शब्द का अर्थ
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शास :
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पुं० [सं०√शास् (अनुशासन करना)+घञ्] १. अनुशासन। २. प्रशंसा। स्तुति। |
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शासक :
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पुं० [सं०√शास् (अनुशासन करना)+ण्वुल्—अक] [स्त्री० शासिका] १. वह जो शासन करता हो। शासन कर्ता। २. किसी शासनिक इकाई का प्रधान अधिकारी। (हाकिम)। |
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शासन :
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पुं० [सं०√शास्+ल्युट-अन] १. ज्ञान-वृद्धि के लिए किसी को कुछ बतलाना, समझाना या सिखाना। २. किसी को इस प्रकार अपने अधिकार, नियंत्रण या वश में रखना कि वह आज्ञा, नियम आदि के विरुद्ध आचरण या व्यवहार न कर सके। ३. किसी देश, प्रान्त या स्थान पर नियंत्रण रखते हुए उसकी ऐसी व्यवस्था करना कि किसी प्रकार की गड़बड़ी या अराजकता न होने पाए। हुकूमत। सरकार (गवर्नमेंट)। ५. वह प्रमुख अधिकारी और उसके मुख्य सहायकों का वर्ग जो उक्त प्रकार की व्यवस्था करते हों। हुकूमत। (गवर्नमेंट) ६. आज्ञा। आदेश। हुकुम। ७. वह आज्ञा पत्र जिसमें किसी को प्रबंध या व्यवस्था करने का अधिकार या आदेश दिया गया हो। ८. कोई ऐसा पत्र जिस पर कोई निश्चय, प्रतिज्ञा या समझौता लिखा गया हो। जैसे—पट्टा, शर्तनामा आदि। ९. राजा या राज्य के द्वारा निर्वाह आदि के लिए दान की हुई भूमि। १॰. इन्द्रिय-निग्रह। ११. शास्त्र। १२. दंड। सजा। १३. कायदा। नियम। वि० दंड देने या नष्ट करनेवाला (यौ० के अन्त में) जैसे— (क) पाक शासन=पाक नामक असुर को मारनेवाला, अर्थात् इन्द्र। (ख) स्मर शासन=कामदेव का नाश करनेवाले, अर्थात् शिव। |
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शासन-कर :
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पुं० [सं०] गुप्त काल में वह अधिकारी जो राजा या शासन का आदेश लिखकर निम्न अधिकारियों के पास भेजता था। |
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शासन-कर्ता (तृ) :
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पुं० [सं० ष० त० स०] वह जो शासन करता हो। शासक। |
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शासन-तंत्र :
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पुं० [सं० ष० त० स०] १. वे सिद्धान्त जिनके अनुसार शासन होता या किया जाता हो। २. शासन करने के लिए होनेवाली व्यवस्था। |
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शासन-धर :
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पुं० [सं० ष० त० स०] १. शासक। २. राजदूत। |
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शासन-निकाय :
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पुं० [सं०] वह समिति या निकाय जो किसी संस्था की प्रशासनिक व्यवस्था करने के लिए और सब प्रकार से उस पर नियंत्रण रखने के लिए नियुक्त किया गया हो। शासी-निकाय। (गवर्निग बाड़ी)। |
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शासन-पत्र :
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पुं० [सं० ष० त०] सरकारी हुकुम—नामा। राज्यादेश। |
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शासन-प्रणाली :
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स्त्री० [सं० ष० त०] किसी देश या राज्य पर शासन करने की कोई विशिष्ट प्रणाली या ढंग। शासन-तंत्र। |
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शासन-वाहक :
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पुं० [सं० ष० त० स०] १. वह जो राजा की आज्ञा लोगों तक पहुँचाता हो। २. राजदूत। |
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शासन-शिला :
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स्त्री० [सं० ष० त०] वह शिला जिस पर कोई राजाज्ञा लिखी हो। वह पत्थर जिस पर किसी शासक की घोषणा, लेख आदि अंकित हो। |
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शासनहर :
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पुं० [सं० ष० त०]=शासन-वाहक। |
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शासनहारी (रिन) :
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पुं० [सं० शासनहारिन्]=शासन वाहक। |
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शासना :
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स्त्री० [सं०] दंड। सजा। |
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शासनिक :
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वि० [सं० शासन+ठक्-इक] १. शासन से संबंध रखनेवाला। २. सरकारी। राजकीय। ३. शासन-विभाग का। जैसे—शासनिक अधिकारी। |
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शासनी :
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स्त्री० [सं० शासन-ङीष्] धर्मोपदेश करनेवाली स्त्री। |
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शासनीय :
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वि० [सं०√शास्+अनीयर्] १. जिस पर शासन करना उचित हो। २. जिस पर शासन किया जा सके। ३. दंड पाने के योग्य। दंडनीय। ४. जिसमें सुधार करना हो या किया जा सके। |
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शासित :
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भू० कृ० [सं०√शास् (शासन करना)+क्त] [स्त्री० शासिता] १. (प्रदेश) जो शासन के अधीन हो। २. (व्यक्ति) जो नियन्त्रण में हो। ३. जिसे दंड दिया गया हो। दंडित। पुं० १. प्रजा। २. निग्रह। संयम। |
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शासी (सिन्) :
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वि० [सं०√शस् (शासन करना)+णिनि] शासन करनेवाला। |
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शासी निकाय :
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पुं० [सं० ष० त०] राज्य, संस्था आदि की व्यवस्था और शासन (प्रबंध) करनेवाले लोगों का वर्ग, निकाय या संघ। शासन-निकाय। (गवर्निग बॉडी)। |
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शास्ता (स्तृ) :
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पुं० [सं०√शास् (शासन करना)+तृच्] १. कोई ऐसा व्यक्ति जिसे किसी प्रकार का शासन करने का पूर्ण अधिकार हो। २. अधिनायक। तानाशाह। शासक। ३. राजा। ४. पिता। बाप। ५. गुरु। शिक्षक। ६. निरंकुश शासक। |
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शास्ति :
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स्त्री० [सं० शास्+ति० बाहु] १. शासन दंड। सजा। २. कोई ऐसी दंडात्मक क्रिया या कार्रवाई जो किसी पूर्ण स्वतन्त्र व्यक्ति राज्य संस्था आदि के साथ उसे ठीक रास्ते पर लाने के लिए की जाय। अनुशास्ति (सैन्कशन)। ४. अर्थदण्ड या जुरमाने से भिन्न वह अल्प धन जो अनुचित या नियम विरुद्ध कार्य करनेवाले से वसूल किया जाता हो। (पेनैलिटी) |
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शास्त्र :
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पुं० [सं०√शास्+ष्ट्रन्] [वि० शास्त्रीय] १. कोई ऐसी आज्ञा या आदेश जो किसी को नियम या विधान के अनुसार आचरण या व्यवहार करने के संबंध में दिया जाय। २. कोई ऐसा धर्मग्रन्थ जिसमें आचार, नीति आदि के नियमों का विधान किया गया हो और जिसे लोग पवित्र तथा पूज्य मानते हों। विशेष—हिन्दुओं में प्राचीन ऋषि-मुनियों के बनाये हुए बहुत से ऐसे ग्रन्थ जो लोक में ‘शास्त्र’ के नाम से प्रसिद्ध और मान्य हैं। पर मुख्य रूप से शास्त्र चौदह कहे गये हैं यथा—चार वेद, छः वेदांग, पुराण मात्र, आन्वीक्षिकी, मीमासा और स्मृति। इनके सिवा शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष और अलंकार शास्त्री की गणना भी शास्त्रों में होती है। ३. किसी कला, विद्या या विशिष्ट विषय से संबंध रखनेवाला ऐसा विवेचन अथवा विवेचनात्मक ग्रन्थ जिसमें उसके सभी अंगो, उपांगों प्रक्रियाओं आदि का वैज्ञानिक ढंग से वर्णन और विश्लेषण हो (सायन्स) विशेष—‘विज्ञान’ और ‘शास्त्र’ में मुख्य अन्तर यह है कि विज्ञान तो उन तथ्यों पर आश्रित होता जो हमें अपने अनुभवों निरीक्षणों आदि के आधार पर प्राप्त होते हैं, परन्तु उन आध्यात्मिक तथ्यों का विवेचनात्मक स्वरूप है जो हमें उक्त प्रकार के अनुभवों निरीक्षणों आदि का अनुशीलन या मनन करने पर विदित होते हैं। इसके अतिरिक्त विज्ञान का क्षेत्र तो वही तक परिमित रहता है, जहाँ तक वस्तुओं का संबंध प्रकृति से होता है, परन्तु शास्त्र का क्षेत्र इसके उपरांत और आगे विस्तृत होकर उस सीमा की ओर बढ़ता है जहाँ उसका संबंध हमारी आत्मा और मनोभावों से स्थापित होता है। जैसे—ज्योतिष शास्त्र, शरीर शास्त्र आदि। ४. वे सब बातें जिनका ज्ञान पढ़ या सीखकर प्राप्त किया जाय। ५. किसी गंभीर विषय का किसी के द्वारा प्रतिपादित किया हुआ मत या सिद्धान्त। |
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शास्त्र-तत्त्वज्ञ :
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पुं० [सं० ष० त० स०] गणक। ज्योतिषी। |
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शास्त्रकार :
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पुं० [सं० शस्त्र√कृ (करना)+अण्, उपप० स०] शास्त्र विशेषतः धर्मशास्त्र की रचना करनेवाला। |
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शास्त्रकृत् :
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पुं० [सं० शास्त्र√कृ (करना)+क्विप्-तुक्] १. शास्त्र बनाने वाले अर्थात् ऋषि-मुनि। २. आचार्य। |
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शास्त्रचक्षु (स्) :
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पुं० [सं० ष० त०] १. शास्त्र की आँख, अर्थात् ज्योतिष। २. पंडित। विद्वान। |
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शास्त्रज्ञ :
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पुं० [सं० शास्त्र√ज्ञा (जानना)+क] १. शास्त्र का ज्ञाता। २. धर्मशास्त्रों का आचार्य। |
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शास्त्रत्व :
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पुं० [सं० शास्त्र+त्व] शास्त्र का धर्म या भाव। |
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शास्त्रदर्शी :
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पुं० [सं० शास्त्र√दृश् (देकना)+णिनि]=शास्त्रज्ञ। |
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शास्त्रशिल्पी (ल्पिन्) :
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पुं० [सं० शास्त्रशिल्प+इनि] १. काश्मीर देश। २. जमीन। भूमि। |
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शास्त्राचरण :
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पुं० [सं० शास्त्रआ√चर् (करना)+णिच्-ल्यु-अन] १. शास्त्रों का अध्ययन और मनन। २. शास्त्र में बतलाई हुई बातों का आचरण और पालन। |
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शास्त्रार्थ :
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पुं० [सं० ष० त०] १. शास्त्र का अर्थ। २. शास्त्र के ठीक अर्थ तक पहुँचने के लिए होनेवाला तर्क-वितर्क या विवाद। ३. किसी प्रकार का तात्त्विक वाद-विवाद। |
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शास्त्री (स्त्रिन्) :
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पुं० [सं० शास्त्र+इनि] १. वह जो शास्त्रों आदि का अच्छा ज्ञाता हो। शास्त्रज्ञ। २. धर्मशास्त्र का अच्छा ज्ञाता या पंडित। ३. आज-कल एक प्रकार की उपाधि जो कुछ विशिष्ट परीक्षाओं में उत्तीर्ण होनेवाले व्यक्तियों को मिलती है। |
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शास्त्रीकरण :
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पुं० [सं० शास्त्र+च्वि√कृ+ल्युट-अन-दीर्घ] किसी विषय की सब बातें व्यवस्थित रूप से एकत्र करके और शास्त्रीय ढंग से उनका विवेचन करके उसे शास्त्र का रूप देना। |
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शास्त्रीय :
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वि० [सं० शास्त्र+छ-ईय] १. शास्त्र-संबंधी। शास्त्र का। २. शास्त्र में बतलाये हुए ढंग या प्रकार का। जैसे—शास्त्रीय संगीत। ३. शास्त्रीय ज्ञान अथवा उसके शिक्षण से संबंध रखनेवाला। शैक्षणिक। ४. शास्त्रीय ज्ञान पर आश्रित। (एकेडेमिक)। जैसे—शास्त्रीय विवेचन। |
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शास्त्रोक्त :
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भू० कृ० [सं० स० त०] शास्त्र में कहा हुआ। |
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शास्य :
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वि० [सं०√शास् (शासन करना)+ण्यत्] १. जिसका शासन किया जा सकता हो या किया जाने को हो। २. सुधारे जाने के योग्य। ३. दंडित होने के योग्य। |
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