मातु पिता परिजन पुरबासी।
सखा सुसील दास अरु दासी॥

वही श्रीसीता और श्रीरामजी आज घास-फूस की साथरी पर थके हुए बिना वस्त्र के ही सोये हैं। ऐसी दशा में वे देखे नहीं जाते। माता, पिता, कुटुम्बी, पुरवासी (प्रजा), मित्र, अच्छे शील-स्वभाव के दास और दासियाँ ----॥२॥

जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाईं।
महि सोवत तेइ राम गोसाईं।
पिता जनक जग बिदित प्रभाऊ।
ससुर सुरेस सखा रघुराऊ॥


सब जिनकी अपने प्राणों की तरह सार-सँभार करते थे, वही प्रभु श्रीरामचन्द्रजी आज पृथ्वी पर सो रहे हैं। जिनके पिता जनकजी हैं, जिनका प्रभाव जगत् में प्रसिद्ध है; जिनके ससुर इन्द्रके मित्र रघुराज दशरथजी हैं,॥३॥

रामचंदु पति सो बैदेही।
सोवत महि बिधि बाम न केही।
सिय रघुबीर कि कानन जोगू।
करम प्रधान सत्य कह लोगू॥


और पति श्रीरामचन्द्रजी हैं, वही जानकीजी आज जमीनपर सो रही हैं। विधाता किसको प्रतिकूल नहीं होता! सीताजी और श्रीरामचन्द्रजी क्या वनके योग्य हैं ? लोग सच कहते हैं कि कर्म (भाग्य) ही प्रधान है।॥ ४॥

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    अनुक्रम

  1. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
  2. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
  3. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
  4. अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
  5. अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
  6. अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
  7. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
  8. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
  9. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
  10. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
  11. अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
  12. अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
  13. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
  14. अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
  15. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
  16. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
  17. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
  18. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
  19. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
  20. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
  21. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
  22. अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
  23. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
  24. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
  25. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
  26. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
  27. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
  28. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
  29. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का सहमना

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