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शब्द का अर्थ

लेख  : पुं० [सं०√लिख् (लिखना)+घञ्] १. लिखे हुए अक्षर। २. लिखावट। ३. लिखी हुई बात, विचार या विषय। ४. दैनिक, मासिक आदि पत्रों में छपनेवाला सामयिक निबंध। जैसे—आज के अखबार में राजा जी का भी लेख है। ५. कोई ऐसी लिखी हुई आज्ञा या आदेश जो नियम या विधान के अनुसार किसी बड़े अधिकारी ने प्रचलित किया हो। (रिट्) ६. ताम्र-पत्रों, शिला-लेखों सिक्कों आदि में लिखी हुई बातें या विवरण। (इनस्क्रिप्सन) ७. लेखा। हिसाब। वि० =लेख्य। पुं० [सं० लेखर्षभ] देवता। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेख-पत्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. लिखित पत्र। लिखा हुआ कागज। २. दस्तावेज। लेख्य।
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लेख-प्रणाली  : स्त्री० [सं० ष० त०] लिखने की शैली या ढंग।
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लेख-शैली  : स्त्री० [सं० ष० त०] लिखने की वह विशिष्ट शैली (देखें) जो लेखक की विशेषताओं से युक्त होती है।
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लेखक  : पुं० [सं०√लिख्+ण्वुलक—अक] [स्त्री० लेखिका] १. वह जो लिखता हो। लेखन कार्य करनेवाला। जैसे—कहानी लेखक, समाचार लेखक। २. वह जो मनोरंजन या जीविका के लिए कहानियाँ उपन्यास, लेख साहित्यिक ग्रन्थ आदि लिखता हो। साहित्य-जीवी। ३. किसी गद्य या कृति का रचयिता।
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लेखन  : पुं० [सं०√लिख्+ल्युट—अन] [वि० लेखनीय, लेख्य] १. अक्षर आदि लिखने का कार्य। अक्षर-विन्यास। अक्षर बनाना। २. अक्षर आदि लिखने की विद्या या कला। ३. तूलिका से चित्र आदि अंकित करने की क्रिया या विद्या। चित्रांकन। ४. किसी रूप में किसी प्रकार के चिन्ह आदि अंकित करना। जैसे—नख-लेखन=नाखूनों से खरोचकर किसी प्रकार की आकृति या चिन्ह बनाना। ५. हिसाब करना। लेखा लगाना। कूतना। ६. कै या वमन करना। छर्दन। ७. ताड़-पत्र और भोजपत्र जिन पर प्राचीनकाल में लेख आदि लिखे जाते थे। ८. वैद्यक में वह क्रिया जिससे शरीर के अन्दर की धातुएँ तथा मल या विकार या तो पतले करके शरीर के बाहर निकाले जाते या अन्दर ही अन्दर सुखाये जाते हैं। ९. उक्त प्रकार की क्रियाएँ करनेवाली दवा या ओषधि। १॰. वैद्यक के शस्त्र द्वारा कोई दूषित अंग काटना या छेदना। चीर-फाड़। ११. खाँसी नामक रोग।
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लेखन-वस्ति  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] वैद्यक में पिचकारी की सहायता से शरीर के अन्दर की धातुओं और वातादि दोषों को पतला करने की क्रिया।
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लेखन-सामग्री  : स्त्री० [सं० ष० त०] लिखने के काम आनेवाली चीजें या सामग्री। जैसे—कागज, कलम, स्याही आदि (स्टेशनरी)।
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लेखनहार  : वि० [हि० लेखन+हिं० हार (प्रत्यय)] लिखनेवाला। उदाहरण—आपुहि कागद आपु मसि आपुहि लेखनहार।—कबीर।
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लेखना  : स० [सं० लेखन] १. अक्षर, चित्र या चिन्ह बनाना। लिखना। २. लेखा या हिसाब करना। गणित की क्रिया करना। ३. किसी को गिनती के योग्य या महत्त्वपूर्ण समझना। ४. मन ही मन कोई बात सोचना-समझना या निश्चित करना। ५. प्राप्त या भोग करना। उदाहरण—स्वर्ग का लाभ यहीं मै लेखूँ।—मैथिलीशरण गुप्त।
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लेखनिक  : पुं० [सं० लेखन+ठन्-इक] १. लेखक। २. पत्रवाहक। ३. वह निरक्षर या असमर्थ जो लेख आदि पर स्वयं हस्ताक्षर न करके दूसरों से उन पर अपना नाम लिखवाता हो।
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लेखनिका  : स्त्री० [सं० लेखनिक+टाप्]=लेखनी।
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लेखनी  : स्त्री० [सं० लेखन+ङीष्] वह वस्तु जिससे लिखे या अक्षर बनावें। वर्ण तूलिका। कलम। मुहावरा—लेखनी उठाना=कुछ लिखना आरम्भ करना। लेखनी चलाना=लिखना।
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लेखनीय  : वि० [सं०√लिख् (लिखना)+अनीयर्] लिखे जाने के योग्य।
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लेखपाल  : पुं० [सं० लेख√पाल् (रक्षा)+णिच्+अण्०] वह सरकारी कर्मचारी जो गाँवों के खेतों और उनकी उपज, लगान आदि का लेखा रखता हो। (पुराने पटवारियों की नई संज्ञा)।
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लेखर्षभ  : पुं० [सं० लेख-ऋषभ, स० त०] देवताओं में श्रेष्ठ, इन्द्र।
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लेखहार  : पुं० [सं० लेख√हृ (हरण)+अण्] चिट्ठी ले जानेवाला। पत्रवाहक।
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लेखा  : पुं० [सं० लेख, हिं० लिखना] १. वह लेख जो आय-व्यय की धन-राशि आदि से संबंध रखनेवाले अंकों या संख्याओं से युक्त होता है। हिसाब (एकाउन्ट) २. इस बात का विचार कि कुल चीजें कितनी और किस अनुपात में हैं। जैसे—कितनी चीजें आई है, उन सब का लेखा तैयार करो। क्रि० प्र०—लगाना।—लिखना। मुहावरा—(किसी का) लेखा चुकाना=हिसाब करने पर जो बाकी निकलता हो, वह देकर चुकता करना। लेखा डालना=बही आदि में कोई नया खाता खोलना या बढ़ाना। नया खाता डालना। लेखा डेवढ़ करना= (क) हिसाब-चुकता करना। देन चुकाना। (ख) जमा या खर्च की मदें बराबर करके हिसाब पूरा करना। (ग) चौपट या नष्ट करना। (व्यंग्य) ३. राशियों, संख्याओं आदि के संबंध में किया जानेवाला अनुमान। कूत। ४. किसी के महत्त्व मान योग्यता आदि के संबंध में मन में किया जानेवाला विचार। मुहावरा—(किसी के) लेखे=किसी के ध्यान, विचार या समक्ष के अनुसार। जैसे—हमारे लेख उसका आना और न आना दोनों बराबर है। किसी लेखे=किसी ढंग, प्रकार या साधन से। किसी तरह। उदाहरण—सब कर मरनु बना एहि लेखे।—तुलसी। ५. जीवन-निर्वाह व्यवहार आदि के संबंध रखनेवाली दशा या स्थिति। जैसे—ऊँचे पर चढ़ देखा घर घर एकहि लेखा (कहा०)। स्त्री० [सं०√लिख् (लिखना)+अ+टाप्] १. लिपि। लिखावट। २. रेखा। जैसे—चन्द्र लेखा।
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लेखा-कर्म  : पुं० [सं० ष० त०] आय, व्यय आदि का हिसाब लिखने या रखने का काम (एकाउन्टेसी)।
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लेखा-चित्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] अनेक रेखाओंवाला वह बड़ा चौकोर अंकन जो किसी घटना या व्यापार में होते रहनेवाले उतार-चढ़ाव या परिवर्तन अथवा कुछ तथ्यों के पारस्परिक संबंध का सूचक होता है। (ग्राफ) जैसे—जन्म-मरण, तेजी-मंदी, आयात-निर्यात आदि का लेखा चित्र।
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लेखा-परीक्षक  : पुं० [सं० ष० त०] वह जो किसी विषय व्यक्ति संस्था आदि के लेख या हिसाब-किताब को जाँचता हो (आडीटर)।
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लेखा-परीक्षण  : पुं० [सं०] किसी प्रकार के कार-बार लेन-देन या आय-व्यय आदि की जाँच करने की क्रिया या भाव। (आंडिटिंग)
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लेखा-पुस्तिका  : स्त्री० [सं०] वह पुस्तिका जो बैंक की ओर से उन लोगो को मिलती है जिनके रुपए बैंक में जमा होते हैं और जिसमें उनके खाते के लेन-देन की सब रकमें लिखी रहती हैं। (पासबुक) २. दे० ‘लेखा-बही’।
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लेखा-बही  : स्त्री० [हिं० लेखा+बही] वह बही जिसमें रोकड़ के लेन-देन का ब्यौरा लिखा रहता है। (एकाउन्ट बुक)
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लेखा-शास्त्र  : पुं० [सं० ष० त०] वह विद्या या शास्त्र जिसमें, इस बात का विवेचन होता है कि सब तरह के लेखे या हिसाब किस तरह से रखे या लिखे जाते हैं (एकाउन्टेन्सी)।
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लेखाकार  : पुं० [सं०] वह जो किसी महाजनी, कोठी संस्था आदि के आय-व्यय या लेन-देन का लेखा लिखता हो। (एकाउन्टेन्ट)
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लेखागार  : पुं० [सं० लेखा-आगार] वह स्थान विशेषतः किसी राज्य या सरकार का वह स्थान जहाँ शासन तथा सार्वजनिक हित से संबंध रखनेवाले सब प्रकार के लेख्य इसलिए सुरक्षित रखे जाते हैं कि आवश्यकता पड़ने पर प्रमाण या साक्ष्य के रूप में उपस्थित किये जा सकें। (आकिव्ज)
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लेखाध्यक्ष  : पुं० [सं० लेखा-अध्यक्ष, ष० त०] लेखाकार।
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लेखापाल  : पुं० [सं० लेखा√पाल् (रखना)+णिच्+अण्] वह जो आय-व्यय आदि लिखने का काम करता हो। बही-खाते आदि लिखनेवाला कर्मचारी। (एकाउन्टेन्ट)
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लेखिका  : स्त्री० [सं० लेखक+टाप्, इत्व] स्त्री लेखक।
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लेखित  : भू० कृ० [सं०√लिख् (लिखना)+णिच्+क्त] लिखवाया हुआ।
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लेखी (खिन्)  : वि० [सं० लेख+इनि] लिखने की क्रिया करनेवाला। जैसे—चित्रकार, लेखक आदि। स्त्री० [सं० लेख] १. खाते में लिखे जाने की क्रिया या भाव। इंदराज। २. खाते में लिखी जाने-वाली रकम या मद। (एन्ट्री)
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लेखे  : अव्य० दे० ‘लेखा’ के अन्तर्गत मुहा०।
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लेख्य  : वि० [सं०√लिख् (लिखना)+ण्यत्] १. लिखे जाने के योग्य। जो लिखा जा सके। २. जो लिखा जाने को हो। ३. जो लेख के रूप में और फलतः प्रामाणिक हो। दस्तावेजी। (डाक्यूमेन्टरी) पुं० १. लिखी हुई को बात या विषय। लेख। २. विविध क्षेत्रों में, कोई ऐसा लेख जो प्रमाण या साध्य के रूप में काम आता या आ सकता हो। दस्तावेज। (डाक्यूमेन्ट) ३. चित्रकला में, वह रेखाचित्र जो कोयले, खड़िया, रंग आदि की सहायता से अंकित होता है और जिसमें किसी घटना, दृश्य आदि के संबंध में चित्रकार के आन्तरिक भाव व्यक्त होते हैं। (ड्राइंग)
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