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शब्द का अर्थ

प्रभा  : स्त्री० [सं० प्र√भा (दीप्ति)+अङ्+टाप्] १. प्रकाश। दीप्ति। २. सूर्य का बिंब या मंडल। ३. सूर्य की एक पत्नी। ४. दुर्गा की एक मूर्ति या रूप। ५. कुबेर की नगरी। ६. बारह अक्षरों की एक वर्ण-वृत्ति जिसे मन्दाकिनी भी कहते हैं।
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प्रभा-मंडल  : पुं० [सं० ष० त०] दिव्य पुरुषों, देवताओं आदि के मुख के चारों ओर का वह आभायुक्त मंडल जो चित्रों, मूर्तियों आदि में दिखाया जाता है। परिवेश। भा-मंडल। (हैलो)
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प्रभाउ  : पुं०=प्रभाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रभाक  : पुं० [सं० अत्या० स०] १. किसी बड़े विभाग के अंतर्गत कोई छोटा भाग या विभाग। (सेक्शन) २. गणित में भिन्न का भिन्न। जैसे—१/२ का २/३।
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प्रभाकर  : पुं० [सं० प्रभा√कृ (करना)+ट] १. सूर्य। २. चंद्रमा। ३. अग्नि। ४. आक। मदार। ५. समुद्र। ६. शिव। ७. मार्कडेय पुराण के अनुसार आठवें मंवंतर के देवगण के एक देवता। ८. एक प्रसिद्धि मीमांसक जो मीमांसा-दर्शन की एक शाखा के प्रवर्तक थे। ९. कुश द्वीप के एक वर्ष का नाम।
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प्रभाकरी  : स्त्री० [सं० प्रभाकर+ङीप्] बोधि सत्त्वों की तृतीय अवस्था दो प्रमुहिता और विमला के उपरांत प्राप्त होती है।
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प्रभाकीट  : पुं० [सं० मध्य० स०] खद्योत। जुगुनू।
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प्रभात  : पुं० [सं० प्र√भा (दीप्ति)+क्त] १. सूर्य निकलने से कुछ पहले का समय। तड़का। २. प्रभा (सूर्य की पत्नी) के एक पुत्र। ३. संगीत में, एक राग। वि० जो कुछ-कुछ स्पष्ट रूप से सामने आने लगा हो।
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प्रभात-फेरी  : स्त्री० [सं०+हिं०] प्रचार आदि के लिए बहुत तड़के दल बाँधकर गाते-बजाते और नारे लगाते हुए बस्तियों में चक्कर लगाना।
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प्रभाती  : स्त्री० [सं० प्रभात+ङीष्] १. प्रत्यूष और प्रभात नामक वसुओं की माता। (महाभारत) २. प्रभात के समय गाये जानेवाले गीत। ३. दातुन। वि० प्रभात-संबंधी।
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प्रभान  : पुं० [सं० प्र√भा+ल्युट्—अन] १. ज्योति। प्रकाश। २. चमक। दीप्ति।
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प्रभापन  : पुं० [सं० प्र√भा+णिच्, पुक्, +ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रभापित] दीप्तिमान् करना।
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प्रभापूर्य  : वि० [सं० प्रभा-आपूर्य, तृ० त० ] १. प्रकाश से युक्त। २. प्रकाश करनेवाला। ३. प्रकाशित करनेवाला। उदा०—भारत के नभ का प्रभापूर्य।—निराला।
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प्रभाव  : पुं० [सं० प्र√भू (होना)+घञ्] १. अस्तित्व में आना। उद्भव। २. वह दबाव जो किसी के बुद्धि-बल, चारित्रिक विशेषता, उच्च पद आदि के फल-स्वरूप दूसरों पर पड़ता है। (इन्फ्लुएन्स) ३. वह अच्छा या बुरा परिणाम जो किसी चीज के गुणों के फलस्वरूप लक्षित होता है। (एफेक्ट) जैसे—शिक्षा या सिनेमा का प्रभाव, औषध या पुस्तक का प्रभाव। ४. ज्योतिष में, ग्रह या ग्रहों की विशिष्ट स्थिति के फल-स्वरूप किसी में सामान्य से भिन्न दिखलाई पड़नेवाले विकार। ५. दूसरों को किसी विशिष्ट विचारधारा का अनुयायी, समर्थक आदि बनाने अथवा किसी ओर से चलने का सामर्थ्य। जैसे—वे अपने प्रभाव से ही बहुत से काम करा लेते हैं। ६. उक्त सामर्थ्य के फलस्वरूप चारों छाया आतंक। जैसे—यहाँ भी उनका प्रभाव काम कर रहा है। ७. स्वारोचिष् मनु के एक पुत्र जो कलावती के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। (मार्कडेय पुराण)। ८. सूर्य के एक पुत्र। ९. सुग्रीव के एक मंत्री।
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प्रभाव-क्षेत्र  : पुं० [सं० ष० त०] आधुनिक राज-तंत्र में, वह क्षेत्र या प्रदेश जो किसी प्रबल और बड़े राज्य के प्रभाव या दबाव में रहता हो और जिस पर किसी दूसरे राज्य या राष्ट्र का प्रभाव अथवा हस्तपेक्ष सहन न किया जाता हो। (स्फीयर ऑफ इन्फ्लुएन्स)
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प्रभावक  : वि० [सं० भू+णिच्+ण्वुल्—अक] प्रभाव उत्पन्न करने या डालनेवाला। प्रभावशाली। उदा०—नवयुग का वाहक हो, नेता, लोक प्रभावक।—पंत।
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प्रभावज  : वि० [सं० प्रभाव√जन् (उत्पन्न होना)+ड] १. प्रभाव से उत्पन्न। प्रभावजात। पुं० १. राज्य की वह शक्ति जो उसके कोष, सेना आदि के मान पर आश्रित होती है। २. एक प्रकार का रोग जिसके सम्बन्ध में यह माना जाता है कि यह देवताओं, महात्माओं आदि के शाप अथवा ग्रहों के प्रकोप से उत्पन्न होता है।
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प्रभावती  : स्त्री० [सं० प्रभा+मतुप्, वत्व,+ङीप्] १. महाभारत के अनुसार सूर्य की पत्नी का नाम। २. कार्तिकेय की एक मातृका। ३. शिव के एक गण की वीणा। ४. प्रभाती नामक गीत। ५. रुचि नामक छन्द का एक नाम।
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प्रभावत्य  : पुं० [सं० प्रभवत्+ष्यञ्] प्रभुता। प्रभुत्व।
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प्रभावना  : स्त्री० [सं० प्र√भू+णिच्+युच्—अन,+टाप्] १. उद्भावना। २. प्रकाश।
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प्रभाववान् (वत्)  : वि० [सं० प्रभाव+मतुप्, वत्व]=प्रभावशाली।
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प्रभावशाली (लिन्)  : वि० [सं० प्रभाव√शाल्+णिनि] जिसमें यथेष्ट प्रभाव उत्पन्न करने की शक्ति हो। जो अच्छा या बहुत प्रभाव डाल सकता हो।
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प्रभावान्वित  : भू० कृ० [सं० प्रभाव-अन्वित, तृ० त०] किसी से प्रभावित।
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प्रभावित  : भू० कृ० [सं० प्र√भू+णिच्+क्त] जिस पर किसी का प्रभाव पड़ा हो। किसी के प्रभाव से दबा हुआ।
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प्रभाषण  : पुं० [सं० प्र√भाष्+ल्युट्—अन] कठिन पदो, वाक्यों, शब्दों आदि की व्याख्या।
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प्रभास  : वि० [सं० प्र√भास+अच; प्र√भास्+घञ्] १. जिसमें बहुत अधिक या यथेष्ट प्रभा हो। प्रभापूर्ण। २. बहुत चमकीला। पुं० १. ज्योति। २. दीप्ति। चमक। ३. एक वसु का नाम। ४. कार्तिकेय का एक अनुचर। ५. आठवें मंवंतर के एक देव-गण। ६. एक प्राचीन तीर्थ जिसे सोमतीर्थ भी कहते थे। ७. एक जैन गणाधिप।
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प्रभासन  : पुं० [सं० प्र√भास्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रभासित] १. प्रभास या दीप्ति उत्पन्न करना। २. दीप्ति। ज्योति।
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प्रभासना  : अ० [सं० प्रभासन] १. प्रकाशित होना। चमकना। २. भासित होना। कुछ कुछ दिखाई पड़ना। आभास होना। सं० १. प्रकाशित करना। २. चमकाना।
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