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विजय  : स्त्री० [सं० वि०√जि+अच्] १. शत्रु को परास्त करने पर होनेवाली जीत। २. प्रतियोगी या प्रतिस्पर्धा को हराकर सिद्ध की जानेवाली श्रेष्ठता। ३. वह अवस्था जिसमें सब विघ्न-बाधाएँ दूर कर दी गई हों। ४. एक प्रकार का छन्द जो केशव के अनुसार सवैया का मत्तगयंद नामद भेद है। ५. भोजन की क्रिया के लिए आदर सूचक पद (पूरब) जैसे—अब आप विजय के लिए उठें अर्थात् भोजन करने चलें।
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विजय-कुंजर  : पुं० [सं० च० त०] १. राजा की सवारी का हाथी। २. लड़ाई में काम आनेवाला हाथी।
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विजय-केतु  : पुं० [सं० ष० त०]=विजय-पताका।
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विजय-डिंडिम  : पुं० [सं० च० त०] प्राचीन काल में युद्ध-क्षेत्र में बजाया जानेवाला एक प्रकार का बड़ा ढोल।
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विजय-दंड  : पुं० [सं० ब० स०] सैनिकों का वह विभाग जो सदा विजयी रहता हो।
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विजय-दीपिका  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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विजय-नागरी  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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विजय-पताका  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. सेना की वह पताका जो जीत के साथ फहराई जाती है। २. विजय का सूचक कोई चिन्ह।
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विजय-पर्पटी  : स्त्री० [सं० मध्यम० स०] वैद्यक में एक प्रकार का रस जो पारे, रेंड़ की जड़ अदरक आदि के योग से बनता और संग्रहणी रोग में दिया जाता है।
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विजय-पूर्णिमा  : स्त्री० [सं० मध्यम० स०] आश्विन की पूर्णिमा।
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विजय-भैरव  : पुं० [सं० च० त०] वैद्यक में एक प्रकार का रस।
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विजय-मर्द्दल  : पुं० [सं० च० त०] प्राचीन काल का एक प्रकार का ढोल। ढक्का।
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विजय-यात्रा  : स्त्री० [सं० ष० त०] वह यात्रा जो किसी पर किसी प्रकार की विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से की जाय।
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विजय-रत्नाकारी  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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विजय-लक्ष्मी  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] विजय की अधिष्ठाती देवी, जिसकी कृपा पर विजय निर्भर मानी जाती है।
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विजय-वसंत  : पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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विजय-श्री  : स्त्री० [सं०] १. संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। २. विजय-लक्ष्मी।
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विजय-सरस्वती  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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विजय-सामंत  : पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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विजय-सारंग  : पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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विजयक  : पुं० [सं० विजय+कन्] वह जो सदा विजय प्राप्त करता रहता हो। सदा जीतता रहनेवाला।
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विजयकच्छंद  : पुं० [सं०] १. एक प्रकार का कल्पित हार जो दो हाथ लंबा और ५॰४ लड़ियों का माना जाता है। कहते हैं ऐसा हार केवल देवता लोग पहनते हैं। २. ऐसा हार जिसमें ५॰॰ मोती या नग हों।
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विजयंत  : पुं० [सं० वि√जि (जीतना)+झ-अन्त] इंद्र का एक नाम।
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विजयंती  : स्त्री० [सं० वि√जि+शतृ+ङीष्] १. एक अप्सरा का नाम। २. ब्राह्मी।
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विजयदशमी  : स्त्री०=विजयादशमी।
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विजयशील  : वि० [सं० ब० स०] जो विजय प्राप्त करता हो। सदा जीतता रहनेवाला।
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विजयसार  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का बड़ा वृक्ष जिसकी लकड़ी इमारत के काम आती है। विजैसार।
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विजया  : स्त्री० [सं० विजय+टाप्] १. दुर्गा। २. पुराणानुसार पार्वती की एक सखी जो गौतम की कन्या थी। ३. यम की भार्या। ४. एक योगिनी। ५. दक्ष की कन्या। ६. इन्द्र की पताका पर अंकित एक कुमारी। ७. श्रीकृष्ण के पहनने की माला। ८. काश्मीर का एक प्राचीन विभाग। ९. विजयादशमी। १॰. पुरानी चाल का एक प्रकार का बड़ा खेमा या तंबू। ११. वर्तमान अवसर्पिणी के दूसरे अर्हत की माता का नाम। 1२. एक सम-मात्रिक छंद (क) जिसके प्रत्येक चरण में १॰-१॰ की यति पर ४॰ मात्राएँ होती हैं और अन्त में रगण होता है। (ख) जिसके प्रत्येक चरण में १२, १२, १॰,१॰ की यति से ४४ मात्राएँ होती है। १३. एक वर्णिक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं। इसके अन्त में लघु और गुरु अथवा नगण भी होता है। १४. भंग। भाँग। १५. हर्रे। १६. वच। १७. जयंती। १८. मंजीठ। १९. अग्नि-मंथ। २॰.एक प्रकार का शमी वृक्ष।
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विजया-एकादशी  : स्त्री० [सं० मध्यम० स०] १. क्वार सुदी एकादशी २. फागुन वदी एकादशी।
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विजया-दशमी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] आश्विन मास के शुक्लपक्ष की दशमी जो हिन्दुओं का बहुत बड़ा त्यौहार मानी जाती है। विशेष—इसी तिथि को राम ने रावण को मारा था।
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विजयानंद  : पुं० [सं०] संगीत में ताल के आठ मुख्य भेदों में से एक।
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विजयाभरणी  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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विजयासप्तमी  : स्त्री० [सं०] रविवार के दिन पड़नेवाली किसी मास की शुक्लपक्ष की सप्तमी।
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विजयास्त्र  : पुं० [सं० विजय+अस्त्र] वह अस्त्र, क्रिया या साधन जिससे विजय प्राप्त करना निश्चित हो (ट्रम्पकार्ड)।
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विजयी  : वि० [सं० विजि+इनि] १. वह जिसने विजय प्राप्त की हो। जीतनेवाला। २. (वह व्यक्ति या पक्ष) जिसकी प्रतियोगिता युद्ध विवाद आदि में जीत हुई हो। पुं० अर्जुन।
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विजयोत्सव  : पुं० [सं० स० त०] १. विजय दशमी के दिन होनेवाला उत्सव। २. युद्ध में विजय प्राप्त करने पर होनेवाला उत्सव।
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