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शब्द का अर्थ

मृत  : वि० [सं०√मृ (मरना)+क्त] १. मरा हुआ। मुर्दा। २. मांगा हुआ। याचित। ३. जिसका पूर्ण रूप से अन्त या नाश हो चुका हो।
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मृत-जीव  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. मरा हुआ। प्राणी। २. तिलक (वृक्ष)।
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मृत-जीवनी  : स्त्री० [सं० मृत√जीव् (जीना)+णिच्+ल्यु-अन+ङीष्] १. मृत शरीर को फिर से जीवित करने की कला या विद्या। २. दूधिया घास।
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मृत-धर्मा (र्मन्)  : वि० [ब० स०, अनिच्] जो अन्त में मर जाता या नष्ट हो जाता हो। नश्वर।
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मृत-मत्त  : पुं० [तृ० त०] श्रृंगाल। गीदड़।
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मृत-मातृक  : वि० [ब० स०,+कप्] जिसकी माँ मर चुकी हो।
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मृत-वत्स  : वि० [ब० स०] [स्त्री० मृत-वत्सा] १. (जीव या प्राणी) जिसके बच्चे हो होकर मर जाते हों। २. (जीव या प्राणी) जिसका बच्चा होकर मर गया हो।
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मृत-संजीवन  : वि० [सं० सम्√जीव्+णिच्+ल्यु-अन, मृत-संजीवन, ष० त०] [स्त्री० मृत-संजीवनी] मृत को जीवित करनेवाला (पदार्थ)।
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मृत-संजीवनी  : स्त्री० [सं० संजीवन+ङीष्, मृत-संजीवनी, ष० त०] १. एक प्रकार की कल्पित बूटी जिसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि इसके खिलाने से मुरदा भी जी उठता है। २. वैद्यक में एक प्रकार का आसव या सुरा जो बहुत पौष्टिक कही गई है।
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मृत-संजीवनी सुरा  : स्त्री० [अं० मध्य० स०] वैद्यक में एक प्रकार का पौष्टिक आसव।
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मृत-संजीवनी-रस  : पुं० [मध्य० स०] वैद्यक में एक प्रकार का रसौषध जिसका व्यवहार ज्वर में होता है।
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मृत-स्नात  : भू० कृ० [सुप्सुपा स०] १. (मृतक) जिसे दाह-कर्म से पहले स्नान कराया गया हो। २. (व्यक्ति) जिसने किसी सजाति या बंधु के मरने पर उसके उद्देश्य से स्नान किया हो।
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मृत-स्नान  : पुं० [मध्य० स०] १. मृतक को कराया जानेवाला स्नान। २. किसी भाई-बंधु के मरने पर किया जानेवाला स्नान।
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मृतक  : वि० [सं० मृत+कन्] १. मरा हुआ। मुरदा। मृत। २. साहित्य में (पद या वाक्य) जिसका कुछ भी वास्तविक अर्थ न हो। जैसे—(क) बादाम में सोया हुआ आदमी। (ख) च्यूँटी पर हाथी की सवारी। पुं० १. मरा हुआ प्राणी या उसका मृत शरीर। २. घर के किसी प्राणी या सम्बन्धी के मर जाने पर होनेवाला अशौच।
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मृतक-कर्म  : पुं० [सं० ष० त०] मृतक की शुद्ध गति के निमित्त किया जानेवाला कृत्य। प्रेम कर्म। जैसे—दाह, षोडशी, दशगात्र इत्यादि।
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मृतक-धूम  : पुं० [सं० ष० त०] राख। भस्म।
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मृतकल्प  : वि० [सं० मृत+कल्पप] दे० ‘मृत-पाय’।
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मृतकांतक  : पुं० [सं० मृतक-अंतक, ष० त०] श्रृंगाल। गीदड़। वि० मृत शरीर का अन्त या नास करनेवाला।
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मृतामद  : पुं० [मृत-आमद, ब० स०] तुत्थ। तूतिया।
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मृतालक  : पुं० [मृत√अल् (दूषित करना आदि)+ण्वुल्-अक] १. अरहर। २. गोपी-चन्दन।
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मृताशौच  : पुं० [मृत-अशौच, मध्य० स०] सूतक। (दे०)
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मृति  : स्त्री० [सं०√मृ (मरण)+कितन्] मृत्यु। मौत।
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मृति-रेखा  : स्त्री० [ष० त०] सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार हथेली पर की एक रेखा जिससे व्यक्ति के आयु का अनुमान लगाया जाता है।
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मृतोत्थित  : वि० [मृत-उत्थित, कर्म० स०] जो मरकर फिर जी उठा हो।
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मृत्कर  : पुं० [ष० त०] कुम्हार।
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मृत्कांस्य  : पुं० [ष० त०] मिट्टी का बरतन।
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मृत्तालक  : पुं० [मृद्√तल् (प्रतिष्ठा)+णिच्+अण्+कन्] १. अरहर। २. गोपी चन्दन।
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मृत्तिका  : स्त्री० [सं० मृद्+तिकन्+टाप्] १. मिट्टी। खाक। २. अरहर।
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मृत्तिका-लवण  : पुं० [ष० त०] पुराने घरों की मिट्टी की दीवारों पर सीड़ होने से निकलनेवाली एक प्रकार की नमकीन मिट्टी नोना। लोना।
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मृत्तिकावती  : स्त्री० [सं० मृत्तिका+मतुप्, म-व+ङीष्] नर्मदा के किनारे की एक प्राचीन नगरी। महाभारत।
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मृत्पात्र  : पुं० [ष० त०] मिट्टी का बरतन।
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मृत्पिंड  : पुं० [ष०स०] मिट्टी का ढेला या लोंदा।
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मृत्यु  : स्त्री० [सं०√मृ (मरना)+त्युक्] १. जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों की आयु की वह अंतिम अवस्था जिसमें उनके जीवन की स्थायी रूप से और सदा के लिए अंत हो जाता है। मरण। मौत। २. किसी चीज या बात की उक्त प्रकार की अंतिम अवस्था। जैसे—किसी की राजनीतिक मृत्यु, स्वेच्छाचार की मृत्यु। ३. माया। पुं० [सं०] १. यम। २. ब्रह्मा। ३. विष्णु। ४. कामदेव। ५. कलियुग। ६. एक साम मंत्र। ७. फलित ज्योतिष में जन्म कुंडली का आठवाँ घर जिससे मरण-संबंधी फलाफल का विचार होता है। ८. बौद्ध देवता पद्मपाणि का एक अनुचर।
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मृत्यु-कर  : पुं० [ष० त०] मृत व्यक्ति की संपत्ति पर लगनेवाला कर। (डेथ-ड्यूटी)।
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मृत्यु-दर  : स्त्री० [सं० +हिं० ]=मरणगति।
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मृत्यु-नाशक  : पुं० [ष० त०] पारा।
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मृत्यु-पाश  : पुं० [ष० त०] यम का पाश।
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मृत्यु-पुष्प  : पुं० [ब० स०] १. ईख। गन्ना। २. केला।
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मृत्यु-फल  : पुं० [ब० स०] १. केला। २. महाकाल नामक लता।
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मृत्यु-बीज  : पुं० [ब० स०] बाँस।
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मृत्यु-लोक  : पुं० [ष० त०] १. यम लोक। २. मर्त्य लोक।
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मृत्यु-शय्या  : स्त्री० [ष० त०] वह शय्या या बिस्तर जिस पर रोगी मरमासन्न रूप में पड़ा हुआ हो। (डेथ बेड)
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मृत्यु-संख्या  : स्त्री० [ष० त०] किसी दुर्घटना, महामारी आदि में मरनेवालों की संख्या। (डेथ-रोल)
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मृत्यु-सूति  : स्त्री० [ब० स०] केकड़े की मादा। (कहते हैं कि यह अंडे देने के बाद मर जाती है।)
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मृत्युंजय  : वि० [सं० मृत्यु√जि (जीतना)+खच्, मुम्] जिसने मृत्यु को जीत लिया हो। अमर। पुं० १. शिव का एक नाम और रूप। २. शिव का एक मंत्र जो अकाल-मृत्यु का निवारक माना जाता है।
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मृत्युंजय-रस  : पुं० [सं० मध्य० स०] ज्वर के लिए उपयोगी एक रसौषध। (वैद्यक)
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मृत्युदंड  : पुं० [सं०] अपराधी को जान से मार डालने का दंड या सजा। प्राणदंड। (कैपिटल पनिशमेंट)
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मृत्स  : वि० [सं०] चिपचिपा।
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मृत्सा  : स्त्री० [सं० मृत+स+टाप्]=मृत्स्ना।
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मृत्स्ना  : स्त्री० [सं० मृत+स्न-टाप्] १. बढ़िया चिकनी मिट्टी। २. मिट्टी।
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