आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- सजि बन साजु समाजु सबु, बनिता बंधु समेत।
बंदि बिप्र गुर चरन प्रभु, चले करि सबहि अचेत॥७९॥
बंदि बिप्र गुर चरन प्रभु, चले करि सबहि अचेत॥७९॥
वनका सब साज-सामान सजकर (वनके लिये आवश्यक वस्तुओंको साथ लेकर) श्रीरामचन्द्रजी स्त्री (श्रीसीताजी) और भाई (लक्ष्मणजी) सहित, ब्राह्मण और गुरुके चरणोंकी वन्दना करके सबको अचेत करके चले॥७९॥
निकसि बसिष्ठ द्वार भए ठाढ़े।
देखे लोग बिरह दव दाढ़े॥
कहि प्रिय बचन सकल समुझाए।
बिप्र बंद रघुबीर बोलाए॥
देखे लोग बिरह दव दाढ़े॥
कहि प्रिय बचन सकल समुझाए।
बिप्र बंद रघुबीर बोलाए॥
राजमहल से निकलकर श्रीरामचन्द्रजी वसिष्ठजी के दरवाजेपर जा खड़े हुए और देखा कि सब लोग विरह की अग्निमें जल रहे हैं। उन्होंने प्रिय वचन कहकर सबको समझाया। फिर श्रीरामचन्द्रजी ने ब्राह्मणों की मण्डलीको बुलाया॥१॥
गुर सन कहि बरषासन दीन्हे।
आदर दान बिनय बस कीन्हे॥
जाचक दान मान संतोषे।
मीत पुनीत प्रेम परितोषे॥
आदर दान बिनय बस कीन्हे॥
जाचक दान मान संतोषे।
मीत पुनीत प्रेम परितोषे॥
गुरुजीसे कहकर उन सबको वर्षाशन (वर्षभरका भोजन) दिये और आदर, दान तथा विनय से उन्हें वश में कर लिया। फिर याचकों को दान और मान देकर सन्तुष्ट किया तथा मित्रों को पवित्र प्रेमसे प्रसन्न किया॥२॥
दासी दास बोलाइ बहोरी।
गुरहि सौंपि बोले कर जोरी।
सब कै सार सँभार गोसाईं।
करबि जनक जननी की नाईं।
गुरहि सौंपि बोले कर जोरी।
सब कै सार सँभार गोसाईं।
करबि जनक जननी की नाईं।
फिर दास-दासियोंको बुलाकर उन्हें गुरुजीको सौंपकर, हाथ जोड़कर बोले हे गुसाईं ! इन सबकी माता-पिताके समान सार-सँभार (देख-रेख) करते रहियेगा॥३॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
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- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का सहमना
अनुक्रम
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