आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- होत प्रातु मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं।
मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं॥३३॥
मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं॥३३॥
सबेरा होते ही मुनिका वेष धारणकर यदि राम वन को नहीं जाते, तो
हे राजन्! मनमें [निश्चय] समझ लीजिये कि मेरा मरना होगा और आपका अपयश!॥३३॥
अस कहि कुटिल भई उठि ठाढ़ी।
मानहुँ रोष तरंगिनि बाढ़ी।
पाप पहार प्रगट भइ सोई।
भरी क्रोध जल जाइ न जोई॥
मानहुँ रोष तरंगिनि बाढ़ी।
पाप पहार प्रगट भइ सोई।
भरी क्रोध जल जाइ न जोई॥
ऐसा कहकर कुटिल कैकेयी उठ खड़ी हुई, मानो क्रोधकी नदी उमड़ी
हो। वह नदी पापरूपी पहाड़से प्रकट हुई है और क्रोधरूपी जलसे भरी है; [ऐसी
भयानक है कि] देखी नहीं जाती!॥१॥
दोउ बर कूल कठिन हठ धारा।
भवँर कूबरी बचन प्रचारा॥
ढाहत भूपरूप तरु मूला।
चली बिपति बारिधि अनुकूला।
भवँर कूबरी बचन प्रचारा॥
ढाहत भूपरूप तरु मूला।
चली बिपति बारिधि अनुकूला।
दोनों वरदान उस नदीके दो किनारे हैं, कैकेयीका कठिन हठ ही उसकी
[तीव्र] धारा है और कुबरी (मन्थरा) के वचनोंकी प्रेरणा ही भँवर है। [वह
क्रोधरूपी नदी] राजा दशरथरूपी वृक्षको जड़-मूलसे ढहाती हुई विपत्तिरूपी
समुद्रकी ओर [सीधी] चली है॥२॥
लखी नरेस बात फुरि साँची।तिय मिस मीचु सीस पर नाची॥
गहि पद बिनय कीन्ह बैठारी। जनि दिनकर कुल होसि कुठारी॥
गहि पद बिनय कीन्ह बैठारी। जनि दिनकर कुल होसि कुठारी॥
राजाने समझ लिया कि बात सचमुच (वास्तवमें) सच्ची है, स्त्रीके
बहाने मेरी मृत्यु ही सिरपर नाच रही है। [तदनन्तर राजाने कैकेयीके] चरण
पकड़कर उसे बिठाकर विनती की कि तू सूर्यकुल [रूपी वृक्ष] के लिये कुल्हाड़ी
मत बन॥३॥
मागु माथ अबहीं देउँ तोही।
राम बिरहँ जनि मारसि मोही॥
राखु राम कहुँ जेहि तेहि भाँती।
नाहिं त जरिहि जनम भरि छाती॥
राम बिरहँ जनि मारसि मोही॥
राखु राम कहुँ जेहि तेहि भाँती।
नाहिं त जरिहि जनम भरि छाती॥
तू मेरा मस्तक माँग ले, मैं तुझे अभी दे दूँ। पर रामके विरह में
मुझे मत मार। जिस किसी प्रकारसे हो तू राम को रख ले। नहीं तो जन्मभर तेरी
छाती जलेगी॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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