शब्द का अर्थ
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वार :
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पुं० [सं०√वृ+घञ्] १. द्वार। दरवाजा। २. अवरोध। रुकावट। ३. आवरण। ढक्कन। ४. नियत काल या समय। ५. किसी काम या बात की पुनरावृत्ति का आनेवाला अवसर। दफा। बार। बारी। (दे० ‘बार’) ६. सप्ताह के दिनों के नामों के अन्त में लगनेवाला कालावधिक सूचक शब्द। जैसे–रविवार, सोमवार आदि। ७. क्षण। ८. कुंज नामक वृक्ष। ९. शराब पीने का प्याला। १॰. तीर। बाण। ११. जलाशय का किनारा। कूल। तट। १२. विशेष रूप से जलाशय का वह किनारा जो वक्ता की ओर हो। उदाहरण-पार कहे उत वार है और कहे उतपार। इसी किनारे बैठ रह, वार यहि पार। पद—वार-पार, वारापार (देखें स्वतंत्र शब्द)। अव्य० और। तरफ। पुं० [सं० बार=दांव, बारी] आक्रमण आदि के समय किया जानेवाला आघात। प्रहार। जैसे–तलवार या लाठी से वार करना। मुहावरा–वार खाली जाना= (क) प्रहार, निशाने आदि में चूक होना। (ख) युक्ति निष्फल होना। प्रत्य० [फा०] क्रम से। क्रमात्। जैसे–तफसीलवार, नामवार,ब्योरेवार। प्रत्यय०=वाला। जैसे–करनवार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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वार-कन्या :
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स्त्री० [सं०] वेश्या रंडी। |
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वार-तिय :
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स्त्री० [सं० वार+स्त्री] वेश्या। |
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वार-पार :
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पुं० [सं० अवर-पार] १. इस पार के और उस पार के दोनों, किनारे या सिरे। जैसे–बाढ़ का पानी चारों ओर इतनी दूर तक फैल गया था कि कहीं उसका वार-पार नहीं दिखाई देता था। २. पूरा या समूचा। विस्तार। अव्य इस किनारे,छोर या सिरे से उस किनारे छोर या सिरे तक। वार-पार। जैसे– तीर हिरन के वार-पार कर गया। |
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वार-फेर :
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पुं०=वारा-फेरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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वार-बाण :
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पुं० [सं०] कंचुक की तरह का, पर उससे कुछ छोटा एक पुराना पहनावा जो युद्ध के समय पहना जाता था। |
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वार-वधू :
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स्त्री० [सं०] वेश्या। रंडी। |
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वारंक :
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पुं० [सं०√वृ+अंकन्] पक्षी। |
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वारक :
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वि० [सं०√वृ (रोकना)+णिच्+ण्वुल्-अक] १. वारण अर्थात् निषेध करनेवाला। २. रूकावट डालनेवाला। प्रतिबंधक। पुं०१. घोड़ा। २. घोड़े का कदम। ३. ऐसा समय या स्थान जहाँ कोई कष्ट या पीड़ा हो। ४. बाधा या अवसर या स्थान। ५. एक प्रकार का सुगंधित तृण। |
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वारकी :
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पुं० [सं० वारक+इनि] १. प्रतिवादी। २. शत्रु। ३. समुद्र। ४. ऐसा तपस्वी जो केवल पत्ते खाकर रहता हो। पर्णाशी। यती। |
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वारकीर :
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पुं० [सं० स० त०] १. किसी की पत्नी का भाई। साला। २. द्वारपाल। ३. बाड़वाग्नि। बड़वानल। ४. जूँ नाम का कीड़ा। ५. कंघी। ६. लड़ाई में सवार के काम आनेवाला घोड़ा। |
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वारंग :
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पुं० [सं०√वृ+अंगच्] १. तलवार की मूठ। २. प्राचीन वैद्यक में एक प्रकार का अस्त्र। |
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वारगह :
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पुं० [सं० वारि+गृह, मि० फा० बारगाह] १. तंबू। खेमा। २. दे० ‘बारगाह’। पुं० [सं० वारण+गृह] हाथियों के बाँधने का स्थान। उदाहरण-बंधण दधि कि वारगह।–प्रिथीराज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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वारज :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० वारित] १. अनिष्ट या अनुचित कार्य आदि के सम्बन्ध में होनेवाली निषेधात्मक आज्ञा, आदेश या सूचना। निषेध। मनाही। २. अनिष्ट आदि को दूर रखने या उनसे बचने के लिए किया जाने वाला उपाय या कार्य। ३. आपत्तिजनक या दूषित प्रकाशनों आदि का प्रचार रोकने के लिए राज्य या शासन की ओर से होनेवाली निषेधात्मक आज्ञा या व्यवस्था। (स्क्रेप्शन)। ४. बाधा। रुकावट। ५. शरीर को अस्त्रों आदि से आघात से बचानेवाला। कवच। बकतर। ६. हाथी को वश में रखनेवाला अंकुश। ७. सम्भवतः इसी आधार पर हाथी की संज्ञा। ८. छप्पय छन्द का एक भेद जिसके प्रत्येक चरण में कुछ आचार्यों के मत से ४१ गुरु और ७॰ लगु तथा कुछ आचार्यों के मत से ४१ गुरु और ६६ लघु मात्रा होती है। ९. हरताल। १॰. कला शीशम। ११. सफेद कोरैया। |
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वारंट :
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पुं० [अं०] १. आज्ञा-पत्र। २. विधिक क्षेत्र में न्यायालय का ऐसा आज्ञापत्र जिसके अनुसार किसी राजकीय कर्मचारी को कोई ऐसा काम करने का आदेश होता है जो साधारण स्थिति में वह न कर सकता हो। जैसे– गिरिफ्तारी या तलाशी का वारंट। ३. लोकव्यवहार में किसी की गिरफ्तारी के लिए निकलनेवाला आज्ञा-पत्र। |
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वारणावत :
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पुं० [सं०] एक प्राचीन नगर जिसमें दुर्योधन के पांडवों के लिए लाक्षागृह बनवाया था। |
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वारणिक :
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वि० [सं०] १. वारण-संबंधी। २. (उपाय या कार्य) जो अनिष्ट, क्षति, हानि आदि से बचने अथवा अपने हित-साधन के विचार से पहले किया जाय प्रिकाशनरी। |
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वारणीय :
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वि० [सं०√वृ (रोकना)+णिच्+अनीयर्] वारण करने योग्य। मनाही के लायक। |
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वारद :
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पुं०=वारिद (बादल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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वारदात :
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स्त्री० [अं० ‘वारिद’ का बहु० शुद्ध रूप वारिदात] १. घटना। २. बुरी घटना। दुर्घटना। २. चोरी डकैती मार-पीट, दंगा-फसाद आदि की आपराधिक घटना। ४. किसी प्रकार की घटना का विवरण। (मूलतः बहुवचन पर उर्दू हिन्दी में एक वचन रूप में प्रयुक्त) |
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वारन :
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पुं० [सं० वंदनमाल] बंदनवार। पुं० [सं० वारण] हाथी। स्त्री० [हिं० वारना] वारने की क्रिया या भाव। निछावर। बलि। पुं० [सं० वारण] परदा। उदाहरण–निरवौर वारण बिसारै पुनि द्वार हू कौ।–सेनापति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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वारना :
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स० [सं० वारण=दूर करना] टोने-टोटके के रूप में कोई चीज किसी के सिर के चारों ओर से घुमाकर निछावर करना। मुहावरा–वारी जाऊँ=निछावर हो जाऊँ (स्त्रियाँ)। पुं० निछावर। मुहा०– (किसी पर) वारने जाना=निछावर होना। |
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वारनिश :
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स्त्री० [अं०] १. स्पिरिट, चपड़े, रूमी मस्तगी आदि के योग से बननेवाला एक प्रकार का घोल जो लकड़ी के सामान पर चमक लाने के लिए लगाया जाता है। |
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वारयितव्य :
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वि० [सं०√वृ (रोकना)+णिच्+तव्यत्]=वारणीय। |
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वारयिता (तृ) :
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पुं० [सं०√वृ (रोकना)+णिच्+तृच्] १. रक्षक। २. पति। वि० वरण करनेवाला। |
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वारवाणि :
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पुं० [सं०] १. वंशी बजानेवाला। २. अच्छा गवैया। ३. न्यायाधीश। ४. ज्योतिषी। |
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वारवाणी :
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स्त्री० [सं०] वेश्या। |
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वारवासि, वारवास्य :
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पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन जनपद जो भारत की पश्चिमी सीमा के उस पार था। |
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वारस्त्री :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] वेश्या रंडी। |
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वारा :
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वि० [सं० वारण] १. (पदार्थ) जिसके खरीदने या बेचने में कुछ अधिक बचत भी हो। २. (दर या भाव) जिस पर बेचने से लागत व्यय निकल आने के सिवा कुछ आर्थिक बचत भी हो। पुं० १. वह स्थिति जिसमें किसी निश्चित दर पर कोई चीज खरीदने या बेचने से लागत, व्यय आदि निकालने के साथ-साथ कुछ बचत भी होती है। २. फायदा। लाभ। उदाहरण–उनके बारे की कछू मोपै कही न जाइ।–रसानिधि। पुं० [हिं० वारना] चीज वारने या निछावर करने की क्रिया या भाव। पद–वारा-फेरा। मुहावरा–वारा जाना या वारा होना=किसी पर निछावर जाना या बलि होना। (बहुत अधिक प्रेम का सूचक) वारी जाना=वारा जाना (स्त्रियाँ)। |
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वारा-न्यारा :
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पुं० [हिं० वार+न्यारा] १. झंझट या झगड़े बखेड़े आदि का निपटारा। २. ऐसी स्थिति जिसमें किसी एक ओर का पूरा निर्णय या निश्चय हो जाय, या तो इधर हो जाय या उधर हो जाय जैसे–सट्टे में लाखों का वारा-न्यारा होता रहता है। |
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वारा-पार :
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पुं० [सं० वार+पार] १. यह पार और वह पार। २. अन्तिम या चरम सीमा। जैसे–ईश्वर की महिमा का कोई वारापार नहीं है। |
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वारा-फेरा :
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पुं० [हिं० वारना+फेरना] १. किसी के ऊपर से कोई चीज या कुछ द्रव्य निछावर करने की क्रिया या भाव। २. विवाह, मुंडन आदि शुभ अवसरों पर होनेवाली उक्त रस्म। ३. वह धन या पदार्थ जो उक्त प्रकार से निछावर किया जाय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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वारांगणा :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] वेश्या। रंडी। |
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वाराणसी :
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स्त्री० [सं०] वरुणा और अस्सी नदियों के बीच में बसी हुई तथा गंगा तट पर स्थित काशी नगरी। बनारस। |
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वाराणसेय :
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वि० [सं० वाराणसी+ढक्–एय] १. वाराणसी सम्बन्धी। २. वाराणसी में उत्पन्न या बना हुआ। बनारसी। |
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वारांनिधि :
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पुं० [सं० ष० त०] समुद्र। |
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वाराह :
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पुं० [सं०] [स्त्री० वाराही] १. सूअर। बराह। २. विष्णु का तीसरा अवतार जो शूकर या शूअर के रूप में हुआ था। काली मैनी का वृक्ष। ३. जलाशय के किनारे होनेवाला बेंत। |
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वाराहपत्री :
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स्त्री० [सं० ब० स०] अश्वगंधा। असगंध। |
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वाराही :
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स्त्री० [सं० वराह+ङीष्] १. ब्रह्माणी आदि आठ मातृकाओं में से एक मातृका। २. एक योगिनी। ३. श्यामा पक्षी। ४. कँगनी नामक कदन्न। ५. वाराही कन्द। |
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वाराही-कंद :
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पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का महाकंद जो औषध में काम आता है। गृष्टि। |
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वारि :
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पुं० [सं०√वृ (रोकना)+णिच्-इञ्, अथवा वृ+इण्] १. जल। पानी। २. कोई तरल द्रव या पदार्थ। ३. वाणी। सरस्वती। ४. हाथी बाँधने का सिक्कड़। ५. छोटा गगरा या घड़ा। ६. सुगन्ध बाला। |
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वारि-केय :
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पुं० [वारिका+ढक्–एय] दे० ‘जल-लेखी’। |
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वारि-कोल :
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पुं० [सं०] कच्छप। कछुआ। |
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वारि-गर्भ :
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पुं० [ब० स०] बादल। मेघ। |
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वारि-चर :
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वि० [सं०] पानी में रहने और चलने फिरने वाला जलचर। पुं० १. मछली आदि जीव-जन्तु जो पानी में रहते हैं। २. शंख। |
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वारि-रथ :
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पुं० [सं० ष० त०] जहाज या यान। |
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वारि-रुह :
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पुं० [वारि√रुह् (उत्पन्न होना)+क] कमल। |
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वारि-वर्त :
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पुं० [सं० वारि+आवर्त] मेघ। बादल। |
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वारि-वास :
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पुं० [सं०] मद्य के निर्माण या व्यापारी। |
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वारि-वाह :
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पुं० [सं०] १. मेघ। बादल। २. नागर मोथा। |
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वारि-वाहन :
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पुं० [ष० त०] मेघ। बादल। |
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वारि-शास्त्र :
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पुं० [सं०] १. फलित ज्योतिष का वह अंग जिससे यह जाना जाता है कि कब, कहाँ और कितनी वर्षा होगी। २. दे० ‘वारिकेय’। |
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वारिकफ :
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पुं० [ष० त०] समुद्र। |
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वारिज :
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वि० [सं०] जल में या जल से उत्पन्न होनेवाला। पुं० १. कमल। २. मछली। ३. शंख। ४. घोंघा। ५. कौड़ी। ६. खरा और बढ़िया सोना। ७. द्रोणी लवण। |
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वारिजात :
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वि० पुं० [सं०]=वारिज। |
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वारित :
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भू० कृ० [सं०] जिसका वारण किया गया या हुआ हो। मना किया हुआ। |
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वारित्र :
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पुं० [सं० वारि√त्रा (रक्षा करना)+ड] अविहित या निन्दनीय आचरण। |
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वारिद :
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पुं० [सं०] १. बादल। मेघ। २. नागर मोथा। वि० [अ०] जो आकर उपस्थित या घटित हुआ हो। सामने आया हुआ आगत। विशेष–वारिदात इसी का बहुवचन है जो हिन्दी में ‘वारदात’ (देखें) के रूप में प्रचलित है। |
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वारिदात :
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स्त्री० [अ०]=वारदात। |
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वारिधर :
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पुं० [सं०] १. बादल। मेघ। २. नागर मोथा। ३. एक प्रकार का सम वृत्त वर्णिक छन्द जिसके प्रत्येक चरण में रगण, नगण और दो भगण होते हैं। |
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वारिधि :
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पुं० [सं०] समुद्र। |
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वारिनाथ :
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पुं० [सं० ष० त०] १. वरुण। २. समुद्र। ३. बादल। मेघ। |
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वारिनिधि :
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पुं० [सं०] समुद्र। |
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वारिपर्णी :
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स्त्री० [सं० ब० स० ङीष्] १. जलकुंभी। २. पानी में होनेवाली काई। |
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वारियंत्र :
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पुं० [सं०] फुहारा। |
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वारियाँ :
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अव्य० [हिं० वारना] मैं तुम पर निछावर हूँ (स्त्रियाँ)। मुहावरा– बारियाँ जाऊँ=दे० ‘वारा’ के अन्तर्गत मुहा०–‘वारी जाऊँ’। वारियाँ लेना=बार-बार निछावर होना। (विशेष दे० ‘वारना’ और ‘वारा’ के अन्तर्गत)। |
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वारिस :
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पुं० [अ०] १. वह जिसे किसी की विरासत मिले। २. उत्तराधिकारी। व्यापक क्षेत्र में, जिसने अपने आपको किसी दूसरे के कार्यों का संचालन करने के योग्य बना लिया हो। |
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वारी :
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स्त्री० [सं० वारि+ङीष्] १. हाथी के बाँधने की जंजीर या अँडुआ। गजबंधन। २. छोटा घड़ा। कलसा। वि० स्त्री० दे० ‘वारा’ के अन्तर्गत ‘वारी’ जाना आदि मुहा०। |
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समानार्थी शब्द-
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वारी-फेरी :
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स्त्री०=वारा-फेरा। |
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समानार्थी शब्द-
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वारींद्र :
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पुं० [सं० ष० त०] समुद्र। |
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वारीश :
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पुं० [सं० ष० त०] समुद्र। |
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वारु :
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पुं० [सं०√वृ (मना करना)+णिच्+उण्] वह हाथी जिस पर विजय पताका चलती है। विजय-हस्ति। |
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वारुठ :
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पुं० [सं० वारु+ठन्] १. मृत्यु-शय्या। २. शव ले जाने की अरथी। टिकठी। |
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वारुंड :
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पुं० [सं०√वृ+उण्ड] १. साँपों का राजा। २. नाव में भरा हुआ पानी बाहर फेंकने का तसला। ३. कान की मैल। खूँट। ४. आँख में निकलनेवाला कीचड़ या मल। |
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वारुण :
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पुं० [सं० वरुण+अण्] १. जल-पानी। २. शतभिषा नक्षत्र। ३. एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र। ४. हरताल। ५. एक उप-पुराण। ६. वरुण या बरुना नामक वृक्ष। वि० १. वरुण संबंधी। २. जलीय। ३. पश्चिमी। |
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समानार्थी शब्द-
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वारुण-कर्म :
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पुं० [सं० कर्म० स०] कूआँ तालाब, नहर आदि बनाने का काम। |
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वारुणक :
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पुं० [सं० वारुण+कन्] एक प्राचीन जनपद। |
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समानार्थी शब्द-
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वारुणि :
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पुं० [सं० वरुण+इञ्] १. अगस्त्य मुनि। २. वसिष्ठ। ३. भृगु ऋषि। ४. दाँतवाला हाथी। ५. वारुण या बरुना नामक पेड़। ६. वारुणाक जनपद। |
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समानार्थी शब्द-
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वारुणी :
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स्त्री० [सं० वरुण+अण्+ङीष्] १. वरुण की पत्नी, वरुणानी। २. वृन्दावन के एक कदंब का रस जो वरुण की कृपा से बलराम जी के लिए निकला था। ३. कदंब के फलों से बनाई जानेवाली मदिरा। ४. मदिरा। शराब। ५. उपनिषदविद्या जिसका उपेदश वरुण ने किया था। ६. पश्चिम दिशा। ७. शतभिषा नक्षत्र। ८. एक प्राचीन नदी (कदाचित् आधुनिक वरुणा)। ९. इन्द्रवारुणी लता। १॰. घोड़े की एक प्रकार की चाल। ११. मादा हाथी। हथनी। १२. भुई आँवला। १३. गाँडर दूब। १४. गंगास्नान का एक पुण्य पर्व या योग जो चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को शतभिषा नक्षत्र पड़ने पर होता है। |
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समानार्थी शब्द-
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वारुणी वल्लभा :
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पुं० [ष० त०] समुद्र। |
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समानार्थी शब्द-
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वारुणीश :
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पुं० [सं० ष० त०] विष्णु। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वारुण्य :
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वि० [सं० वरुण+ण्य, अथवा वारुणी+यत्] वरुण-संबंधी। वारुण। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वारुद :
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पुं० [सं० वारु√दा (देना)+क] अग्नि। आग। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्कजंभ :
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पुं० [सं० वृकजंभ+अण्] १. वृकजंभ ऋषि के गोत्रज। २. एक साग का नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्क्ष :
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वि० [सं० वृक्ष+अण्] वृक्ष संबंधी। वृक्ष का। पुं० वृक्षों की छाल से बना हुआ कपड़ा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्क्षी :
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स्त्री० [सं० वार्क्ष+ङीष्] प्रचेतागण की स्त्री मारिषा का दूसरा नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्ड :
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पुं० [अं०] १. रक्षा। हिफाजत। २. वह व्यक्ति जो किसी की रक्षा या हिफाजत में रहता हो। ३. किसी विशिष्ट कार्य के लिए स्थानों का निश्चित किया हुआ विभाग। मंडल। जैसे– (क) इस नगर पालिका में १२ वार्ड हैं। (ख) इस अस्पताल में यक्ष्मा के रोगियों के लिए अलग वार्ड बनेगा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्डन :
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पुं० [अं०] किसी विभाग विशेषतः छात्रावास के किसी विभाग का व्यवस्थापक आधिकारी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्डर :
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पुं० [अं०] १. वह जो किसी वार्ड (मंडल) में रक्षा का काम करता हो। २. जेलों में कैदियों का पहरेदार। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्णक :
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पुं० [सं० वर्णक+अण्] लेखक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्णव :
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पुं० [सं०] [वर्णनद से वर्णु+अण्] आधुनिक बन्नू नगर और उसके आसपास के प्रदेश का पुराना नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्णिक :
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पुं० [सं० वर्ण+ठञ्-इक] लेखक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्त :
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वि० पुं०=वार्त्त। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्तक :
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पुं० [सं० वार्त+कन्] वटेर पक्षी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्तमानिक :
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वि० [सं० वर्तमान+ठक्-इक] १. वर्तमान (काल) से सम्बन्ध रखनेवाला। आजकल का २. जो वर्तमान (उपस्थित या विद्यमान) से सम्बन्ध रखता हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्ता :
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स्त्री० [सं०] १. बात-चीत। २. ऐसा कथन या बात जो केवल औपचारिक रूप से कही गई हो। पर जिसका व्यावहारिक रूप में सदा उपयोग न होता हो। (फारमल टाक)। ३. ऐसा कथन जो किसी को किसी विषय का ज्ञान कराने लिए हो। (टाक) ४. किवदन्ती। जनश्रुति। अफवाह। ५. खबर। समाचार। ६. वृत्तान्त। हाल। ७. बातचीत का प्रसंग या विषय। ८. वैश्यों की वृत्ति। जैसे–कृषि गो-रक्षा, वाणिज्य-व्यापार आदि। ९. चीजें खरीदना और बेचना। क्रय-विक्रय। १॰. दुर्ग का एक नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्तालाप :
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पुं० [सं० ष० त०] लोगों में आपस में होनेवाली बात-चीत। कथोपथन। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वार्तिक :
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वि० [वृत्ति+ठक्-इक] १. वार्ता संबंधी। २. वार्ता या समाचार लानेवाला। ३. विशद व्याख्या के रूप में होनेवाला। व्याख्यात्मक। पुं० १. किसान। २. व्यवसायी। ३. दूत चर। ४. वैद्य। ५. ऐसी विश्लेषणात्मक व्याख्या जिसमें किसी सूत्र, भाष्य आदि का अर्थ समझाया जाता है उसमें होनेवाली छूट, त्रुटि आदि का निर्देश किया जाता है तथा उसकी व्याप्ति मर्यादित या वर्द्धित की जाती है। ६. कात्यायन का वह प्रसिद्ध ग्रंथ जिसमें पाणिनी के सूत्रों पर विश्लेषणात्मक व्याख्याएँ लिखी हुई है। |
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समानार्थी शब्द-
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वार्त्त :
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वि० [वृत्ति+अण्] १. वृत्ति-सम्बन्धी। वृत्ति का। २. नीरोग। स्वस्थ। ३. हल्का। ४. निस्सार। ५. साधारण। ६. ठीक। पुं० वह जो किसी वृत्ति (काम, धन्धे या पेशे) में लगा हो। वह जो रोजी-रोजगार में लगा हुआ हो। |
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वार्त्ताक :
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पुं० [सं०] १. बैगन। भंटा। २. बटेर पक्षी। |
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वार्त्ताकी :
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स्त्री० [सं० वार्ताक+ङीष्] बैंगन। भंटा। |
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वार्त्तानुकर्षक :
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पुं० [सं० ष० त०] गुप्त बातें ढूँढ़ कर जानने या निकालने वाला, अर्थात् गुप्तचर। जासूस। |
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वार्त्तानुजीवी (विन्) :
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वि० [सं० ष० त०] कृषि या व्यापार से जीविका चलानेवाला। |
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वार्त्तायन :
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पुं० [सं० ब० स०] दे० ‘राजपत्र’। |
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वार्त्तावह :
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पुं० [सं० वार्ता√वह् (ढोना)+अच्] १. पनसारी। २. दूत। ३. राजकीय शासन का आय-व्यय आदि से सम्बन्ध रखनेवाला अंग या विभाग। |
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वार्दर :
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पुं० [वार√दृ (फाड़ना)+अप्] १. दक्षिणावर्त्त शंख। २. जल। ३. आम की गुठली। ४. रेशम। ५. घोड़े के गले पर दाहिनी ओर की एक भौंरी। |
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वार्द्धक्य :
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पुं० [सं० वृद्ध+ष्यञ्, कुक्] १. वृद्ध होने की अवस्था या भाव। वृद्धावस्था। २. वृद्धावस्था के फलस्वरूप होनेवाली कमजोरी। ३. वृद्धि। |
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वार्ध्रीणस :
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पुं० [सं० वार्द्धी नासिका+अच्, नस-आदेश, णत्व, ब० स०] १. लंबे कानोंवाला बकरा। २. गेड़ा। ३. एक प्रकार का पक्षी जिसका बलिदान प्राचीन काल में विष्णु उद्देश्य से किया जाता था। |
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वार्मुच :
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पुं० [सं० वार्√मुच् (त्याग)+क्विप्] १. बादल। २. मोथा। |
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वार्य :
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वि० [सं०] १. वरण करने योग्य। २. वर के रूप में प्राप्त या स्वीकार करने योग्य। ३. बहुमूल्य। वि०=निवार्य। पुं० १. वर। २. चहारदीवारी। |
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वार्ष :
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वि० [सं०]=वार्षिक। |
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वार्षक :
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पुं० [सं० वर्ष+अण्+कन्] पुराणानुसार पृथ्वी के दस भागों में से एक। |
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वार्षगण :
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पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का वैदिक आचार्य। |
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वार्षिक :
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वि० [सं० वर्षा+ठक्-इक] १. जल की वर्षा या वर्षा ऋतु से संबंध रखनेवाला। २. प्रति वर्ष होनेवाला। एक वर्ष के बाद होनेवाला। ३. एक वर्ष तक चलता रहनेवाला। अव्यय प्रति वर्ष के हिसाब से। |
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वार्षिकी :
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स्त्री० [सं० वार्षिक] १. प्रति वर्ष दी जानेवाली वृत्ति या अनुदान। (एनुइटी) २. प्रतिवर्ष होनेवाला कोई प्रकाशन। (एनुअल) ३. किसी मृत व्यक्ति के उद्देश्य से उसकी मरणतिथि के विचार से प्रतिवर्ष होनेवाला कोई स्मारक कृत्य। बरसी। |
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वार्षिक्य :
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वि० [सं० वार्षिक+यत्]=वार्षिक। पुं० वर्षा ऋतु। |
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वार्षी :
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स्त्री० [सं० वर्षा+अण्+ङीष्] वर्षा ऋतु। |
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वार्षुक :
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वि० [सं० वर्षुक+अण्] १. बरसनेवाला। २. बरसानेवाला। |
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वार्ष्ण :
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पुं० [सं० वृष्णि+अण्] कृष्णचन्द्र। |
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वार्ष्णेय :
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वि० [सं० वृष्णि+ढक्-एय] १. वार्ष्ण सम्बन्धी। २. वार्ष्ण का अनुयायी या भक्त। पुं० १. वृष्णि का वंशज। २. श्रीकृष्ण। |
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वार्हस्पत्य :
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वि० [सं० वृहस्पति+य़ञ्]=बार्हस्पत्य। |
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