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पुतली  : स्त्री० [हिं० पुतला] १. लकड़ी, मट्टी, धातु, कपड़े आदि की बनी हुई स्त्री की आकृति विशेषतः वह जो विनोद या क्रीड़ा (खेल) के लिए हो। गुडिया। २. उक्त प्रकार की पुरुष या स्त्री की आकृति जिसका अभिनय या नृत्य मनोविनोद के लिए होता है। इसके अंगों मे डोरे, तार या बाल बंधे रहते हैं, जिनके संचालन से इसके अंग तरह तरह से हिलते-डुलते हैं। पद—पुतली का नाच=उक्त प्रकार की आकृतियों का अभिनय जो एक प्रकार की कला है। ४. बहुत ही सुन्दर, सजी हुई और सुकुमार स्त्री। ५. आँख का वह काला भाग जिसके बीच में वह छेद होता है जिससे होकर प्रकाश की किरणें अन्दर जाती हैं और मस्तिष्क में पदार्थों का प्रतिबिंब उपस्थित करती हैं। नेत्र के ज्योतिष्केन्द्र के चारों ओर का काला मंडल। मुहा०—पुतली फिर जाना=(क) आँखें पथरा जाना या नेत्र स्तब्ध होना जो किसी के मर जाने या मरणासन्न होने का लक्षण होता है। (ख) अभिमान, विरक्ति आदि के कारण पहले का सा स्नेहपूर्ण संबंध न रह जाना। रुख बदल जाना। ५. उक्त के आधार पर ऐसी चीज जिसे सुरक्षित रुप में रखा जाय। जैसे-बना रखूँ पुतली दृग की निर्धन का यही प्यार सखी।—दिनकर। ६. घोड़े की टाप का उभरा हुआ मांस पिंड।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुतली  : स्त्री० [हिं० पुतला] १. लकड़ी, मट्टी, धातु, कपड़े आदि की बनी हुई स्त्री की आकृति विशेषतः वह जो विनोद या क्रीड़ा (खेल) के लिए हो। गुडिया। २. उक्त प्रकार की पुरुष या स्त्री की आकृति जिसका अभिनय या नृत्य मनोविनोद के लिए होता है। इसके अंगों मे डोरे, तार या बाल बंधे रहते हैं, जिनके संचालन से इसके अंग तरह तरह से हिलते-डुलते हैं। पद—पुतली का नाच=उक्त प्रकार की आकृतियों का अभिनय जो एक प्रकार की कला है। ४. बहुत ही सुन्दर, सजी हुई और सुकुमार स्त्री। ५. आँख का वह काला भाग जिसके बीच में वह छेद होता है जिससे होकर प्रकाश की किरणें अन्दर जाती हैं और मस्तिष्क में पदार्थों का प्रतिबिंब उपस्थित करती हैं। नेत्र के ज्योतिष्केन्द्र के चारों ओर का काला मंडल। मुहा०—पुतली फिर जाना=(क) आँखें पथरा जाना या नेत्र स्तब्ध होना जो किसी के मर जाने या मरणासन्न होने का लक्षण होता है। (ख) अभिमान, विरक्ति आदि के कारण पहले का सा स्नेहपूर्ण संबंध न रह जाना। रुख बदल जाना। ५. उक्त के आधार पर ऐसी चीज जिसे सुरक्षित रुप में रखा जाय। जैसे-बना रखूँ पुतली दृग की निर्धन का यही प्यार सखी।—दिनकर। ६. घोड़े की टाप का उभरा हुआ मांस पिंड।
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पुतली-घर  : पुं० [हिं०] १. वह कारखाना जहाँ कलों या यंत्रों से सूत बनाया और कपड़ा बुना जाता है। विशेष—पहले प्रायः ऐसे कारखानों के मुख्य-द्वार पर पुतली की आकृति बनाकर खड़ी की जाती थी; इसी से इसका यह नाम पड़ा था। २. आजकल कोई बहुत बड़ा कारखाना जहाँ कलों या यंत्रों से कोई चीज बनती हो।
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पुतली-घर  : पुं० [हिं०] १. वह कारखाना जहाँ कलों या यंत्रों से सूत बनाया और कपड़ा बुना जाता है। विशेष—पहले प्रायः ऐसे कारखानों के मुख्य-द्वार पर पुतली की आकृति बनाकर खड़ी की जाती थी; इसी से इसका यह नाम पड़ा था। २. आजकल कोई बहुत बड़ा कारखाना जहाँ कलों या यंत्रों से कोई चीज बनती हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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