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परछा  : पुं० [सं० प्रणिच्छद] १. वह कपड़ा जिससे तेली कोल्हू के बैल की आँखों में अँधोटी बाँधते हैं। २. जुलाहों की वह नली या फिरकी जिस पर बाने का सूत लपेटा रहता है। घिरनी। पुं० [सं० परिच्छेद] १. बहुत सी घनी वस्तुओं के घने समूह में से कुछ के निकल जाने से पड़ा हुआ अवकाश। विरलता। २. मनुष्यों की वह विरलता जो किसी स्थान की भीड़ छँट जाने पर होती है। ३. अंत। समाप्ति। ४. निपटारा। ५. निर्माण। पुं० [?] [स्त्री० अल्पा० परछी] १. बड़ी बटलोई। देगची। २. कड़ाही। ३. मँझोले आकार का मिट्टी का एक बरतन।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परछाईं  : स्त्री० [सं० प्रतिच्छाया] १. प्रकाश के सामने आने से पीछे की ओर अथवा पीछे को ओर से प्रकाश होने पर आगे की ओर बननेवाली किसी वस्तु की छायामय आकृति। मुहा०—(किसी की) परछाईं से डरना या भागना=किसी से इतना अधिक डरना कि उसके सामने जाने की हिम्मत न पड़े। २. दे० ‘परछावाँ’। क्रि० प्र०—पड़ना। ३. दे० ‘ प्रतिबिंब’।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परछाँवाँ  : पुं० [सं० प्रतिच्छाय] १. छाया। परछाईं। २. किसी व्यक्ति की पड़नेवाली ऐसी छाया या परछाईं जो कुछ स्त्रियों की दृष्टि में अनिष्टकर या अशुभ होती है। मुहा०—(किसी का) परछाँवाँ पड़ना=उक्त प्रकार की छाया के कारण कोई बुरा प्रभाव पड़ना। ३. किसी व्यक्ति की ऐसी छाया या परछाईं जो स्त्रियों के विश्वास के अनुसार गर्भवती स्त्री पर पड़ने से गर्भ के शिशु को उस पुरुष के अनुरूप आकार-प्रकार, स्वभाव आदि बनानेवाली मानी जाती है।
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परछाँही  : स्त्री०=परछाईं।
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