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प्रतिष्ठा  : स्त्री० [सं० प्रति√स्था+अङ्+टाप्] १. किसी चीज का कहीं अच्छी तरह रखा या स्थापित किया जाना। स्थापन। जैसे—मन्दिर में मूर्ति की प्रतिष्ठा; देव-मूर्ति में की जानेवाली प्राण-प्रतिष्ठा। २. ठहराव। स्थिति। ३. जगह। स्थान। ४. मान-मर्यादा। इज्जत। ५. आदर। सत्कार। ६. प्रख्याति। प्रसिद्धि। ७. कीर्ति। यश। ८. यश की प्राप्ति। ९. देह। शरीर। १॰. पृथ्वी। ११. व्रत का उद्यापन। १२. चार वर्णों के वृत्तों की संज्ञा। १३. एक प्रकार का छन्द।
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प्रतिष्ठान  : पुं० [सं० प्रति√स्था+ल्युट—अन] १. प्रतिष्ठित या स्थापित करने की क्रिया या भाव। बैठाना। स्थापन। २. मन्दिर आदि में देव-मूर्ति की स्थापना। ३. उपाधि। पदवी। ४. जड़। मूल। ५. जगह। स्थान। ६. व्रत आदि की समाप्ति पर किया जाने-वाला कृत्य। ७. दें० ‘प्रतिष्ठानुपुर’। ८. दक्षिण भारत का एक प्राचीन नगर जिसका आधुनिक नाम पैठण है।
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प्रतिष्ठानपुर  : पुं० [सं० ष० त०] १. गंगा और यमुना के संगम पर बसी हुई झूसी नामक बस्ती का पुराना नाम। २. गोदावरी के तट पर महाराष्ट्र देश का एक प्राचीन नगर जहाँ राजा शालिवाहन की राजधानी थी।
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प्रतिष्ठापन  : पुं० [सं० प्रति+स्था√णिच्, पुक्+ल्युट्—अन] प्रतिष्ठत अर्थात् स्थापित करने की क्रिया या भाव।
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प्रतिष्ठापयिता (तृ)  : पुं० [सं० प्रति √स्था+णिच्, पुक्, +तृच] प्रतिष्ठापन करनेवाला।
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प्रतिष्ठापित  : भू० कृ० [सं० प्रति+स्था√णिच्, पुक्+क्त] जिसका प्रतिष्ठापन किया गया हो या हुआ हो।
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