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प्रलय  : पुं० [सं० प्र√ली (विलीन होना)+अच्] १. पूरी तरह से होनेवाला लय अर्थात् नाश या विलीनता। २. अधिकतर प्राचीन जातियों और देशों में प्रचलित प्रवादों के अनुसार सारी सृष्टि का वह विनाश जो बहुत प्राचीन काल में किसी बहुत बड़ी और जगत्व्यापी बाढ़ के फल-स्वरूप हुआ था। (डिल्यूज़) विशेष—भारतीय पुराणों के अनुसार प्रत्येक कल्प का अन्त होने पर अर्थात् ४३,२॰,॰॰,॰॰॰ वर्ष बीतने पर सारी सृष्टि का प्रलय होता है; और सृष्टि अपने मूल कारण अर्थात् प्रकृति में लीन हो जाती है; और इसके उपरांत नये सिरे से सृष्टि की रचना होती है। पिछली बार वैवस्वत मनु, के समय ऐसा प्रलय हुआ था। ईसाइयों, मुसलमानों आदि में प्रचलित प्रवादों के अनुसार पिछली बार हजरत नूह के समय ऐसा प्रलय हुआ था। वेदांत में प्रलय के ये चार प्रकार या भेद कहे गये हैं—नित्य, नैमित्तिक, प्राकृत और आत्यंतिक। ३. बहुत ही उत्कट या तीव्र रूप में और विस्तृत भू-भाग में होने वाला भयंकर नाश या बरबादी। जैसे—दोनों महायुद्धों के समय सारे युरोप में प्रलय का दृश्य उपस्थित हो गया था। ४. मृत्यु। ५. बेहोशी। मूर्च्छा। ६. साहित्य में नौ सात्विक अनुभावों में से एक जिसमें प्रिय के वियोग के कारण मूर्च्छा, निद्रा, चेतनहीनता, निश्चेष्टता, श्वासावरोध स्तब्धता आदि बातें होती है और फलतः प्रिया की प्राण-हीनता दीख पड़ने लगती है। ७. प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र।
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प्रलयंकर  : वि० [सं० प्रलय√कृ (करना)+खच्, मुम्] [स्त्री० प्रलयंकारी] प्रलयकारी। सर्वनाशकारी।
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