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प्रस्तुतांकुर  : पुं० [सं० प्रस्तुत-अंकुर, ष० त०] साहित्य में, अप्रस्तुत प्रशंसा की तरह का एक अलंकार जिसमें एक अर्थ में से एक दूसरी अर्थ भी अंकुर के रूप में निकलता है। जैसे—यदि नायिका भ्रमर से कहे कि तुम मालती को छोड़कर कँटीली केतकी के पास क्यों जाते हो। तो इसमें से एक दूसरा अर्थ यह निकलेगा कि तुम कुलीन वधू के रहते हुए पर-स्त्री या वेश्या के पास क्यों जाते हो ? अथवा यदि कहा जाय—‘तुम उनकी क्या निंदा करते हो। उनके सामने तो बड़े बड़े लोग सिर झुकाते हैं।’ तो यहाँ एक ही निंदा के साथ दूसरे की प्रशंसा भी अंकुर के रूप में लगी रहेगी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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