आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- परी न राजहि नीद निसि, हेतु जान जगदीसु।
रामु रामु रटि भोरु किय, कहइ न मरमु महीसु॥३८॥
रामु रामु रटि भोरु किय, कहइ न मरमु महीसु॥३८॥
राजाको रातभर नींद नहीं आयी, इसका कारण जगदीश्वर ही जानें।
इन्होंने 'राम राम' रटकर सबेरा कर दिया, परन्तु इसका भेद राजा कुछ भी नहीं
बतलाते॥३८॥
आनहु रामहि बेगि बोलाई।
समाचार तब पूँछेहु आई।
चलेउ सुमंत्रु राय रुख जानी।
लखी कुचालि कीन्हि कछु रानी॥
समाचार तब पूँछेहु आई।
चलेउ सुमंत्रु राय रुख जानी।
लखी कुचालि कीन्हि कछु रानी॥
तुम जल्दी रामको बुला लाओ। तब आकर समाचार पूछना। राजाका रुख
जानकर सुमन्त्रजी चले, समझ गये कि रानीने कुछ कुचाल की है॥ १॥
सोच बिकल मग परइ न पाऊ।
रामहि बोलि कहिहि का राऊ।।
उर धरि धीरजु गयउ दुआरें।
पूँछहिं सकल देखि मनु मारें॥
रामहि बोलि कहिहि का राऊ।।
उर धरि धीरजु गयउ दुआरें।
पूँछहिं सकल देखि मनु मारें॥
सुमन्त्र सोचसे व्याकुल हैं, रास्तेपर पैर नहीं पड़ता (आगे बढ़ा
नहीं जाता), [सोचते हैं-] रामजीको बुलाकर राजा क्या कहेंगे? किसी तरह हृदयमें
धीरज धरकर वे द्वारपर गये। सब लोग उनको मनमारे (उदास) देखकर पूछने लगे॥ २॥
समाधानु करि सो सबही का।
गयउ जहाँ दिनकर कुल टीका।
राम सुमंत्रहि आवत देखा।
आदरु कीन्ह पिता सम लेखा।
गयउ जहाँ दिनकर कुल टीका।
राम सुमंत्रहि आवत देखा।
आदरु कीन्ह पिता सम लेखा।
सब लोगों का समाधान करके (किसी तरह समझा-बुझाकर) सुमन्त्र वहाँ
गये, जहाँ सूर्यकुलके तिलक श्रीरामचन्द्रजी थे। श्रीरामचन्द्रजीने सुमन्त्रको
आते देखा तो पिताके समान समझकर उनका आदर किया॥३॥
निरखि बदनु कहि भूप रजाई।
रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई॥
रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं।
देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं॥
रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई॥
रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं।
देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं॥
श्रीरामचन्द्रजीके मुखको देखकर और राजाकी आज्ञा सुनाकर वे
रघुकुलके दीपक श्रीरामचन्द्रजीको [अपने साथ] लिवा चले। श्रीरामचन्द्रजी
मन्त्रीके साथ बुरी तरहसे (बिना किसी लवाजमेके) जा रहे हैं, यह देखकर लोग
जहाँ-तहाँ विषाद कर रहे हैं॥ ४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का सहमना
अनुक्रम
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