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अंतर्  : अव्य० [सं०√अम् (गति)+अरन्, तुट्] १. भीतरी भाग में अन्दर। २. बीच में। विशेष—(क) इसका प्रयोग केवल यौगिक पद बनाने के समय (उपसर्ग या विश्लेषण के रूप में) उनके आरम्भ में होता है। जैसे—अन्तर्ज्योति, अंतर्दशा, अंतर्वर्ग आदि। (ख) संस्कृत व्याकरण के नियमों अनुसार कुछ अवस्थाओं में इसका रूप अंतः या अतस् भी हो जाता है। जैसे—अंतःपुर, अंतस्सलिला आदि। (ग) कुछ लोग इसका प्रयोग भूल से उस अंतर की तरह और उसी के अर्थ में कर जाते हैं, जो अँगरेजी इन्टर के ध्वनि-साम्य के आधार पर इधर कुछ दिनों से हिन्दी में चल पड़ा है। जैसे—अंतर्जिला, अंतर्राष्ट्रीय, पर इनके अधिक संगत रूप अंतर-जिला और अंतर राष्ट्रीय होने चाहिए।
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अंतर्कथा  : स्त्री० [संस्कृत के ढ़ंग पर गढ़ा हुआ असिद्ध शब्द] किसी बड़ी कथा के अन्तर्गत आई हुई कोई छोटी कथा।
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अंतर्गत  : वि० [द्वि० त०] १. जो किसी के अंदर पहुँचकर उसमें मिल या समा गया हो और उसका अंग बन गया हो। २. जो किसी के साथ मिलकर एक हो गया हो। (इन्कलूडेड) जैसे—फ्रान्सीसी बस्तियाँ अब भारतीय संघ के अन्तर्गत हो गयी हैं।
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अंतर्गतक  : भू०कृ० [सं० अंतर्गत+क) जो किसी के अन्तर्गत हो गया हो। अन्तर्गत होकर रहनेवाला। पुं० दे० ‘समावरण'।
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अंतर्गति  : स्त्री० [ष० त०] मन की वृत्ति या भावना।
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अंतर्गर्भ  : वि० [ब० स०] जिसे गर्भ हो। गर्भयुक्त।
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अंतर्गांधार  : पुं० [ब० स०] संगीत में एक विकृत स्वर जिसका आरम्भ प्रसारिणि श्रुति से होता है।
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अंतर्गिरि  : स्त्री० [मध्य० स०] हिमालय का वह भीतरी भाग जिसमें १८-२॰ हजार फुट से अधिक ऊँची चोटियाँ (जैसे—गौरीशंकर, धवलगिरि, नंगा पर्वत आदि) हैं।
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अंतर्गृह  : पुं० [मध्य स०] १. गृह का भीतरी भाग। २. [सं० अव्यस०) तहखाना।
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अंतर्गृही  : स्त्री० [ब० स०, डीष्] किसी नगर के भीतरी भागों में स्थित देव स्थानों, तीर्थों आदि की विधिवत् की जानेवाली यात्रा।
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अंतर्गेह  : दे० अंतर्गृह।
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अंतर्ग्रस्त  : वि० [स० त०] अपराध, संकट आदि में पड़ा फँसा या लगा हुआ। (इन्वाल्वड)
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अंतर्घट  : पुं० [मध्य सं० ] अंतःकरण हृदय।
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अंतर्चित  : पुं० दे० ‘अंतर-जातीय’।
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अंतर्जात  : वि० [सं० त०] वह जो किसी वस्तु के अन्दर या भीतरी भाग से उत्पन्न हुआ या निकला हो। (एन्डोजेन) जैसे—वृक्ष की जड़ से निकलने वाले रोएँ अंतर्जात होते हैं।
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अंतर्जातीय  : वि० दे० ‘अंतर-जातीय’।
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अंतर्जानु  : क्रि० वि० [ब० स०] हाथों को घुटनों के बीच किए हुए।
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अंतर्जामी  : वि० =अंतर्यामी।
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अंतर्ज्ञान  : पुं० [ष० त० या मध्य सं० ] १. मन में रहने या होने वाला ज्ञान। २. मन में होने वाला या स्वाभाविक ज्ञान जो प्रकृति की ओर से जीवों को आत्मरक्षा, जीवन निर्वाह आदि के लिए प्राप्त होता है। अंतर्बोध। (इन्ट्यूशन)
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अंतर्ज्योति  : स्त्री० [मध्य० स०] भीतरी प्रकाश। वि० [ब० स०] जिसके अंदर प्रकाश हो।
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अंतर्ज्वाला  : स्त्री० [मध्य सं० ] १. भीतरी आग। २. संताप। ३. चिंता।
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अंतर्दर्शी  : स्त्री० [मध्य० स०] फलित ज्योतिष में जन्मकुण्डली के अनुसार किसी एक गृह के भोग-काल के अंतर्गत पड़ने वाले अन्य ग्रहों के भोग-काल।
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अंतर्दर्शी (शिन्)  : वि० [सं० अंतर√दृश् (देखना) +णिनि] १. अंदर या अंतःकरण की ओर देखने वाला। २. हृदय की बात जानने वाला।
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अंतर्दशाह  : पुं० [अव्य० स०] मृत व्यक्ति की आत्मा की सद्गति के उद्देश्य से मृत्यु के बाद दस दिन तक किये जानेवाले कृत्य।
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अंतर्दाह  : पुं० [मध्य० स०] हृदय की दाह या जलन। घोर मानसिक कष्ट।
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अंतर्दृष्टि  : स्त्री० [मध्य० स०] कोई बात देखने या समझने की भीतरी दृष्टि या शक्ति।
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अंतर्देशीय  : वि० [अंतर्देश मध्य० स० +छ-ईय] किसी देश के आन्तरिक भागों में होने या संबंध रखनेवाला। (इन्लैंड) जैसे—अंतर्देशीय जल-मार्ग।
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अंतर्द्वद्व  : पुं० [मध्य० स०] दो या कई विपरीत विचारों का मन में होने वाला संघर्ष। मानसिक संघर्ष।
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अंतर्द्वान  : पुं०=अंतर्धान।
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अंतर्द्वार  : पुं० [मध्य० स०] भीतरी या गुप्तद्वार। चोर दरवाजा।
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अंतर्धान  : पुं० [सं० अंतर√ धा (धारण, पोषण)+ल्युट्-अन] (भू० कृ० अंतर्हित) अचानक आँखों से ओझल हो जाने की क्रिया या भाव। वि० जो अचानक आँखों से ओझल हो गया हो। लुप्त।
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अंतर्धारा  : स्त्री० [मध्य० स०] १. नदी, समुद्र आदि में पानी की ऊपरी सतह से बहने वाली धारा। २. किसी वर्ग या समाज में अंदर ही अंदर फैली हुई ऐसी धारणा या विचार जिसका पता साधारणतः ऊपर से न चलता हो। (अन्डर करेन्ट, उक्त दोनों अर्थों में।)
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अंतर्धि  : पुं० [सं० अतर् वा+कि] वह राज्य जो दो युद्ध-रत राज्यों के बीच में स्थित हो।
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अंतर्नयन  : पुं० [ष० त०] भीतरी आँख। ज्ञान चक्षु।
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अँतर्नाद  : पुं० [ष० त०] वह शब्द जो आत्मा के बराबर उत्पन्न होता रहता है और जो समाधि की अवस्था में सुनाई देता है। (रहस्य-संप्रदाय)
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अंतर्निविष्ट  : वि० [स० त०]=अंतर्निष्ठ।
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अंतर्निष्ठ  : वि० [ब० स०] जो किसी के अंदर दृढ़ता पूर्वक रक्षितरूप से वर्तमान या स्थित हो। (इन्हेरेन्ट) जैसे—शासन में सभी प्रकार के अधिकार अंतर्निष्ठ होते हैं।
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अंतर्निहित  : भू० कृ० [स० त०] किसी के अंदर छिपा हुआ।
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अंतर्पट  : पुं० [सं० अंतःपट, मध्य० स०] १. आड़, ओट या परदा। २. ढकनेवाली चीज (आच्छादन, आवरण आदि)। ३. वह परदा जो दो व्यक्तियों (यथा वर और कन्या, गुरु और शिष्य) के बीच में कोई विशिष्ट कार्य (यथा विवाह या दीक्षा) सम्पन्न होने से कुछ पहले तक पड़ा रहता है।
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अंतर्पत्रण  : पुं० [स० अंतःपत्रण, अंतर्-पत्र, मध्य० स०+णिच्+ल्युट्-अन] (भू० कृ० अंतर्पत्रित) छपी हुई या लिखी हुई पुस्तकों आदि में पृष्ठों के बीच-बीच में इसलिए सादे कागज के टुकड़े या पृष्ठ लगाना कि उन पर संसोधन, परिवर्तन, परिवर्द्वन आदि किए जा सकें। (इन्टरलीविंग)
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अंतर्पत्रित  : भू० कृ० [स० अंतःपत्र, मध्य० स०, +इतच्] (पुस्तक) जिसमें बीच-बीच में सादे कागज लगे हों। जिसमें अंतर्पत्रण हुआ हो। (इन्टरलीव्ड)
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अंतर्बोध  : पुं० [ष० त०] १. मन में होनेवाली आध्यात्मिक चेतना या ज्ञान। आत्मज्ञान। अंत ज्ञार्न। मन में होनेवाली वह अनुभूति या ज्ञान जिसके अनुसार हम सब बातों के प्रकार, रूप आदि समझकर अपना काम चलाते हैं।
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अंतर्भवन  : पुं० दे० ‘अंर्तगृह’।
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अंतर्भाव  : पुं० [मध्य० स०] [भू० कृ० अंतर्भावित, अंतर्भुक्त, अंतर्भूत] १. किसी का किसी दूसरे में समा या आ जाना। सम्मिलित, समाविष्ट या अंतर्गत होना। (इन्कलूजन) २. छिपाव, दुराव। ३. अभाव। ४. जैन दर्शन में कर्मों का क्षय जो मोक्ष का सादक होता है। ५. नात का आशय। मतलब।
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अंतर्भावना  : स्त्री० [मध्य० स०] [भू० कृ० अंतर्भावित] मन ही मन किया जानेवाला चिंतन या ध्यान।
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अंतर्भावित  : भू० कृ० [सं० अंतर भू (होना) +णिच्+क्त] १. जो अंदर मिलाया गया हो या मिल गया हो। २. विशिष्ट क्रिया से किसी के साथ दृढ़तापूर्वक मिलाया या लगाया हुआ।
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अंतर्भुक्त  : भू० कृ० [स० त०] १. जो किसी के अंदर जाकर उसमें मिल गया हो और अपना स्वतंत्र रूप या सत्ता छोड़कर उसमें पूरी तरह से समा गया हो।
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अंतर्भूत  : वि० [सं० अंतर√ भू+क्त] जो किसी दूसरी वस्तु में जाकर मिल गया हो, फिर भी अपना स्वतंत्र सत्ता या रूप रखता हो। पुं० जीवात्मा। प्राण।
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अंतर्भौमि  : स्त्री० [सं० वि० अंतभौम] पृथ्वी की भीतरी भाग। भूगर्भ।
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अंतर्मना (नस्)  : वि० [ब० स०] १. घबराया हुआ। २. उदास। ३.अपने ही विचारों में डूबा रहनेवाला।
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अंतर्मल  : पुं० [मध्य० स०] १. अंदर रहने वाला मल या मैल। २. चित्त या मन में होने वाला बुरा विचार या विकार।
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अंतर्मुख  : वि० [ब० स०] १. जिसका मुँह अन्दर की ओर हो। पुं० चीर-फाड़ के काम में आने वाली एक तरह की कैंची। क्रि० वि० अंदर की ओर प्रवृत्त।
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अंतर्मृत  : पुं० [स० त०] (शिशु) जिसकी गर्भ में ही मृत्यु हो गयी हो। मृतजन्मा।
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अंतर्यामिता  : स्त्री० [सं० अंतर्यामिन्+तल्-टाप्] अंतर्यामी होने की अवस्था या भाव।
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अंतर्यामी (मिन्)  : वि० [सं० अतर्√ यम् (प्रेरित करना) +णिच्+णिनि] १. अंतःकरण या मन की बात जानने वाला। २. मन पर अधिकार रखने वाला। पुं० ईश्वर। परमात्मा।
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अंतर्योग  : पुं० [मध्य स०] मानसिक अराधना या पूजा।
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अंतर्रति  : स्त्री० [मध्य० स०] मैथुन। संभोग। विशेष दे० रति २।
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अंतर्राष्ट्रीय  : वि० [सं० अंतर्राष्ट्र मध्य० स० +छ-ईय] १. अपने राष्ट्र के बीतरी बातों से संबंध रखने वाला। २. अपने राष्ट्र में होने वाला। वि० दे० ‘अंतर-राष्ट्रीय’।
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अंतर्लब  : पुं० [मध्य स०] वह त्रिकोण क्षेत्र जिसके अन्दर लंब गिरा हो।
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अंतर्लापिका  : स्त्री० [मध्य० स०] ऐसी पहेली जिसका उत्तर उसकी पद योजना में ही निहित होता है। जैसे—एक नारि तरुवर से उतरी, सिर पर उसके पाउँ। ऐसी नारि कुनारि को मैं न देखन जाउँ। का उत्तर ‘मैना' (पक्षी) इसके दूसरे चरण की पद—योजना में आया है।
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अंतर्लीन  : वि० [स० त०] १. अन्दर छिपा हुआ। २. डूबा हुआ मग्न।
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अंतर्वर्ग  : पुं० [मध्य० स०] किसी वर्ग या विभाग के अन्दर होने वाला कोई अन्य छोटा वर्ग या विभाग। (सब-आर्डर)
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अंतर्वर्ण  : पुं० [मध्य०स०] अंतिम या चतुर्थ वर्ण का, अर्थात् शूद्र।
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अंतर्वर्ती (र्तिन्)  : वि० [अंतर्√ वृत् (बरतना) +णिनि] १. अंदर या भीतर रहने वाला। २. जो अंतर्गत या अंतर्भूत हो। ३. दो तत्त्वों, बातों, वस्तुओं आदि के बीच में रहने या होनेवाला। (इण्टरमीडिएट)
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अंतर्वश  : पुं० [मध्य० स०] (वि० अंतर्वशिक) अंतःपुर और उसमें रहने वाली स्त्रियाँ।
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अंतर्वंशिक  : पुं० [सं० अंतर्वश+ठन्-इक] अंतःपुर (महिला निवास) का निरीक्षक। वि० अंतर्वश से संबंध रखने वाला।
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अंतर्वस्तु  : स्त्री० [मध्य० स०] १. किसी वस्तु के अंदर होने या रहने वाली वस्तु। (कन्टेन्ट्स) जैसे—सागर के अंदर होने तथा रहने वाली मछलियाँ, दवात के अन्दर रहनेवाली स्याही आदि।
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अंतर्वस्त्र  : पुं० [मध्य० स०] अंदर या अन्य कपड़ों के नीचे पहने जाने वाले वस्त्र। जैसे—कच्छा, पेटीकोट, बनियाइन, लंगोट आदि।
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अंतर्वाणिज्य  : पुं० [मध्य सं० ] वाणिज्य या व्यापार से जो किसी देश की सीमा के अंतर्गत, भीतरी भागों में होता है। (इन्टर्नल ट्रेड)
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अंतर्वाणी (णि)  : वि० [ब० स०] शास्त्र जानने वाला। पुं० विद्वान। पंडित।
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अंतर्वास (स)  : पुं० [मध्य० स०] दे० अंतर्वस्त्र।
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अंतर्वासक  : पुं० [ब० स० कप्] दे० ‘अंतर्वंशिक’।
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अंतर्वासन  : पुं०=अंतरायण।
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अंतर्विकार  : पुं० [मध्य० स०] १. मन में होनेवाला विकार। २. भूख, प्यास आदि शारीरिक धर्म।
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अंतर्वृत्त  : पुं० [मध्य० स०] ज्यामिति में वह वृत्त जो किसी आकृति के बीच में इस प्रकार बनाया जाए कि उसकी आकृति की सभी भुजाओं या रेखाओं को कहीं न कहीं स्पर्श करता हो। (इन्-सर्किल, इन्सका-इब्ड सर्किल)
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अंतर्वेग  : पुं० [मध्य० स०] १. मन में उत्पन्न होने वाला कोई कष्टकारक विकार। जैसे—अशांति, चिन्ता आदि। २. एक प्रकार का ज्वर जिसमें शरीर में जलन, तथा सिर में दर्द होता है और प्यास अधिक लगती है।
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अंतर्वेद  : पुं० [सं० अंतर्वेदि] १. यज्ञ की वेदियों से सम्पन्न देश। २. गंगा और यमुना के मध्यवर्ती प्रदेश का प्राचीन नाम। ब्रह्वावर्त। ३. दो नदियों के मध्य का देश। दोआबा।
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अंतर्वेदना  : स्त्री० [ष० त०] मन के अन्दर छिपी हुई वेदना।
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अंतर्वेदी  : वि० [सं० अंतर्वेदी से] १. अंतर्वेद का निवासी। २. दोआबा में रहनेवाला।
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अंतर्वेशन  : वि० [सं० अंतर√विश् (प्रवेश)+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० अंतर्वेशित] १. किसी के वर्ग या समूह के बीच में उसी तरह की और कोई चीज बाहर से लाकर जमाना, बैठाना या लगाना। (इन्टरपोलेशन) जैसे—किसी कविता में किसी नई पंक्ति या किसी वाक्य में किसी नये शब्द या पद का अंतर्वेशन। २. वह अंश या वस्तु जो इस प्रकार कहीं बैठाई या लगाई जाए। (साहित्य में इसे क्षेपक कहते हैं।)
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अंतर्वेशिक  : पुं० [सं० अंतर्वेश+ठक्-इक] दे० ‘अंतर्वंशिक’।
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अंतर्वेशित  : भू० कृ० [सं० अंतर्√विश्+णिच्+क्त] जिसका अंतर्वेशन हुआ हो।
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अंतर्वेश्म (न)  : पुं० [मध्य० स०] १. अंतःपुर। जनानखाना। २. मकान का कोई भीतरी कमरा। ३. तहखाना। तलघर।
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अंतर्वेश्मिक  : पुं० [सं० अन्तर्वेश्मन्+ठन्-इक] दे० ‘अंतर्वंर्शिक'।
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अंतर्व्याधि  : स्त्री० [मध्य स०] भीतरी या गुप्त रोग।
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अंतर्व्रण  : पुं० [मध्य० स०] शरीर का भीतरी घाव या चोट।
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अंतर्हस्तीन  : वि० [सं० अन्तर्हस्त अव्य० स० +ख-ईन] जिस तक हाथ की पहुँच हो या हो सके।
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अंतर्हास  : पुं० [मध्य० स०] मन ही मन मुस्कराने की क्रिया या भाव।
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अंतर्हित  : भू० कृ० [सं० अन्तरे√धा (धारण करना) +क्त, हि आदेश] जो अंतर्धान हो गया हो।
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अंतर्हृदय  : पुं० [मध्य० स०] हृदय की भीतरी भाग।
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