आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- गूढ़ कपट प्रिय बचन सुनि तीय अधरबुधि रानि।
सुरमाया बस बैरिनिहि सुहृद जानि पतिआनि॥१६॥
सुरमाया बस बैरिनिहि सुहृद जानि पतिआनि॥१६॥
आधार रहित (अस्थिर) बुद्धि की स्त्री और देवताओं की माया के वश
में होने के कारण रहस्ययुक्त कपट भरे प्रिय वचनों को सुनकर रानी कैकेयी ने
बैरिन मन्थरा को अपनी सुहृद् (अहैतुक हित करने वाली) जानकर उसका विश्वास कर
लिया॥ १६॥
सादर पुनि पुनि पूँछति ओही।
सबरी गान मृगी जनु मोही॥
तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी।
रहसी चेरि घात जनु फाबी॥
सबरी गान मृगी जनु मोही॥
तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी।
रहसी चेरि घात जनु फाबी॥
बार-बार रानी उससे आदर के साथ पूछ रही हैं, मानो भीलनी के गान
से हिरनी मोहित हो गयी हो। जैसी भावी (होनहार) है, वैसी ही बुद्धि भी फिर
गयी। दासी अपना दाँव लगा जानकर हर्षित हुई।॥१॥
तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराऊँ।
धरेहु मोर घरफोरी नाऊँ॥
सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली।
अवध साढ़साती तब बोली॥
धरेहु मोर घरफोरी नाऊँ॥
सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली।
अवध साढ़साती तब बोली॥
तुम पूछती हो, किन्तु मैं कहते डरती हूँ। क्योंकि तुमने पहले ही
मेरा नाम घरफोड़ी रख दिया है। बहुत तरह से गढ़-छोलकर, खूब विश्वास जमाकर, तब
वह अयोध्या की साढ़ेसाती (शनि की साढ़े सात वर्षकी दशारूपी मन्थरा) बोली-॥२॥
प्रिय सिय रामु कहा तुम्ह रानी।
रामहि तुम्ह प्रिय सो फुरि बानी।।
रहा प्रथम अब ते दिन बीते।
समउ फिरें रिपु होहिं पिरीते॥
रामहि तुम्ह प्रिय सो फुरि बानी।।
रहा प्रथम अब ते दिन बीते।
समउ फिरें रिपु होहिं पिरीते॥
हे रानी! तुमने जो कहा कि मुझे सीता-राम प्रिय हैं और रामको तुम
प्रिय हो, सो यह बात सच्ची है। परन्तु यह बात पहले थी, वे दिन अब बीत गये।
समय फिर जानेपर मित्र भी शत्रु हो जाते हैं॥३॥
भानु कमल कुल पोषनिहारा।
बिनु जल जारि करइ सोइ छारा॥
जरि तुम्हारि चह सवति उखारी।
रूँधहु करि उपाउ बर बारी॥
बिनु जल जारि करइ सोइ छारा॥
जरि तुम्हारि चह सवति उखारी।
रूँधहु करि उपाउ बर बारी॥
सूर्य कमलके कुल का पालन करनेवाला है, पर बिना जलके वही सूर्य
उनको (कमलोंको) जलाकर भस्म कर देता है। सौत कौसल्या तुम्हारी जड़ उखाड़ना
चाहती है। अत: उपायरूपी श्रेष्ठ बाड़ (घेरा) लगाकर उसे रूँध दो (सुरक्षित कर
दो)॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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