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शब्द का अर्थ

स्तव  : पुं० [सं०] १. किसी देवता का छंदबद्ध स्वरूप-कथन या गुण-गान। स्तुति। स्तोत्र। जैसे—शिव-स्तव, दुर्गास्तव। २. ईश-प्रार्थना।
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स्तवक  : पुं० [सं०] १. फूलों का गुच्छा। २. एक या अनेक तरह के बहुत से फूलों को सजाकर बनाया हुआ रूप, जिसे शोभा के लिए मेजों आदि पर रखते हैं। गुलदस्ता। ३. ढेर। राशि। ४. मोर का पंख। ५. पुस्तक का अध्याय या परिच्छेद। ६. स्तोत्र। स्तव। वि० स्तवसा स्तुति करनेवाला।
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स्तवन  : पुं० [सं०] १. स्तुति करने की क्रिया या भाव। २. स्तुति।
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स्तवनीय  : वि० [सं०] जिसका स्तव या स्तुति की जा सके या की जाने को हो।
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स्तवरक  : पुं० [सं०] १. कमखाब की तरह का पुराना रेशमी कपड़ा। २. घेरा।
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स्तविक  : भू० कृ० [सं०] १. फूलों के गुच्छों, गुलदस्तों, फूल-मालाओं आदि से युक्त या सजा हुआ।
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स्तवितव्य  : वि० [सं०] स्तवनीय।
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स्तविता (तृ)  : पुं० [सं०] स्तुति करने वाला। गुण-गान करने वाला।
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स्तव्य  : वि० [सं०=स्तवनीय।
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