आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
श्रीराम-कैकेयी-संवाद
दो०- जाइ दीख रघुबंसमनि, नरपति निपट कुसाजु।
सहमि परेउ लखि सिंघिनिहि, मनहुँ बृद्ध गजराजु॥३९॥
सहमि परेउ लखि सिंघिनिहि, मनहुँ बृद्ध गजराजु॥३९॥
रघुवंशमणि श्रीरामचन्द्रजीने जाकर देखा कि राजा अत्यन्त ही बुरी
हालतमें पड़े हैं, मानो सिंहनीको देखकर कोई बूढ़ा गजराज सहमकर गिर पड़ा
हो॥३९।।
सूखहिं अधर जरइ सबु अंगू।
मनहुँ दीन मनिहीन भुअंगू॥
सरुष समीप दीखि कैकेई।
मानहुँ मीचु घरी गनि लेई॥
मनहुँ दीन मनिहीन भुअंगू॥
सरुष समीप दीखि कैकेई।
मानहुँ मीचु घरी गनि लेई॥
राजाके ओठ सूख रहे हैं और सारा शरीर जल रहा है, मानो मणिके बिना
साँप दुःखी हो रहा हो। पास ही क्रोधसे भरी कैकेयीको देखा, मानो [साक्षात्]
मृत्यु ही बैठी [राजाके जीवनको अन्तिम] घड़ियाँ गिन रही हो॥१॥
करुनामय मृदु राम सुभाऊ।
प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ॥
तदपि धीर धरि समउ बिचारी।
पूँछी मधुर बचन महतारी॥
प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ॥
तदपि धीर धरि समउ बिचारी।
पूँछी मधुर बचन महतारी॥
श्रीरामचन्द्रजी का स्वभाव कोमल और करुणामय है। उन्होंने [अपने जीवनमें] पहली बार यह दुःख देखा; इससे पहले कभी उन्होंने दुःख सुना भी न था। तो भी समयका विचार करके हृदयमें धीरज धरकर उन्होंने मीठे वचनों से माता कैकेयीसे पूछा-॥ २॥
मोहि कहु मातु तात दुख कारन।
करिअ जतन जेहिं होइ निवारन।।
सुनहु राम सबु कारनु एहू।
राजहि तुम्ह पर बहुत सनेहू॥
करिअ जतन जेहिं होइ निवारन।।
सुनहु राम सबु कारनु एहू।
राजहि तुम्ह पर बहुत सनेहू॥
हे माता! मुझे पिताजीके दुःखका कारण कहो ताकि जिससे उसका निवारण हो (दुःख दूर हो) वह यत्न किया जाय। [कैकेयीने कहा-]हे राम! सुनो, सारा कारण यही है कि राजाका तुमपर बहुत स्नेह है॥ ३॥
देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना।
मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना॥
सो सुनि भयउ भूप उर सोचू।
छाड़ि न सकहिं तुम्हार सँकोचू॥
मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना॥
सो सुनि भयउ भूप उर सोचू।
छाड़ि न सकहिं तुम्हार सँकोचू॥
इन्होंने मुझे दो वरदान देनेको कहा था। मुझे जो कुछ अच्छा लगा,
वही मैंने माँगा। उसे सुनकर राजाके हृदयमें सोच हो गया; क्योंकि ये तुम्हारा
संकोच नहीं छोड़ सकते॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
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- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
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- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
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