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संसार  : पुं० [सं०] १. लगातार एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाते रहना। २. यह जगत या दुनिया जिसमें जीव या प्राणी आते जाते रहते है। इहलोक। मर्त्यलोको। ३. इस संसार में बार-बार जन्म लेने और मरने की अवस्था। ४. जीवन तथा संसार का प्रबंध और माया। ५. घर-गृहस्थी और उसमें का जीवन। उदा—मेरे सपनों में कलरव का संसार आँख जब खोल रहा।—प्रसाद। ६. समूह। (क्व०) ७. दुर्गन्ध खादिर। विट् खादिर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
संसार-गुरु  : पुं० [सं०] १. संसार को उपदेश देने वाला। जगदगुरु। २. कामदेव।
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संसार-चक्र  : पुं० [मध्यम० स०] १. बार-बार इस संसार मे आकर जन्म लेने और मर कर यह संसार छोड़ने का क्रम या चक्र। २. संसार का जंजाल या झंझट। सांसारिक प्रपंच। ३. संसार में होता रहने वाला उलटफेर या परिवर्तन।
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संसार-तिलक  : पुं० [सं० ष० त०] १. एक प्रकार का बढिया चावल।
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संसार-पथ  : पुं० [ष० त०] १. संसार में आने का मार्ग। २. स्त्रियो की जननेंद्रिय। भग। योनि।
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संसार-भावन  : पुं० [सं०] संसार को दुखमय समझना।
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संसार-सारथि  : पुं० [सं०] संसार की जीवन यात्रा चलाने वाला, परमेश्वर। २. शिव।
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संसारण  : पुं० सम्√सृ (गमनादि)+णिच्-ल्युट्-अन] [भू० कृ० संसारित] गति देना। चलाना।
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संसारी  : वि० सम्√सृ (गत्यादि)+णिन् संसार+इनि वा] [स्त्री० संसारिणी] १. संसार संबंधी। लौकिक। सांसारिक। २. घर में रहकर घर-गृहस्थी चलाने या ग्रहस्थ जीवन व्यतीत करने वाला। ३. संसार में आकर बार-बार जन्म लेने और मरने वाला। ४. लोक व्यवहार मे कुशल। दुनियादार।
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