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शब्द का अर्थ

पिंगल  : वि० [सं० पिंग+लच्] १. पीला। २. भूरापन लिये हुए पीला या लाल। तमड़ा। पुं० १. एक प्राचीन मुनि या आचार्य जिन्होंने छंदः सूत्र की रचना की थी। नागमुनि। २. उक्त मुनि का बनाया हुआ छंद शास्त्र। ३. किसी प्रकार का भाषा या छन्द शास्त्र। (प्रॉसोडी) मुहा०—(किसी को) पिंगल पढ़ाना=अपना दोष छिपाने या मतलब निकालने के लिए उलटी-सीधी बातें समझाना। पिंगल साधना=(क) टालमटोल करना। (ख) नखरा करना। इतराना। ४. साठ संवत्सरों में से ५१वाँ संवत्सर। ५. संगीत में, सबेरे के समय गाया जानेवाला एक राग जो भैरव राग का पुत्र कहा गया है। ६. सूर्य का एक गण या पारिपार्श्वक। ७. एक यक्ष का नाम। ८. नौ निधियों में से एक। ९. अग्नि। आग। १॰. नकुल। नेवला। ११. बन्दर। १२. एक प्रकार का यज्ञ। १३. एक प्राचीन पर्वत। १४. पुराणानुसार भारत के उत्तर-पश्चिम का देश। १५. हरताल। १६. उल्लू। १७. पीपल। १८. उशीर। खस। १९. रास्ना। २॰. एक प्रकार का फनदार साँप। २१. एक प्रकार का स्थावर विष। २२. ब्रजभाषा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) विशेष—किसी समय व्रजभाषा में ही अधिकतर काव्यों की रचना होती थी; और वही काव्य की मुख्य भाषा मानी जाती थी; इसी से उसका यह नाम पड़ा था। पुं०=पंगुल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पिंगल  : वि० [सं० पिंग+लच्] १. पीला। २. भूरापन लिये हुए पीला या लाल। तमड़ा। पुं० १. एक प्राचीन मुनि या आचार्य जिन्होंने छंदः सूत्र की रचना की थी। नागमुनि। २. उक्त मुनि का बनाया हुआ छंद शास्त्र। ३. किसी प्रकार का भाषा या छन्द शास्त्र। (प्रॉसोडी) मुहा०—(किसी को) पिंगल पढ़ाना=अपना दोष छिपाने या मतलब निकालने के लिए उलटी-सीधी बातें समझाना। पिंगल साधना=(क) टालमटोल करना। (ख) नखरा करना। इतराना। ४. साठ संवत्सरों में से ५१वाँ संवत्सर। ५. संगीत में, सबेरे के समय गाया जानेवाला एक राग जो भैरव राग का पुत्र कहा गया है। ६. सूर्य का एक गण या पारिपार्श्वक। ७. एक यक्ष का नाम। ८. नौ निधियों में से एक। ९. अग्नि। आग। १॰. नकुल। नेवला। ११. बन्दर। १२. एक प्रकार का यज्ञ। १३. एक प्राचीन पर्वत। १४. पुराणानुसार भारत के उत्तर-पश्चिम का देश। १५. हरताल। १६. उल्लू। १७. पीपल। १८. उशीर। खस। १९. रास्ना। २॰. एक प्रकार का फनदार साँप। २१. एक प्रकार का स्थावर विष। २२. ब्रजभाषा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) विशेष—किसी समय व्रजभाषा में ही अधिकतर काव्यों की रचना होती थी; और वही काव्य की मुख्य भाषा मानी जाती थी; इसी से उसका यह नाम पड़ा था। पुं०=पंगुल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पिंगला  : स्त्री० [सं० पिंगल+टाप्] १. हठयोग में, सुषुम्ना नाड़ी के बाईं ओर स्थित एक नाड़ी जिससे दक्षिण नासा-पुट का श्वास चलता है। इसमें सूर्य का वास माना गया है। इसलिए इसे सूर्यनाड़ी भी कहते हैं। यह स्वभाव से उष्ण है। इसके अधिष्ठाता देवता विष्णु माने जाते हैं। २. लक्ष्मी। ३. दक्षिण दिशा के दिग्गज की पत्नी। ४. गोरोचन। ५. एक प्रकार की चिड़िया। ६. शीशम का पेड़। ७. राजनीति। ८. भागवत के अनुसार एक प्रसिद्ध भगवद् भक्त वेश्या।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पिंगला  : स्त्री० [सं० पिंगल+टाप्] १. हठयोग में, सुषुम्ना नाड़ी के बाईं ओर स्थित एक नाड़ी जिससे दक्षिण नासा-पुट का श्वास चलता है। इसमें सूर्य का वास माना गया है। इसलिए इसे सूर्यनाड़ी भी कहते हैं। यह स्वभाव से उष्ण है। इसके अधिष्ठाता देवता विष्णु माने जाते हैं। २. लक्ष्मी। ३. दक्षिण दिशा के दिग्गज की पत्नी। ४. गोरोचन। ५. एक प्रकार की चिड़िया। ६. शीशम का पेड़। ७. राजनीति। ८. भागवत के अनुसार एक प्रसिद्ध भगवद् भक्त वेश्या।
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पिंगलाक्ष  : पुं० [सं० पिंगल+अक्षि, ब० स०, षच्] शिव।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पिंगलाक्ष  : पुं० [सं० पिंगल+अक्षि, ब० स०, षच्] शिव।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पिंगलिका  : स्त्री० [सं० पिंगल+कन्+टाप्, इत्व] १. एक प्रकार का बगला। २. एक प्रकार का उल्लू। ३. सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार की मक्खी जिसके काटने से जलन और सूजन होती है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पिंगलिका  : स्त्री० [सं० पिंगल+कन्+टाप्, इत्व] १. एक प्रकार का बगला। २. एक प्रकार का उल्लू। ३. सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार की मक्खी जिसके काटने से जलन और सूजन होती है।
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पिंगलित  : वि० [सं० पिंगल+इतच्] ललाई लिये हुए भूरे रंग का।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पिंगलित  : वि० [सं० पिंगल+इतच्] ललाई लिये हुए भूरे रंग का।
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