आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- सिय सुमंत्र भ्राता सहित, कंद मूल फल खाइ।
सयन कीन्ह रघुबंसमनि, पाय पलोटत भाइ॥८९॥
सयन कीन्ह रघुबंसमनि, पाय पलोटत भाइ॥८९॥
सीताजी, सुमन्त्रजी और भाई लक्ष्मणजी सहित कन्द-मूल-फल खाकर रघुकुलमणि श्रीरामचन्द्रजी लेट गये। भाई लक्ष्मणजी उनके पैर दबाने लगे। ८९॥
उठे लखनु प्रभु सोवत जानी।
कहि सचिवहि सोवन मृदु बानी॥
कछुक दूरि सजि बान सरासन।
जागन लगे बैठि बीरासन॥
कहि सचिवहि सोवन मृदु बानी॥
कछुक दूरि सजि बान सरासन।
जागन लगे बैठि बीरासन॥
फिर प्रभु श्रीरामचन्द्रजीको सोते जानकर लक्ष्मणजी उठे और कोमल वाणीसे मन्त्री सुमन्त्रजीको सोनेके लिये कहकर वहाँ से कुछ दूरपर धनुष-बाण से सजकर, वीरासन से बैठकर जागने (पहरा देने) लगे॥१॥
गुहँ बोलाइ पाहरू प्रतीती।
ठावं ठाव राखे अति प्रीती॥
आपु लखन पहिं बैठेउ जाई।
कटि भाथी सर चाप चढ़ाई॥
ठावं ठाव राखे अति प्रीती॥
आपु लखन पहिं बैठेउ जाई।
कटि भाथी सर चाप चढ़ाई॥
गुहने विश्वासपात्र पहरेदारों को बुलाकर अत्यन्त प्रेमसे जगह-जगह नियुक्त कर दिया। और आप कमर में तरकस बाँधकर तथा धनुषपर बाण चढ़ाकर लक्ष्मणजी के पास जा बैठा॥२॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
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- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
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- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
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- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
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- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
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- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
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