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साधारण  : वि० [सं० साधारण, अव्य० स०—अण्] १. जैसा साधारणतः जब जगह पाया जाता अथवा होता हो। आम। (यूजुअल) २. जिसमें औरों की अपेक्षा कोई विशेषता न हो। (कॉमन) ३. प्रकार, प्रकृति, रूप आदि के विचार से जैसा सब जगह होता हो, वैसा। प्रकृत। सहज। ४. जिसमें कोई बहुत बड़ी उत्कृष्टता या विशेषता न हो, फिर भी जो अच्छे या बढ़िया से हलके दरजे का हो। मामूली। (आर्डिनरी) ५. जो प्रायः सभी लोगों के करने या समझने के योग्य हो। सरल। सहज। सुगम। ६. तुल्य। सदृश। समान। ७. दे० ‘सामान्य’। पुं० १. भावप्रकाश के अनुसार ऐसा प्रदेश जहाँ जंगल अधिक हों, रोग अधिक होते हों, और जाड़ा तथा गरमी भी अधिक पड़ती हो। २. उक्त प्रकार के देश का जल।
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साधारण गांधार  : पुं० [सं० कर्म० स०] संगीत में, एक प्रकार का विकृत स्वर जो वजिका श्रुति से आरम्भ होता है। इसमें तीन श्रुतियाँ होती हैं।
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साधारण धर्म  : पुं० [सं०] १. ऐसा कर्त्तव्य, कर्म या कार्य जो साधारणतः और समान रूप से सबके के लिए बना हो। २. ऐसी कर्तव्य, कर्म या धर्म जिसका विधान किसी वर्ग के सब लोगों के हुआ हो। ३. ऐसा गुण, तत्त्व या धर्म जो साधारणतः किसी प्रकार के सब पदार्थों आदि में समान रूप से पाया जाता हो। विशेष—साधारणीकरण ऐसे ही गुणों, तत्त्वों के आधार पर किया जाता है।
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साधारण निर्वाचन  : पुं० [सं०] वह निर्वाचन जिसमें हर चुनाव क्षेत्र से प्रतिनिधि चुने जाते हों। आम-चुनाव। (जनरल इलेक्शन)
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साधारण वाक्य  : पुं० [सं०] व्याकरण में, तीन प्रकार के वाक्यों में से पहला जो प्रायः बहुत छोटा होता है और जिसमें एक कर्ता और एक क्रिया (सकर्मक होने पर क्रिया के साथ कर्म भी) होती है। (वाक्य के शेष दो प्रकार मिश्र और संयुक्त कहलाते हैं)।
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साधारणतः  : अव्य० [सं०]=साधारणतया।
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साधारणतया  : अव्य० [सं० साधारण+तल्—टाप्-टा] साधारण रूप से। आमतौर पर। साधारणतः।
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साधारणता  : स्त्री० [सं० साधारण] साधारण होने की अवस्था, गुण धर्म या भाव।
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साधारणीकरण  : पुं० [सं०] [भू० कृ० साधारणीकृत] १. हमारे प्राचीन साहित्य में, रस-निष्पत्ति की वह स्थिति जिसमें दर्शक या पाठक कोई अभिनय देखकर या काव्य पढ़कर उससे तादात्मय स्थापित करता हुआ उसका पूरा-पूरा रसास्वादन करता है। विशेष—यह वही स्थिति है जिसमें दर्शक या पाठकों के मन में ‘मैं’ और ‘पर’ का भाव दूर हो जाता है और वह अभिनय या काव्य के पात्रों या भावों में विलीन होकर उनके साथ एकात्मता स्थापित कर लेता है। २. आज-कल एक ही प्रकार के बहुत से विशिष्ट गुणों, तत्त्वों आदि के आधार पर किसी विषय में कोई ऐसा साधारण नियम या सिद्धांत स्थिर करना जो उन सब गुणों या तत्त्वों पर समान रूप से प्रयुक्त हो सके। ३. किसी सामान्य गुण या धर्म के आधार पर अनेक गुणों, तत्त्वों आदि को एक तल रक एक वर्ग में लाना। गुणों आदि के आधार पर समानता निरूपित करना। (जेनरलाइज़ेशन)
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साधारण्य  : पुं० [सं० साधारण+ष्यञ्]=साधारणता।
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