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पश्च  : वि० [सं० पश्चात्, पृषो० सिद्धि] [भाव० पश्चता] १. प्रस्तुत या वर्तमान से पहले का। पिछला। (बैक) जैसे—सामयिक पत्र का पश्च अंक। (बैक नम्बर) २. ‘अग्र’ का विपर्याय। जैसे—पश्चस्वर (बैक वावेल) आदि। ३. बाद का। परवर्त्ती। ४. पश्चिम का। पश्चिमी। विशेष—‘पश्च’ और ‘पश्चा’ शब्द का प्रयोग वेद में ही होता है। लौकिक संस्कृत में इसका प्रयोग चिन्त्य है। फिर भी हिन्दी में इसके प्रयोग के चल पड़ने के कारण यहाँ इसके कुछ यौगिक शब्द रखे जा रहे हैं।
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पश्च  : वि० [सं० पश्चात्, पृषो० सिद्धि] [भाव० पश्चता] १. प्रस्तुत या वर्तमान से पहले का। पिछला। (बैक) जैसे—सामयिक पत्र का पश्च अंक। (बैक नम्बर) २. ‘अग्र’ का विपर्याय। जैसे—पश्चस्वर (बैक वावेल) आदि। ३. बाद का। परवर्त्ती। ४. पश्चिम का। पश्चिमी। विशेष—‘पश्च’ और ‘पश्चा’ शब्द का प्रयोग वेद में ही होता है। लौकिक संस्कृत में इसका प्रयोग चिन्त्य है। फिर भी हिन्दी में इसके प्रयोग के चल पड़ने के कारण यहाँ इसके कुछ यौगिक शब्द रखे जा रहे हैं।
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पश्च-गमन  : पुं० [सं० स० त०] १. पीछे की ओर चलना या हटना। ‘अग्र-गमन’ का विपर्याय। (रिग्रेशन)। २. अवनति, दुरवस्था, ह्रास आदि की ओर प्रवृत्त होना। ‘पुरोगमन’ का विपर्याय। (रिट्रोग्रेशन)
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पश्च-गमन  : पुं० [सं० स० त०] १. पीछे की ओर चलना या हटना। ‘अग्र-गमन’ का विपर्याय। (रिग्रेशन)। २. अवनति, दुरवस्था, ह्रास आदि की ओर प्रवृत्त होना। ‘पुरोगमन’ का विपर्याय। (रिट्रोग्रेशन)
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पश्च-गामी (मिन्)  : वि० [सं० पश्च√गम्(जाना)+णिनि] १. पीछे की ओर चलता या हटता रहनेवाला। २. अवनति। दुरावस्था, ह्रास आदि की ओर प्रवृत्त रहनेवाला। ‘पुरोगामी’ का विपर्याय। (रिग्रेसिव)
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पश्च-गामी (मिन्)  : वि० [सं० पश्च√गम्(जाना)+णिनि] १. पीछे की ओर चलता या हटता रहनेवाला। २. अवनति। दुरावस्था, ह्रास आदि की ओर प्रवृत्त रहनेवाला। ‘पुरोगामी’ का विपर्याय। (रिग्रेसिव)
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पश्च-ज्ञान  : पुं० [सं० ष० त०] विशिष्ट आत्मिक शक्ति की सहायता से इस जन्म या किसी पूर्व जन्म की ऐसी बीती हुई घटनाओं या बातों का होनेवाला ज्ञान जो कभी पहले जानी, देखी, पढ़ी या सुनी न हों। ‘पूर्व-ज्ञान’ का विपर्याय।
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पश्च-ज्ञान  : पुं० [सं० ष० त०] विशिष्ट आत्मिक शक्ति की सहायता से इस जन्म या किसी पूर्व जन्म की ऐसी बीती हुई घटनाओं या बातों का होनेवाला ज्ञान जो कभी पहले जानी, देखी, पढ़ी या सुनी न हों। ‘पूर्व-ज्ञान’ का विपर्याय।
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पश्च-दर्शन  : पुं० [सं० स० त०] १. पीछे की ओर मुड़कर देखना। २. पिछली या बीती हुई बातें याद करके उन पर विचार करना। (टिट्रस्पेक्शन) ३. विशिष्ट आत्मिक शक्ति की सहायता से ऐसी पुरानी घटनाएँ, बातें, व्यक्तियों की आकृतियाँ आदि आँखों के सामने देखना जो कभी देखी न हों। ‘पूर्व दर्शन’ का विपर्याय। (रिट्रो-कॉग्निशन)
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पश्च-दर्शन  : पुं० [सं० स० त०] १. पीछे की ओर मुड़कर देखना। २. पिछली या बीती हुई बातें याद करके उन पर विचार करना। (टिट्रस्पेक्शन) ३. विशिष्ट आत्मिक शक्ति की सहायता से ऐसी पुरानी घटनाएँ, बातें, व्यक्तियों की आकृतियाँ आदि आँखों के सामने देखना जो कभी देखी न हों। ‘पूर्व दर्शन’ का विपर्याय। (रिट्रो-कॉग्निशन)
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पश्च-दर्शी (शिनि)  : वि० [सं० पश्च√दृश् (देखना) +णिनि] पश्चदर्शन करनेवाला।
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पश्च-दर्शी (शिनि)  : वि० [सं० पश्च√दृश् (देखना) +णिनि] पश्चदर्शन करनेवाला।
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पश्च-परिणाम  : पुं०=पश्च-प्रभाव।
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पश्च-प्रभाव  : पुं० [सं० मध्य० स०] किसी कार्य या वस्तु का वह परिणाम या प्रभाव जो कुछ समय बीतने पर दिखाई देता हो। (आफ्टरएफेक्ट)
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पश्च-प्रभाव  : पुं० [सं० मध्य० स०] किसी कार्य या वस्तु का वह परिणाम या प्रभाव जो कुछ समय बीतने पर दिखाई देता हो। (आफ्टरएफेक्ट)
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पश्च-लेख  : पुं० [सं०] कोई पत्र, लेख आदि लिखे जाने के उपरांत बाद में याद आने पर उसके अंत में बढ़ाकर लिखी जानेवाली कोई और बात या लेखांश। (पोस्टस्क्रिप्ट)
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पश्च-लेख  : पुं० [सं०] कोई पत्र, लेख आदि लिखे जाने के उपरांत बाद में याद आने पर उसके अंत में बढ़ाकर लिखी जानेवाली कोई और बात या लेखांश। (पोस्टस्क्रिप्ट)
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पश्चतापी (पिन्)  : पुं० [सं० पश्चा√आप् (लाभ)+णिनि] नौकर। सेवक।
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पश्चतापी (पिन्)  : पुं० [सं० पश्चा√आप् (लाभ)+णिनि] नौकर। सेवक।
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पश्चदर्शिक  : वि० [सं०] १. जिसका संबंध पश्च-दर्शन से हो। पश्च-दर्शन का। २. जिसका परिणाम या प्रभाव पिछली या बीती हुई बातों पर भी पड़ता हो। पूर्व-व्याप्ति। (रिट्रास्पेक्टिव) जैसे—इस निर्णय का प्रभाव पश्च-दर्शिक होगा, अर्थात् पिछली या बीती हुई घटनाओं या बातों पर भी पड़ेगा।
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पश्चदर्शिक  : वि० [सं०] १. जिसका संबंध पश्च-दर्शन से हो। पश्च-दर्शन का। २. जिसका परिणाम या प्रभाव पिछली या बीती हुई बातों पर भी पड़ता हो। पूर्व-व्याप्ति। (रिट्रास्पेक्टिव) जैसे—इस निर्णय का प्रभाव पश्च-दर्शिक होगा, अर्थात् पिछली या बीती हुई घटनाओं या बातों पर भी पड़ेगा।
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पश्चात्  : अव्य० [सं० अपर+आति, पश्च-आदेश] किसी अवधि, क्रम, घटना आदि के बीतने अथवा कुछ समय व्यतीत होने पर। उपरांत। पीछे। बाद। पुं० १. पश्चिम दिशा। २. अंत। समाप्ति। ३. अधिकार।
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पश्चात्  : अव्य० [सं० अपर+आति, पश्च-आदेश] किसी अवधि, क्रम, घटना आदि के बीतने अथवा कुछ समय व्यतीत होने पर। उपरांत। पीछे। बाद। पुं० १. पश्चिम दिशा। २. अंत। समाप्ति। ३. अधिकार।
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पश्चात् कर्म (र्मन्)  : पुं० [सं० मध्य० स०] वैद्यक के अनुसार वह कर्म जिससे रोगी के स्वस्थ होने के उपरान्त उसके शरीर के बल, वर्ण और अग्नि की वृद्धि होती हो। भिन्न-भिन्न रोगों से मुक्त होने पर भिन्न-भिन्न पश्चात् कर्म बतलाये गये हैं।
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पश्चात् कर्म (र्मन्)  : पुं० [सं० मध्य० स०] वैद्यक के अनुसार वह कर्म जिससे रोगी के स्वस्थ होने के उपरान्त उसके शरीर के बल, वर्ण और अग्नि की वृद्धि होती हो। भिन्न-भिन्न रोगों से मुक्त होने पर भिन्न-भिन्न पश्चात् कर्म बतलाये गये हैं।
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पश्चात्ताप  : पुं० [सं० मध्य स०] अपने किसी कर्म के अनौचित्य का भान होने पर मन में होनेवाला दुःख जो यह सोचने को विवश करता है कि मैंने यह काम क्यों किया। २. किसी किये हुए अनुचित कर्म के पाप से मुक्त होने के लिए अथवा अपनी आत्मा को शांति देने के लिए किया जानेवाला तप।
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पश्चात्ताप  : पुं० [सं० मध्य स०] अपने किसी कर्म के अनौचित्य का भान होने पर मन में होनेवाला दुःख जो यह सोचने को विवश करता है कि मैंने यह काम क्यों किया। २. किसी किये हुए अनुचित कर्म के पाप से मुक्त होने के लिए अथवा अपनी आत्मा को शांति देने के लिए किया जानेवाला तप।
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पश्चात्तापी (पिन्  : वि० [सं० पश्चात्ताप+इनि] जो पश्चात्ताप करता हो।
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पश्चात्तापी (पिन्  : वि० [सं० पश्चात्ताप+इनि] जो पश्चात्ताप करता हो।
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पश्चाद्भाग  : पुं० [सं० ष० त०] १. पीछे का हिस्सा। २. पश्चिमी भाग।
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पश्चाद्वर्ती (र्तिन्)  : वि० [सं० पश्चात्√वृ (बरतना) +णिनि] १. पीछे रनहेवाला। २. अनुसरण करनेवाला।
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पश्चाद्वर्ती (र्तिन्)  : वि० [सं० पश्चात्√वृ (बरतना) +णिनि] १. पीछे रनहेवाला। २. अनुसरण करनेवाला।
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पश्चानुताप  : पुं० [सं० पश्च-अनुताप, स० त०] पश्चाताप।
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पश्चानुताप  : पुं० [सं० पश्च-अनुताप, स० त०] पश्चाताप।
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पश्चारुज  : पुं० [सं० कर्म० स०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का रोग जो कदन्न खानेवाली स्त्रियों का दूध पीनेवाले बालकों को होता है। इसमें बालकों को हरे-पीले रंग के दस्त आने लगते हैं और तेज़ ज्वर होता है।
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पश्चारुज  : पुं० [सं० कर्म० स०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का रोग जो कदन्न खानेवाली स्त्रियों का दूध पीनेवाले बालकों को होता है। इसमें बालकों को हरे-पीले रंग के दस्त आने लगते हैं और तेज़ ज्वर होता है।
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पश्चिम  : वि० [सं० पश्चात्-डिमच्] १. जो पीछे से या बाद में उत्पन्न हुआ हो। २. अंतिम। पिछला। पुं० [वि० पश्चिमी] वह दिशा जिसमें सूर्य अस्त होता है। पूर्व दिशा के सामनेवाली दिशा। प्रतीची। वारुणी। पश्चिम।
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पश्चिम  : वि० [सं० पश्चात्-डिमच्] १. जो पीछे से या बाद में उत्पन्न हुआ हो। २. अंतिम। पिछला। पुं० [वि० पश्चिमी] वह दिशा जिसमें सूर्य अस्त होता है। पूर्व दिशा के सामनेवाली दिशा। प्रतीची। वारुणी। पश्चिम।
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पश्चिम-घाट  : पुं०=पश्चिमी घाट।
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पश्चिम-प्लव  : पुं० [ब० स०] वह भूमि जो पश्चिम की ओर झुकी हो।
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पश्चिम-याम-कृत्य  : पुं० [सं० पश्चिम-याम, कर्म० स०, पश्चिम परम-कृत्य, ष० त०] बौद्धों के अनुसार रात के पिछले पहर में किया जानेवाला धार्मिक कृत्य।
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पश्चिम-याम-कृत्य  : पुं० [सं० पश्चिम-याम, कर्म० स०, पश्चिम परम-कृत्य, ष० त०] बौद्धों के अनुसार रात के पिछले पहर में किया जानेवाला धार्मिक कृत्य।
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पश्चिम-वाहिनी  : वि० स्त्री० [कर्म० स०] जो पश्चिम दिशा की ओर बहती हो।
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पश्चिम-सागर  : पुं० [कर्म० स०] आयरलैंड और अमेरिका के बीच का समुद्र। एटलांटिक या अतलांतक महासागर।
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पश्चिम-सागर  : पुं० [कर्म० स०] आयरलैंड और अमेरिका के बीच का समुद्र। एटलांटिक या अतलांतक महासागर।
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पश्चिमा  : स्त्री० [सं० पश्चिम+टाप्] पश्चिम दिशा।
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पश्चिमांचल  : पुं० [पश्चिम-अंचल, कर्म० स०] अस्ताचल। (दे०)
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पश्चिमार्द्ध  : पं० [पश्चिम-अर्द्ध, कर्म० स०] पीछेवाला आधा भाग। अपरार्द्ध।
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पश्चिमी  : वि० [सं० पश्चिम] १. पश्चिम दिशा संबंधी। २. पश्चिम की ओर अर्थात् पश्चिमी देशों में होनेवाला। ३. पश्चिम से आनेवाला। पछवाँ।
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पश्चिमी हिंदी  : स्त्री० [हिं०] भाषा-विद् ग्रियर्सन के मत से, पश्चिमी भारत में बोली जानेवाली खड़ी बोली, बाँगड़ू, ब्रजभाषा, कन्नौजी और बुंदेली बोलियों का एक वर्ग (पूर्वी हिन्दी से भिन्न) जो संभवतः शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित हुआ था।
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पश्चिमी हिंदी  : स्त्री० [हिं०] भाषा-विद् ग्रियर्सन के मत से, पश्चिमी भारत में बोली जानेवाली खड़ी बोली, बाँगड़ू, ब्रजभाषा, कन्नौजी और बुंदेली बोलियों का एक वर्ग (पूर्वी हिन्दी से भिन्न) जो संभवतः शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित हुआ था।
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पश्चिमी-घाट  : पुं० [हिं० पश्चिमी+घाट्] केरल और आधुनिक महाराष्ट्र राज्य के बीच में समुद्र के किनारे-किनारे गई हुई पर्वतमाला।
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पश्चिमी-घाट  : पुं० [हिं० पश्चिमी+घाट्] केरल और आधुनिक महाराष्ट्र राज्य के बीच में समुद्र के किनारे-किनारे गई हुई पर्वतमाला।
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पश्चिमोत्तर  : वि० [सं० पश्चिम-उत्तर, ब० स०] पश्चिम और उत्तर दिशाओं के बीच में स्थित। पुं० वायव्य कोण।
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पश्चिमोत्तर  : वि० [सं० पश्चिम-उत्तर, ब० स०] पश्चिम और उत्तर दिशाओं के बीच में स्थित। पुं० वायव्य कोण।
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पश्चिमोत्तरा  : स्त्री० [सं० पश्चिमोत्तर+टाप्] उत्तर और पश्चिम के बीच की विदिशा। वायव्य कोण।
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पश्चिमोत्तरा  : स्त्री० [सं० पश्चिमोत्तर+टाप्] उत्तर और पश्चिम के बीच की विदिशा। वायव्य कोण।
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