आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
श्रीराम-दशरथ-संवाद, अवध-वासियों का विषाद, कैकेयी को समझाना
दो०- गइ मुरुछा रामहि सुमिरि, नृप फिरि करवट लीन्ह।
सचिव राम आगमन कहि, बिनय समय सम कीन्ह॥४३॥
सचिव राम आगमन कहि, बिनय समय सम कीन्ह॥४३॥
इतने में राजा की मूर्छा दूर हुई, उन्होंने रामका स्मरण करके
('राम-राम!' कहकर) फिरकर करवट ली। मन्त्री ने श्रीरामचन्द्रजी का आना कहकर
समयानुकूल विनती की॥४३॥
अवनिप अकनि रामु पगु धारे।
धरि धीरजु तब नयन उघारे॥
सचिवँ सँभारि राउ बैठारे।
चरन परत नृप रामु निहारे॥
धरि धीरजु तब नयन उघारे॥
सचिवँ सँभारि राउ बैठारे।
चरन परत नृप रामु निहारे॥
जब राजाने सुना कि श्रीरामचन्द्र पधारे हैं तो उन्होंने धीरज
धरके नेत्र खोले। मन्त्रीने सँभालकर राजाको बैठाया। राजाने श्रीरामचन्द्रजीको
अपने चरणोंमें पड़ते (प्रणाम करते) देखा॥१॥
लिए सनेह बिकल उर लाई।
गै मनि मनहुँ फनिक फिरि पाई॥
रामहि चितइ रहेउ नरनाहू।
चला बिलोचन बारि प्रबाहू॥
गै मनि मनहुँ फनिक फिरि पाई॥
रामहि चितइ रहेउ नरनाहू।
चला बिलोचन बारि प्रबाहू॥
स्नेहसे विकल राजाने रामजीको हृदयसे लगा लिया। मानो साँपने
अपनी खोयी हुई मणि फिर पा ली हो। राजा दशरथजी श्रीरामजीको देखते ही रह गये।
उनके नेत्रोंसे आँसुओंकी धारा बह चली॥२॥
सोक बिबस कछु कहै न पारा।
हृदयँ लगावत बारहिं बारा॥
बिधिहि मनाव राउ मन माहीं।
जेहिं रघुनाथ न कानन जाहीं॥
हृदयँ लगावत बारहिं बारा॥
बिधिहि मनाव राउ मन माहीं।
जेहिं रघुनाथ न कानन जाहीं॥
शोक के विशेष वश होनेके कारण राजा कुछ कह नहीं सकते। वे
बार-बार श्रीरामचन्द्रजीको हृदयसे लगाते हैं और मनमें ब्रह्माजीको मनाते हैं
कि जिससे श्रीरघुनाथजी वनको न जायँ।। ३॥
सुमिरि महेसहि कहइ निहोरी।
बिनती सुनहु सदासिव मोरी।
आसुतोष तुम्ह अवढर दानी।
आरति हरहु दीन जनु जानी॥
बिनती सुनहु सदासिव मोरी।
आसुतोष तुम्ह अवढर दानी।
आरति हरहु दीन जनु जानी॥
फिर महादेवजीका स्मरण करके उनसे निहोरा करते हुए कहते हैं-हे
सदाशिव! आप मेरी विनती सुनिये। आप आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होनेवाले) और
अवढरदानी (मुँहमाँगा दे डालनेवाले) हैं। अत: मुझे अपना दीन सेवक जानकर मेरे
दुःखको दूर कीजिये॥ ४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
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- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
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- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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