आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- बरष चारिदस बिपिन बसि, करि पितु बचन प्रमान।
आइ पाय पुनि देखिहउँ मनु, जनि करसि मलान॥५३॥
आइ पाय पुनि देखिहउँ मनु, जनि करसि मलान॥५३॥
चौदह वर्ष वनमें रहकर, पिताजीके वचनको प्रमाणित (सत्य) कर, फिर
लौटकर तेरे चरणोंका दर्शन करूँगा; तू मनको म्लान (दुःखी) न कर॥५३॥
बचन बिनीत मधुर रघुबर के।
सर सम लगे मातु उर करके।
सहमि सूखि सुनि सीतलि बानी।
जिमि जवास परें पावस पानी॥
सर सम लगे मातु उर करके।
सहमि सूखि सुनि सीतलि बानी।
जिमि जवास परें पावस पानी॥
रघुकुलमें श्रेष्ठ श्रीरामजीके ये बहुत ही नम्र और मीठे वचन
माताके हृदयमें बाणके समान लगे और कसकने लगे। उस शीतल वाणीको सुनकर कौसल्या
वैसे ही सहमकर सूख गयीं जैसे बरसात का पानी पड़ने से जवासा सूख जाता है।। १॥
कहि न जाइ कछु हृदय बिषादू।
मनहुँ मृगी सुनि केहरि नादू॥
नयन सजल तन थर थर काँपी।
माजहि खाइ मीन जनु मापी॥
मनहुँ मृगी सुनि केहरि नादू॥
नयन सजल तन थर थर काँपी।
माजहि खाइ मीन जनु मापी॥
हृदयका विषाद कुछ कहा नहीं जाता। मानो सिंहकी गर्जना सुनकर
हिरनी विकल हो गयी हो। नेत्रोंमें जल भर आया, शरीर थर-थर काँपने लगा। मानो
मछली माँजा (पहली वर्षाका फेन) खाकर बदहवास हो गयी हो!॥२॥
धरि धीरजु सुत बदनु निहारी।
गदगद बचन कहति महतारी॥
तात पितहि तुम्ह प्रान पिआरे।
देखि मुदित नित चरित तुम्हारे॥
गदगद बचन कहति महतारी॥
तात पितहि तुम्ह प्रान पिआरे।
देखि मुदित नित चरित तुम्हारे॥
धीरज धरकर, पुत्र का मुख देखकर माता गद्गद वचन कहने लगी-हे
तात! तुम तो पिता को प्राणों के समान प्रिय हो। तुम्हारे चरित्रों को देखकर
वे नित्य प्रसन्न होते थे॥३॥
राजु देन कहुँ सुभ दिन साधा।
कहेउ जान बन केहिं अपराधा॥
तात सुनावहु मोहि निदानू।
को दिनकर कुल भयउ कृसानू॥
कहेउ जान बन केहिं अपराधा॥
तात सुनावहु मोहि निदानू।
को दिनकर कुल भयउ कृसानू॥
राज्य देनेके लिये उन्होंने ही शुभ दिन सोधवाया था। फिर अब किस
अपराधसे वन जानेको कहा? हे तात! मुझे इसका कारण सुनाओ! सूर्यवंश [रूपी वन] को
जलानेके लिये अग्नि कौन हो गया?॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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