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शब्द का अर्थ

प्रात  : अव्य. [सं० प्रातः] प्रभात के समय। बहुत सबेरे। तड़के। पुं० प्रातःकाल। सबेरा।
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प्रात-कृत  : पुं०=प्रातःकृत्य।
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प्रातःकर्म  : पुं० [सं० ष० त० वा स० त०] कर्म जो नित्य प्रातःकाल किये जाते हैं।
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प्रातःकार्य  : पुं०=प्रातःकर्म।
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प्रातःकाल  : पुं० [सं० कर्म० स० या ष० त०] १. पौ फटने का समय। तड़का। रात का अंतिम एक दंड और दिन का पहला एक दंड। २. सूर्य निकलने से कुछ पहले और बाद का समय। ३. कार्यालयों, निर्माण-शालाओं तथा विद्यालयों में जाने तथा काम करने का सवेरे ६-७ बजे से लेकर ११-१२ बजे दोपहर तक का समय। ‘दिन’ से भिन्न। जैसे—कल से कार्यालय प्रातःकाल हो गया है।
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प्रातःकालिक  : वि० [सं० प्रातःकाल+ठञ्—इक] प्रातःकाल-संबंधी। प्रातःकाल का।
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प्रातकाली  : स्त्री० दे० ‘पाराती’ (गीत)।
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प्रातःकालीन  : वि० [सं० प्रातःकाल+ख—ईन]=प्रातःकालिक।
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प्रातनाथ  : पुं० [सं० प्रातर्नाथ] सूर्य।
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प्रातरनुवाक  : पुं० [सं० मध्य० स०] ऋग्वेद के अंतर्गत वह अनुवाक जो प्रातःसवन नामक कर्म के समय पढ़ा जाता है।
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प्रातरभिवादन  : पुं० [सं० ष० त०] बड़ों का वह अभिवादन जो प्रातःकाल सोकर उठने के समय किया जाय।
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प्रातराश  : पुं० [सं० ष० त०] प्रातःकाल किया जानेवाला हलका भोजन। जलपान। कलेवा।
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प्रातर्  : अव्य० [सं० प्र√अत्+अरन्] प्रभात के समय। सबेरे। पुं० पुष्पार्ण के पुत्र एक देवता जो प्रभा के गर्भ से उत्पन्न हुए।
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प्रातर्दन  : पुं० [सं० प्रातर्दन+अण्] प्रतर्दन के गोत्र में उत्पन्न पुरुष। प्रतर्दन का अपत्य। वि० प्रतर्दन-संबंधी। प्रतर्दन का।
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प्रातःसंध्या  : स्त्री० [सं० सप्त० स०] प्रातःकाल की जानेवाली संध्या (ईश्वरोपासना)।
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प्रातःसवन  : पुं० [सं० मध्य० स०] तीन प्रधान सवनों (सोम-यागों) में से पहला सवन जो प्रातःकाल किया जाता है।
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प्रातःस्नान  : पुं० [सं० ष० त० वा स० त०] प्रातःकाल या सबेरे का स्नान।
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प्रातःस्नायी (यिन्)  : वि० [सं० प्रातः√स्ना+णिनि] प्रातः काल स्नान करनेवाला। सबेरे नहानेवाला।
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प्रातःस्मरण  : पुं० [सं० स० त०] सबेरे के समय ईश्वर, देवतादि का किया जेनावाला जप, पाठ या भजन।
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प्रातःस्मरणीय  : वि० [सं० स० त०] जिसे प्रातःकाल स्मरण करना उचित हो; अर्थात् परम पूज्य और श्रेष्ठ।
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प्राति  : स्त्री० [सं०√प्रा (पूर्ति)+क्तिन] १. अँगूठे और तर्जनी के बीच का स्थान। पितृ-तीर्थ। २. लाभ। ३. पूर्ति।
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प्रातिकूलिक  : वि० [सं० प्रतिकूल+ठक्—इक] विरुद्ध।
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प्रातिकूल्य  : पुं० [सं० प्रतिकूल+ष्यञ्] १. प्रतिकूल या विरुद्ध होने का अवस्था या भाव। २. हिन्दू धर्म-शास्त्रों के अनुसार इस बात का विचार कि परस्पर प्रतिकूल अवस्थाओं में कोई काम कब और कैसे करना चाहिए। जैसे—घर में अशौच होने पर मांगलिक और शुभ कार्य करने के समय आदि का विचार।
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प्रातिज्ञ  : पुं० [सं० प्रतिज्ञा+अण्] तर्क या विवाद का विषय।
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प्रातिदैवासिक  : वि० [सं० प्रतिदिवस+ठञ्-इक] प्रति दिवस अर्थात् नित्य होनेवाला। दैनिक।
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प्रातिनिधिक  : वि० [सं० प्रतिनिधि√ठक्—इक] १. प्रतिनिधि सम्बन्धी। प्रतिनिधि का। २. प्रतिनिधि के रूप में होनेवाला। पुं० १. प्रतिनिधि। २. स्थानापत्र।
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प्रातिपक्ष  : वि० [सं० प्रतिपक्ष+अण्] १. विरुद्ध। प्रतिकूल। २. प्रतिपक्षवाला।
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प्रातिपथिक  : वि० [सं० प्रतिपथ+ठक्—इक] यात्रा करनेवाला। पुं० यात्री।
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प्रातिपद  : वि० [सं० प्रतिपद्+अण्] १. प्रतिपदा-संबंधी। २. प्रतिपदा के दिन होनेवाला। ३. आरंभिक।
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प्रातिपदिक  : पुं० [सं० प्रतिपद्+ठञ्—इक] १. अग्नि। २. धातु। ३. संस्कृत व्याकरण में धातु और प्रत्यय से भिन्न कोई सार्थक शब्द। ४. कोई वृदान्त, तद्धित और समस्त पद। वि०=प्रातिपद।
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प्रातिभ  : वि० [सं० प्रतिभा√अण्] १. प्रतिभा-संबंधी। प्रतिभा का। २. प्रतिभा से उद्भूत। प्रतिभाजन्य। ३. मानसिक। पुं० १. प्रतिभा से युक्त या संपन्न व्यक्ति। प्रतिभाशाली मनुष्य। २. योग साधन में होनेवाले पाँच प्रकार के उपसर्गों या विघ्नों में से एक जो साधक की प्रतिभा क कारण उत्पन्न होता हैं; और जिसमें वेद-शास्त्रों, कलाओं, विद्याओं आदि से संबंध रखनेवाले विचार मन में उत्पन्न होकर उसे एकाग्र नहीं होने देते।
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प्रातिभाज्य  : वि० [सं० प्रति√भज्+णिच्+यत्] (पदार्थ) जिस पर प्रति-भाग नामक शुल्क लगता या लग सकता हो।
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प्रातिभाव्य  : पुं० [सं० प्रतिभू+ष्यञ्] १. प्रतिभू होने की अवस्था या भाव। २. जमानत।
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प्रातिभासिक  : वि० [सं० प्रतिभास+ठक्—इक] १. प्रतिभास-संबंधी। अनुरूपक। २. जो अस्तित्व में न हो, या जिसका अस्तित्व भ्रममूलक हो।। ३. जो व्यवहारिक न हो।
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प्रातिलोमिक  : वि० [सं० प्रतिलोम+ठक्—इक] प्रतिलोम-संबंधी; या प्रतिलोम के रूप में होनेवाला। ‘अनुलोमिक’ का विपर्याय। २. प्रतिकूल। विरुद्ध। ३. अप्रिय। अरुचिकर।
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प्रातिलोम्य  : पुं० [सं० प्रतिलोम+ष्यञ्] प्रतिलोम होने की अवस्था या भाव।
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प्रातिवेशिक  : पुं० [सं० प्रतिवेश+ठक्—इक]=प्रतिवेशी (पड़ोसी)।
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प्रातिवेश्य  : पुं० [सं० प्रतिवेश+ष्यञ्] प्रतिवेश में रहने की अवस्था या भाव। पड़ोस।
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प्रातिवेश्यक  : पुं० [सं० प्रातिवेश्य+कन्] पड़ोसी।
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प्रातिशाख्य  : पुं० [सं० प्रतिशाख+ञ्य] ऐसा ग्रंथ जिसमें वेदों के किसी शाखा के स्वर, पद, संहिता, संयुक्ता वर्णों के उच्चारण आदि का निर्णय या विचार किया गया हो।
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प्रातिहत  : पुं० [सं० प्रतिहत+अण्] स्वरित।
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प्रातिहर्त्र  : पुं० [सं० प्रतिहर्तृ+अण्] प्रतिहर्ता का काम, पद या भाव।
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प्रातिहार  : पुं० [सं० प्रतिहार+अण्] १. जादूगर। बाजीगर। २. दरबान। द्वार-पाल।
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प्रातिहारक  : पुं०=प्रातिहार।
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प्रातिहारिक  : वि० [सं० प्रतिहार+ठञ्—इक] प्रतिहार-संबंधी। पुं० प्रातिहार।
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प्रातिहार्य  : पुं० [सं० प्रतिहार+ष्यञ्] १. इंद्रजाल। बाजीगरी। २. कोई चमत्कारी खेल। करामात। ३. द्वारपाल का काम, पद या भाव।
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प्रातीतिक  : वि० [सं० प्रतीति+ठञ्—इक] १. जिसमें प्रतीति होती हो या जो प्रतीति कराता हो। २. मन या कल्पना में होनवाला। काल्पनिक या मानसिक।
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प्रातीप  : पुं० [सं० प्रतीप+अण्] १. प्रतीप का अपत्य या वंशज। २. प्रतीप के पुत्र शांतनु।
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प्रातीपिक  : वि० [सं० प्रतीप+ठत्र्—इक] १. प्रतीप-संबंधी। प्रतीप का। २. प्रतिकूल आचरण करनेवाला। विरुद्धाचारी। ३. उलटा। विपरीत।
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प्रात्यक्ष  : वि० [सं० प्रत्यक्ष्+अण्] १. प्रत्यक्ष नामक प्रमाण के रूप में होनेवाला। २. उक्त प्रमाण-संबंधी।
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प्रात्यक्षिक  : वि० [प्रत्यक्ष+ठक्—इक]=प्रत्यक्ष।
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प्रात्यंतिक  : पुं० [सं० प्रत्यंत+ठञ्—इक] १. सीमा पर स्थित राज्य। २. सीमा की रक्षा करनेवाला अधिकारी।
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प्रात्ययिक  : पुं० [सं० प्रत्यय+ठक्—इक] मिताक्षरा के अनुसार तीन प्रकार के प्रतिभूओं में से दूसरा। वह जो किसी को पहचान कर के उसका प्रतिभू बने। वि० १. प्रत्यय के रूप में होनेवाला। २. प्रत्यय-संबंधी।
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प्रात्यहिक  : वि० [सं० प्रत्यह+ठक्—इक] प्रतिदिन का। दैनिक।
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