आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- मरम बचन सुनि राउ कह, कहु कछु दोषु न तोर।
लागेउ तोहि पिसाच जिमि, कालु कहावत मोर॥३५॥
लागेउ तोहि पिसाच जिमि, कालु कहावत मोर॥३५॥
कैकेयीके मर्मभेदी वचन सुनकर राजाने कहा कि तू जो चाहे कह, तेरा
कुछ भी दोष नहीं है। मेरा काल तुझे मानो पिशाच होकर लग गया है, वही तुझसे यह
सब कहला रहा है॥ ३५॥
चहत न भरत भूपतहि भोरें।
बिधि बस कुमति बसी जिय तोरें।
सो सबु मोर पाप परिनामू।
भयउ कुठाहर जेहिं बिधि बामू॥
बिधि बस कुमति बसी जिय तोरें।
सो सबु मोर पाप परिनामू।
भयउ कुठाहर जेहिं बिधि बामू॥
भरत तो भूलकर भी राजपद नहीं चाहते। होनहारवश तेरे ही जीमें कुमति आ बसी। यह सब मेरे पापोंका परिणाम है, जिससे कुसमयमें (बेमौके) विधाता विपरीत हो गया॥१॥
सुबस बसिहि फिरि अवध सुहाई।
सब गुन धाम राम प्रभुताई॥
करिहहिं भाइ सकल सेवकाई।
होइहि तिहुँ पुर राम बड़ाई।
सब गुन धाम राम प्रभुताई॥
करिहहिं भाइ सकल सेवकाई।
होइहि तिहुँ पुर राम बड़ाई।
[तेरी उजाड़ी हुई] यह सुन्दर अयोध्या फिर भलीभाँति बसेगी और
समस्त गुणोंके धाम श्रीरामकी प्रभुता भी होगी। सब भाई उनकी सेवा करेंगे और
तीनों लोकोंमें श्रीरामकी बड़ाई होगी॥२॥
तोर कलंकु मोर पछिताऊ।
मुएहुँ न मिटिहि न जाइहि काऊ॥
अब तोहि नीक लाग करु सोई।
लोचन ओट बैठु मुहु गोई॥
मुएहुँ न मिटिहि न जाइहि काऊ॥
अब तोहि नीक लाग करु सोई।
लोचन ओट बैठु मुहु गोई॥
केवल तेरा कलंक और मेरा पछतावा मरनेपर भी नहीं मिटेगा, यह किसी
तरह नहीं जायगा। अब तुझे जो अच्छा लगे वही कर। मुँह छिपाकर मेरी आँखोंकी ओट
जा बैठ (अर्थात् मेरे सामनेसे हट जा, मुझे मुंह न दिखा)॥३॥
जब लगि जिऔं कहउँ कर जोरी।
तब लगि जनि कछु कहसि बहोरी॥
फिरि पछितैहसि अंत अभागी।
मारसि गाइ नहारू लागी॥
तब लगि जनि कछु कहसि बहोरी॥
फिरि पछितैहसि अंत अभागी।
मारसि गाइ नहारू लागी॥
मैं हाथ जोड़कर कहता हूँ कि जबतक मैं जीता रहूँ, तबतक फिर कुछ
न कहना (अर्थात् मुझसे न बोलना)। अरी अभागिनी! फिर तू अन्तमें पछतायेगी जो तू
नहारू (ताँत) के लिये गायको मार रही है॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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