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अंध  : वि० [सं० अंध् (अंधा होना) +अच्] १. नयन ज्योति से रहित २. विचार और विवेक से रहित। ३. अविवेकी। ४. जो आँख मूँदकर किया गया हो। आँख बंद करके किया हुआ। जैसे—अंध-अनुकरण, अंध परम्परा। ५. जिसे आगा पीछा या भला बुरा कुछ भी न दिखाई दे। जो असमंजस में पड़ा हो। ६. मूर्ख ना समझ। पुं० १. वह जिसे दिखाई न दे। अंधा आदमी। २. अंधकार, अँधेरा। ३. उल्लू पक्षी। ४. चमगादड़। ५. जल, पानी। ६. एक प्रकार के परिव्राजक। ७. पिंगल या छंद शास्त्र के नियमों के विरुद्ध रचना करने का दोष।
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अंध-कूप  : पुं० [कर्म० स०] १. ऐसा सूखा हुआ कूँआ जिसके अन्दर अँधेरे के सिवा और कुछ भी दिखाई न देता हो। २. पुराणानुसार एक नरक का नाम। ३. घोर अंधकार। गहरा अँधेरा। ४. अज्ञान।
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अंध-खोपड़ी  : वि० [सं० अंध+हिं० खोपड़ी] जिसके मस्तिष्क में कुछ भी बुद्धि न हो। जिसे बुद्धि में मतलब न हो। मूर्ख, जड़
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अंध-तमस  : पुं० [कर्म० स० अच्] घोर अंधकार। गहरा अँधेरा।
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अंध-तामिस्र  : पुं० [सं० तमिस्र्+अण्, अंध-तामिस्र, कर्म० स०] १. घोर या निविड़ अंधकार। २. पुराणओं के अनुसार एक नरक जिसमें घोर अंधकार है। ३. सांख्य दर्शन के अनुसार इच्छा के विधान या विपर्यय के पाँच भेदों में से एक। जीने की इच्छा रहते हुए भी मरने का भय। ४. योग के अनुसार पाँच क्लेशों में से एक जिसमें मृत्यु का भय होता है।
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अंध-परंपरा  : स्त्री० [ष० त०] बिना सोचे-समझे पुरानी चाल का अनुकरण। भेड़िया-धँसान। बिना सोचे समझे मानी जाने वाली पुरानी प्रथा या रूढ़ि। परंपरा या प्रथा का होने वाला अंध-अनुकरण।
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अंध-पूतना  : स्त्री० [कर्म० स०] सुश्रुत के अनुसार एक बालग्रह (रोग)।
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अंध-बिन्दु  : पुं० [कर्म० स०] आँख के भीतरी परदे का वह बिन्दु जहाँ किसी आंतरिक कारण से प्रकाश या बाहरी वस्तु का प्रतिबिंब न पहुँचता हो।
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अंध-विश्वास  : पुं० [ष० त०] बिना सोचे-समझे किया जाने वाला निश्चय अथवा स्थिर किया हुआ भय। विवेक शून्य धारणा। जैसे—किसी परंपरागत रीतियों किसी विशिष्ट धर्माचार्यों के उपदेशों अथवा किसी राजनैतिक सिद्धान्त के प्रति होने वाला अंधविश्वास। (सुपर्सटिशन)
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अंध-श्रद्धा  : स्त्री० [ष० त०] बिना सोचे-समझे, केवल अंधविश्वास के कारण की जानेवाली श्रद्धा।
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अंधक  : वि० [सं० अंध+कन्]—अँधा। पुं० [सं०√अन्ध् (अंधा होना)+ण्वुल्-अक] १. अंधा आदमी। २. कश्यप का एक पुत्र जो शिव के हाथों मारा गया था। ३. बृहस्पति के बड़े भाई उतथ्य का एक पुत्र। ४. बौद्ध काल की एक प्राचीन भाषा।
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अंधक-रिपु  : पुं० [ष० त०] १. दे० ‘अंधघाती'। २. अंधकार का शत्रु।
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अंधकार  : पुं० [अंध√ कृ (करना) +अण्] १. प्रकाश, रोशनी का न होना। २. अज्ञान। ३. मोह। ४. उदासी।
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अंधकार-युग  : पुं० [ष० त०] किसी देश या विषय के इतिहास का वह समय जिस की विशेष बातें अभी अज्ञात हों। (डार्क एज)
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अंधकारि  : पुं० [सं० अंधक-अरि० ष० त०]=अंधक-रिपु।
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अंधकारी  : स्त्री० [सं० अंधकार√डीष्] एक रागिनी जो कहीं-कहीं भैरव राग की रागिनियों में मानी गई है।
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अंधघाती (तिन्)  : पुं० [सं० अंध√हन् (मारना) +णिनि] १. शिव। २. सूर्य। ३. चन्द्रमा। ४. अग्नि।
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अंधड़  : पुं०=आँधी।
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अंधता  : स्त्री० [सं० अंध+तल्-टाप्] १. अंधे होने की अवस्था या भाव। अंधापन। २. मूर्खता।
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अंधतामस  : पुं० [सं० तमस्+अण्, अंध-तामस, कर्म० स०] घोर अंधकार।
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अंधधुंध  : क्रि० वि०=अंधाधुंध।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अंधबाई  : स्त्री०=आँधी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अंधर  : पुं० =१ अंधड़। २. अँधेरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अँधरा  : पुं० [सं० अंध] [स्त्री० अँधरी] अंधा, नेत्र-हीन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अंधला  : वि० =अंधा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अंधवाह  : पुं०=आँधी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अंधस्  : पुं० [सं० अद् (खाना) +असुन्, नुम्, ध] १. भात। २. खाद्य। ३. सोम नामक वनस्पति या उसका रस।
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अंधा  : पुं० [सं० अंध] वह जो आँख के दोष या विकार के कारण कुछ भी न देख सकता हो। दृष्टि-शक्ति से रहित प्राणी। वि० १. जिसकी आँखों में देखने की शक्ति न हो। २. जिसके अन्दर कुछ भी न दिखाई दे। जैसे—अंध कोठरी। ३. बिना सोचे-समझे काम करने वाला। ४. जिसमें कोई विशिष्ट तत्त्व न हो, या न रह गया हो। जैसे—अंधा शीशा। अंधा दिया। मुहावरा—अंधा बनना=जानबूझकर किसी बात पर ध्यान न देना। अंधा बनाना=बुरी तरह से या मूर्ख बनाकर धोखा देना। पद—अंधा भैंसा=लड़कों का एक खेल जिसमें वे आँखों पर पट्टी बाँधकर एक दूसरे को छूकर उसका नाम बताते और तब उसे भैंसा बनाकर उस पर सवारी करते हैं। अंधे की लकड़ी या लाठी=असहाय का एक मात्र सहारा।
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अंधा-कुआँ  : पुं० [हिं० अंधा+कुआँ] १. वह गहरा कुआँ जिसमें का पानी सूख गया हो और जिसमें मिट्टी भर गई हो। २. बहुत गहरा और अँधेरा कुआँ। ३.उदर पेट (लाक्ष०)।
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अंधा-धुंध  : स्त्री० [हि० अंधा+धुंध] १. गहरा अँधेरा। घोर अंधकार। २. ऐसी अवस्था या व्यवस्था जिसमें कम, वितार, संगति आदि का नाम भी न हो। धींगा-धींगी। ३. अन्याय, अत्याचार, दुराचार। वि० १. विचार, विवेक आदि से रहित। २. बहुत अधिक। जैसे—अंधाधुंध दौड़ना। २. बहुत अधिकता से। जैसे—अंधाधुंध पानी बरसना।
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अंधानुकरण  : पुं० [सं० अंध-अनुकरण, ष० त०] बिना सोचे-समझे किया जाने वाला किसी का अनुकरण।
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अँधार  : पुं० [सं० अंधकर, प्रा० अंधयार] १. अँधेरा, अंधकार। वि० जिसमें या जहाँ अँधेरा हो। अंधकारपूर्ण। पुं० (?) रस्सियों का वह जाल जिसमें घास, भूसे आदि के गट्ठर बाँधते हैं।
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अंधारा  : पुं० [हिं० अंधेरा] १. अंधकार, अंधेरा। २. कृष्ण पक्ष। वि० =अंधेरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अँधारी  : स्त्री० [हिं० अंधार+ई] १. आँधी। अंधड़। (डिं०) २. दे० ‘अँधियारी’।
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अंधाहुली  : स्त्री० [सं० अधःपुष्पी] चोर नामक पुष्पी पौधा।
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अंधिका  : स्त्री० [सं० √अंध् (दृष्टि-नाश या प्रेरणा)+ण्वुल्-अक-टाप्, इत्व] १. रात, रात्रि। २. एक प्रकार का खेल, कदाचित् आँखमिचौनी। ३. आँख का एक रोग। ४. स्त्रियों का एक भेद या वर्ग।
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अंधिया  : स्त्री०=अंगियाँ (चलनी)।
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अँधियार  : पुं० [सं० अंधकार, प्रा० अंधयार] अँधेरा। अंधकार। वि० अंधकारपूर्ण।
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अँधियारा  : पुं०=अँधेरा। वि० १. अंधकारपूर्ण। २. धुंधला। ३. उदास और सुनसान।
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अँधियारी  : स्त्री०=अँधेरी।
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अंधियाली  : स्त्री०=अँधियारी।
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अंधुल  : पुं० [सं०√अंध्+उलच्] सिरिस का पेड़।
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अंधेर  : पुं० [सं० अंधकार, प्रा० अंधयार] १. ऐसी व्यवस्था, स्थिति या शासन जिसमें औचित्य, न्याय आदि का कुछ भी विचार न होता हो। २. अशान्ति या विप्लव की स्थिति।
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अंधेर-खाता  : पुं० [हिं० अंधेर+खाता] १. औचित्य, न्याय आदि विचार का पूरा अभाव। २. मनमानी कार रवाई या व्यवस्था।
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अंधेर-गरदी  : स्त्री०=अंधेर-खाता।
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अंधेर-नगरी  : स्त्री० [हिं० अंधेर=अन्याय+नगरी] ऐसा स्थान जहाँ नियम, न्याय, व्यवस्था आदि का पूरा अभाव हो। जहाँ अनीति अव्यवस्था और कुप्रबन्ध हो।
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अँधेरना  : स० [हिं० अंधेर] १. अधंकार फैलाना। अंधेरा करना। २. बहुत ही मनमाना व्यवहार या अंधेर करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अँधेरा  : पुं० [सं० अंधकार, पा० अंधकारो, प्रा० अंधयार>अंधार, ब० आंधार, ओ० अधार, गु० अंधारू, अंधेरू, सिं अंधारू, पं ०अन्हेरा, मै० अन्हरिया, सिंह अन्दुर] १. वह समय या स्थिति जिसमें प्रकाश या रोशनी न हो। अंधकार। पद—अंधेरा गुप्प (घप्प)=ऐसा अंधकार जहाँ कुछ सूझता ही न हो। अंधेरा पाख या पक्ष=चांद्र मास का कृष्ण पक्ष। अँधेरे घर का उजाला=(क) वह जो अन्धकार को दूर कर दे। (ख) कीर्ति बढ़ाने वाला शुभ। (ग) अंधेरे उजले=उपयुक्त-अनपयुक्त समय में समय कुसमय। अँधेरे मुँह या मुँह अँधेरे=पौ फटते समय। बहुत तड़कें। २. धुंधलापन। ३. उदासी की स्थिति। ४. ऐसी अवस्था जिसमें मनुष्य हताश होकर यह न समझ सके कि अब क्या करना चाहिए। वि० (स्त्री० अँधेरी) जिसमें प्रकाश बहुत कम हो न हो या।
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अँधेरा-पक्ष  : पुं० [हिं० अंधेरा+पक्ष] पूर्णिमा से अमावस्या तक के १५ दिन। चांद्र मास का कृष्ण पक्ष।
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अँधेरिया  : वि० [हिं० अंधेरा] जिसमें बहुत अँधेरा हो। जो अंधकार पूर्ण हो। स्त्री० १. अँधेरी रात। २. अँधेरा पक्ष। ३. अँधेरा, अंधकार।
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अँधेरी  : स्त्री० [हिं० अँधेरा+ई] १. अंधकार। तम। २. अँधेरी रात। ३. आँधी। अंधड़। ४. चौपायों, पक्षियों आदि की आंखों पर बाँधी जाने वाली पट्टी। ५. लोहे की वह जाली जो युद्ध-क्षेत्र में जानेवाले घोड़ों के मुँह पर लगाई जाती है। ६. वह पट्टी जो पशुओं की आँखों पर बाँधी जाती है। मुहावरा—अंधेरी डालना या देना=(क) किसी की आँखे बंद करके उसकी दुर्गति करना। (ख) धोखा देना।
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अँधेरी कोठरी  : स्त्री० [हिं०] १. पेट। २. ऐसा स्थान या स्थिति जिसमें अन्दर की बातों का पता न चलें। ३. स्त्रियों का गर्भाशय।
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अंधौटा  : स्त्री० [सं० अन्ध+पट, प्रा० अंधवटी] [स्त्री० अँधौटी] घोड़ों, बैलों आदि की आँखों पर बाँधा जानेवाले कपड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अँधौरी  : स्त्री०=अम्हौरी (पित्ती) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अंध्यार  : वि० =अँधेरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अंध्यारी  : स्त्री०=अँधेरी।
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अंध्र  : पुं० [सं०√अंध्+रन्] १. बहेलिया। व्याध। २. शास्त्रों के अनुसार एक प्राचीन संकर जाति। ३. दक्षिण भारत का आँध्र राज्य। ४. मगध का एक प्राचीन राजवंश।
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अंध्र-भृत्य  : पुं० [ब० स०] एक प्राचीन राजवंश जिसने अंध्रवंश के पश्चात् मगध का शासन किया था।
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