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पुट  : पुं० [सं०√पुट्(=मिलना)+क] १. किसी चीज की मोड़कर लगाई हुई तह या बनाई हुई परत। २. पत्तों आदि को मोड़कर बनाया हुआ पात्र। दोना। ३. खाली या खोखली जगह या स्थान। ४. किसी प्रकार का बना या बनाया हुआ आधान या पात्र। जैसे—अंजलि-पुट, श्रवण-पुट आदि। उदा०—पियत नयन पुट रूप पियूखा।—तुलसी ५. आच्छादित करने या ढकनेवाला आवरण या चीज। जैसे—नेत्र पुट (पलक); रद पुट (होंठ)। ६. वैद्यक में, वह मुँह-बंद बरतन जिसके अन्दर रखकर कोई ओषधि या दवा पिलाई, फूँकी या सिद्ध की जाती है। ७. वैद्यक में, औषध सिद्ध करने या भस्म, रस आदि बनाने की उक्त प्रकार की कोई प्रक्रिया। जैसे—गज-पुट, भांड पुट, महापुट आदि। विशेष—इसमें प्रायः एक पात्र में दवा रखी जाती है और उसके मुँह पर दूसरा पात्र रखकर चारों ओर से वह मुँह इस प्रकार बंद कर दिया जाता है कि न तो उसके अंदर कोई चीज जा सके और न अन्दर की कोई चीज बाहर आ सके। इसी लिए इसे ‘संपुट’ भी कहते हैं। ८. घोड़े की टाप। ९. जायफल। १॰. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण, एक मगण और एक यगण होता है। ११. अंतःपट। अंतरौटा। १२. कली के आकार का पौधे का वह अंग जिसमें से नये किल्ले फुटकर निकलते हैं। पुं० [सं० पुट=तह या परत] १. किसी चीज के ऊपर किसी दूसरी चीज की चढ़ाई, जमाई या लगाई हुई तह या परत। जैसे—इस पर गुलाबी रंग का एक पुट चढ़ा दो। २. किसी चीज में किसी दूसरी चीज का वह थोड़ा सा अंश जो हलकी मिलावट के लिए उसमें डाला जाता है। जैसे—(क) शीरा पकाते समय उसमें दूध का पुट भी देते चलते हैं। (ख) इस शरबत में संतरे का भी पुट है। मुहा०—पुट देना=कपड़े पर माँडी का छींटा देना। (जुलाहे)। ३. लाक्षणिक रूप में, किसी बात की हलकी मिलावट या थोड़ा सा मेल। जैसे—उनके भाषण में परिहास का भी कुछ पुट रहता है। पुं० [अनु०] किसी प्रकार उत्पन्न होनेवाला पुट शब्द। जैसे—उँगलियाँ चटकाने या कलियों के चटकने के समय होनेवाला पुट शब्द।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुट  : पुं० [सं०√पुट्(=मिलना)+क] १. किसी चीज की मोड़कर लगाई हुई तह या बनाई हुई परत। २. पत्तों आदि को मोड़कर बनाया हुआ पात्र। दोना। ३. खाली या खोखली जगह या स्थान। ४. किसी प्रकार का बना या बनाया हुआ आधान या पात्र। जैसे—अंजलि-पुट, श्रवण-पुट आदि। उदा०—पियत नयन पुट रूप पियूखा।—तुलसी ५. आच्छादित करने या ढकनेवाला आवरण या चीज। जैसे—नेत्र पुट (पलक); रद पुट (होंठ)। ६. वैद्यक में, वह मुँह-बंद बरतन जिसके अन्दर रखकर कोई ओषधि या दवा पिलाई, फूँकी या सिद्ध की जाती है। ७. वैद्यक में, औषध सिद्ध करने या भस्म, रस आदि बनाने की उक्त प्रकार की कोई प्रक्रिया। जैसे—गज-पुट, भांड पुट, महापुट आदि। विशेष—इसमें प्रायः एक पात्र में दवा रखी जाती है और उसके मुँह पर दूसरा पात्र रखकर चारों ओर से वह मुँह इस प्रकार बंद कर दिया जाता है कि न तो उसके अंदर कोई चीज जा सके और न अन्दर की कोई चीज बाहर आ सके। इसी लिए इसे ‘संपुट’ भी कहते हैं। ८. घोड़े की टाप। ९. जायफल। १॰. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण, एक मगण और एक यगण होता है। ११. अंतःपट। अंतरौटा। १२. कली के आकार का पौधे का वह अंग जिसमें से नये किल्ले फुटकर निकलते हैं। पुं० [सं० पुट=तह या परत] १. किसी चीज के ऊपर किसी दूसरी चीज की चढ़ाई, जमाई या लगाई हुई तह या परत। जैसे—इस पर गुलाबी रंग का एक पुट चढ़ा दो। २. किसी चीज में किसी दूसरी चीज का वह थोड़ा सा अंश जो हलकी मिलावट के लिए उसमें डाला जाता है। जैसे—(क) शीरा पकाते समय उसमें दूध का पुट भी देते चलते हैं। (ख) इस शरबत में संतरे का भी पुट है। मुहा०—पुट देना=कपड़े पर माँडी का छींटा देना। (जुलाहे)। ३. लाक्षणिक रूप में, किसी बात की हलकी मिलावट या थोड़ा सा मेल। जैसे—उनके भाषण में परिहास का भी कुछ पुट रहता है। पुं० [अनु०] किसी प्रकार उत्पन्न होनेवाला पुट शब्द। जैसे—उँगलियाँ चटकाने या कलियों के चटकने के समय होनेवाला पुट शब्द।
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पुट-कंद  : पुं० [सं० ब० स०] कोलकंद। वाराही कंद।
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पुट-कंद  : पुं० [सं० ब० स०] कोलकंद। वाराही कंद।
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पुट-ग्रीव  : पुं० [सं० ब० स०] गगरा। कलसा।
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पुट-ग्रीव  : पुं० [सं० ब० स०] गगरा। कलसा।
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पुट-पाक  : पुं० [तृ० त०] १. पत्ते के दोने या और किसी प्रकार के पुट में रखकर औषध पकाने अथवा भस्म या रस बनाने की क्रिया या विधान (वैद्यक)।
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पुट-पाक  : पुं० [तृ० त०] १. पत्ते के दोने या और किसी प्रकार के पुट में रखकर औषध पकाने अथवा भस्म या रस बनाने की क्रिया या विधान (वैद्यक)।
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पुट-भेद  : पुं० [सं० पुट√भिद् (फाड़ना)+अण्] १. जल का भँवर। २. नगर। पत्तन। ३. पुरानी चाल का एक प्रकार का बाजा।
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पुट-भेद  : पुं० [सं० पुट√भिद् (फाड़ना)+अण्] १. जल का भँवर। २. नगर। पत्तन। ३. पुरानी चाल का एक प्रकार का बाजा।
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पुटक  : पुं० [सं० पुट√कै (भासित होना)+क] कमल।
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पुटक  : पुं० [सं० पुट√कै (भासित होना)+क] कमल।
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पुटकिनी  : स्त्री० [सं० पुटक+इनि—ङीष्] १. पद्मिनी। कमलिनी। २. कमलों का समूह। पद्म-जाल। ३. ऐसा स्थान जहाँ कमल अधिकता से होते हों।
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पुटकिनी  : स्त्री० [सं० पुटक+इनि—ङीष्] १. पद्मिनी। कमलिनी। २. कमलों का समूह। पद्म-जाल। ३. ऐसा स्थान जहाँ कमल अधिकता से होते हों।
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पुटकी  : स्त्री० [सं० पुटक=दोना] छोटी गठरी। पोटली। स्त्री० [पुट से अनु०] १. कीड़े-मकोड़े की तरह होनेवाली आकस्मिक तथा तुच्छतापूर्ण मृत्यु। २. आकस्मिक दैवी विपत्ति। बहुत बड़ी आफत। गजब। मुहा०—(किसी पर) पुटकी पड़ना=(क) आकस्मिक दुर्घटना, रोग आदि के कारण चटपट मर जाना। (ख) बहुत बड़ी दैवी विपत्ति आना या पड़ना। (स्त्रियों की गाली या शाप) जैसे—पुटकी पड़े ऐसी मजदूरनी पर। स्त्री० [हिं० पुट=हलका मेल] वह बेसन या आटा जो तरकारी के रसे में उसे गाढ़ा करने के लिए मिलाया जाता है। आलन।
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पुटकी  : स्त्री० [सं० पुटक=दोना] छोटी गठरी। पोटली। स्त्री० [पुट से अनु०] १. कीड़े-मकोड़े की तरह होनेवाली आकस्मिक तथा तुच्छतापूर्ण मृत्यु। २. आकस्मिक दैवी विपत्ति। बहुत बड़ी आफत। गजब। मुहा०—(किसी पर) पुटकी पड़ना=(क) आकस्मिक दुर्घटना, रोग आदि के कारण चटपट मर जाना। (ख) बहुत बड़ी दैवी विपत्ति आना या पड़ना। (स्त्रियों की गाली या शाप) जैसे—पुटकी पड़े ऐसी मजदूरनी पर। स्त्री० [हिं० पुट=हलका मेल] वह बेसन या आटा जो तरकारी के रसे में उसे गाढ़ा करने के लिए मिलाया जाता है। आलन।
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पुटटी  : स्त्री० [देश०] मछलियाँ पकड़ने का बड़ा झाबा।
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पुटटी  : स्त्री० [देश०] मछलियाँ पकड़ने का बड़ा झाबा।
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पुटरिया  : स्त्री०=पोटली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पुटरिया  : स्त्री०=पोटली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पुटरी  : स्त्री०=पोटली।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पुटरी  : स्त्री०=पोटली।
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पुटालु  : पुं० [सं० पुट-आलु, कर्म० स०] कोलकंद।
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पुटालु  : पुं० [सं० पुट-आलु, कर्म० स०] कोलकंद।
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पुटास  : पुं०=पोटास।
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पुटिका  : स्त्री० [सं० पुट+ठन्—इक, टाप्] १. पुड़िया। २. इलायची।
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पुटिका  : स्त्री० [सं० पुट+ठन्—इक, टाप्] १. पुड़िया। २. इलायची।
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पुटित  : भू० कृ० [सं० पुट+इतच्] १. जो किसी प्रकार के पुट में आया या लाया गया हो। २. जो सिमटकर दोने के आकार का हो गया हो। ३. संकुचित। सिकुड़ा हुआ। ४. पटा या पाटा हुआ। ५. मिला हुआ। ६. चारों ओर से बन्द किया हुआ। ७. (औषध) जो पुटी के रूप में किसी आवरण के अंदर हो। (कैप्स्यूल्ड)
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पुटित  : भू० कृ० [सं० पुट+इतच्] १. जो किसी प्रकार के पुट में आया या लाया गया हो। २. जो सिमटकर दोने के आकार का हो गया हो। ३. संकुचित। सिकुड़ा हुआ। ४. पटा या पाटा हुआ। ५. मिला हुआ। ६. चारों ओर से बन्द किया हुआ। ७. (औषध) जो पुटी के रूप में किसी आवरण के अंदर हो। (कैप्स्यूल्ड)
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पुटिया  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की छोटी मछली।
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पुटियाना  : स० [हिं० पुट+देना] फुसला या समझा-बुझाकर किसी को अनुकूल या राजी करना।
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पुटियाना  : स० [हिं० पुट+देना] फुसला या समझा-बुझाकर किसी को अनुकूल या राजी करना।
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पुटी  : स्त्री० [सं० पुट+ङीष्] १. छोटा दोना। छोटा कटोरा। २. खाली स्थान जिसमें कोई वस्तु रखी जा सके। जैसे—चंचुपुटी। ३. पुड़िया। ४. लंगोटी। ५. खाने के लिए गोली या टिकिया के रूप में, वह औषध जो किसी ऐसे आवरण में बंद हो जो औषध के साथ खाया जा सके। (कैप्स्यूल) वि० (औषध) जो पुट-पाक की विधि में प्रस्तुत हो। (समस्त पदों के अन्त में) जैसे—सहस्रपुटी अभ्रक।
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पुटी  : स्त्री० [सं० पुट+ङीष्] १. छोटा दोना। छोटा कटोरा। २. खाली स्थान जिसमें कोई वस्तु रखी जा सके। जैसे—चंचुपुटी। ३. पुड़िया। ४. लंगोटी। ५. खाने के लिए गोली या टिकिया के रूप में, वह औषध जो किसी ऐसे आवरण में बंद हो जो औषध के साथ खाया जा सके। (कैप्स्यूल) वि० (औषध) जो पुट-पाक की विधि में प्रस्तुत हो। (समस्त पदों के अन्त में) जैसे—सहस्रपुटी अभ्रक।
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पुटीन  : पुं० [अं० पुटी] लकड़ी की संधियों या छेदों आदि में भरने का एक तरह का मसाला जो अलसी के तेल में खड़िया मिट्टी मिलाकर मिलाया जाता है।
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पुटीन  : पुं० [अं० पुटी] लकड़ी की संधियों या छेदों आदि में भरने का एक तरह का मसाला जो अलसी के तेल में खड़िया मिट्टी मिलाकर मिलाया जाता है।
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पुटोटज  : पुं० [सं० पुट-उटज, उपमि० स०] सफेद छाता।
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पुटोटज  : पुं० [सं० पुट-उटज, उपमि० स०] सफेद छाता।
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पुटोदक  : पुं० [सं० पुट-उदक, ब० स०] नारियल।
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पुटोदक  : पुं० [सं० पुट-उदक, ब० स०] नारियल।
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पुट्ठा  : पुं० [सं० पृष्ठ] १. कमर के पास का चूतड़ का ऊपरी भाग। २. चौपाये, विशेषतः घोड़े का चूतड़। मुहा०—पुट्ठे पर हाथ न रखने देना=(क) चंचलता और तेजी के कारण सवार को पास न आने देना। (घोड़ों के लिए) (ख) अपना दोष छिपाने के लिए चतुर व्यक्ति का कौशलपूर्वक कोई ऐसी बात न होने देना जिससे वह पकड़ में आ सके। ३. उक्त अंग पर का चमड़ा जो अपेक्षया अधिक मजबूत होता है। (मोची) ४. घोड़ों की संख्या का सूचक शब्द। रास। जैसे—इस साल उसने चार पुट्ठे खरीदे हैं। ५. किसी पुस्तक की जिल्द या मोटाई का वह पिछला भाग, जिसके अन्दर उसकी सिलाई रहती है।
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पुट्ठा  : पुं० [सं० पृष्ठ] १. कमर के पास का चूतड़ का ऊपरी भाग। २. चौपाये, विशेषतः घोड़े का चूतड़। मुहा०—पुट्ठे पर हाथ न रखने देना=(क) चंचलता और तेजी के कारण सवार को पास न आने देना। (घोड़ों के लिए) (ख) अपना दोष छिपाने के लिए चतुर व्यक्ति का कौशलपूर्वक कोई ऐसी बात न होने देना जिससे वह पकड़ में आ सके। ३. उक्त अंग पर का चमड़ा जो अपेक्षया अधिक मजबूत होता है। (मोची) ४. घोड़ों की संख्या का सूचक शब्द। रास। जैसे—इस साल उसने चार पुट्ठे खरीदे हैं। ५. किसी पुस्तक की जिल्द या मोटाई का वह पिछला भाग, जिसके अन्दर उसकी सिलाई रहती है।
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