शब्द का अर्थ
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वन :
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पुं० [सं०√वन् (सेवा)+घ] १. ऐसा स्थान जहाँ बहुत दूर तक हर जगह पेड़ ही पेड़ हों। जंगल। वन। २. बगीचा। वाटिका। ३. फूलों का गुच्छा। ४. जल। पानी। ५. घर। मकान। ६. किरण। रश्मि। ७. चमसा नामक यज्ञपात्र। ८. दशनामी संन्यासियों का एक वर्ग। |
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वन-कटाई :
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स्त्री० [सं०+हिं०] किसी क्षेत्र को जंगल से रहित कर देना। (डिफ़ारेस्टेशन)। |
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वन-काम :
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वि० [सं० वन√कम् (चाहना)+णिङ्+अण्०] जंगल में रहनेवाला। |
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वन-कुंडल :
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पुं० [सं० ष० त०] अच्छी जाति का सूरन या जिमीकंद। |
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वन-गमन :
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पुं० [सं० स० त०] १. वन की ओर जाना। २. संन्यास ग्रहण करना। |
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वन-गोचर :
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वि० [ब० स०] १. प्रायः वन में जानेवाला। २. जल में रहनेवाला। पुं० १. व्याध। २. वनवासी। ३. जंगल। |
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वन-चंदन :
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पुं० [सं० मध्य० स०] १. अगरु। अगर। २. देवदार। |
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वन-चंद्रिका :
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स्त्री० [सं० स० त०] मल्लिका। |
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वन-ज्योत्स्ना :
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स्त्री० [सं० ष० त०] एक प्रकार की चमेली। |
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वन-देव :
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पुं० [ष० त०] वन का अधिष्ठाता देवता। |
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वन-देवी :
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स्त्री० [ष० त०] वन की अधिष्ठात्री देवी। |
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वन-नाश :
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पुं० [ष० त०] वनाच्छादित प्रदेशों के वृक्ष काटकर उसे साफ करना। |
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वन-नाशक :
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पुं० [ष० त०] दे० ‘वनकटाई’। |
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वन-पाल :
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पुं० [सं० वन√पाल् (रक्षाकरना)+णिच्+अच्] वह अधिकारी जो वनों की रक्षा और वृद्धि के लिए नियुक्त रहता है। राजिक। (फाँरेस्ट रेंजर)। |
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वन-पिप्पली :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] छोटी पीपल। |
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वन-प्रिय :
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पुं० [ब० स०] १. कोकिल। २. साँभर हिरन। ३. कपूर कचरी। ४. बहेड़े का पेड़। |
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वन-मल्लिका :
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स्त्री० [ष० त०] सेवती का पौधा या फूल। |
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वन-महोत्सव :
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पुं० [ष० त०] स्वतन्त्र भारत में वर्षा ऋतु में वनों का विस्तार करने के उद्देश्य से होनेवाला कार्यक्रम जिसमें वृक्ष लगाये जाते हैं। |
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वन-माला :
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स्त्री० [मध्य० स०] १. जंगली फूलों की माला। २. विशेषतः कुंद, कमल, मदार और तुलसी की बनी हुई तथा पैरों तक लटकनेवाली लंबी माला। |
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वन-रक्षक :
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पुं० [ष० त०] वन की देख-भाल करनेवाला अधिकारी। |
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वन-राजि,वन-राजी :
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स्त्री० [ष० त०] १. वन की श्रेणी। वनसमूह। वृक्ष-समूह। २. जंगल में की पगडंडी। |
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वन-रोपण :
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पुं० [सं० ष० त०] खुले मैदान में अर्थात् जहाँ पहले से पेड़-पौधे न हों, वहाँ नये सिरे से पेड़-पौधे लगाकर वन या उपवन तैयार करने की क्रिया। वनाच्छादन (एफ़ारेस्टेशन)। |
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वन-लक्ष्मी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. वन की शोभा। २. केला। |
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वन-वृत्ति :
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स्त्री० [सं०] १. जंगल में जाकर जीविका उपार्जित करना। २. वन्य फल खाकर अथवा वन्य वस्तुएँ बेचकर जीविका चलाना। |
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वन-शूकर :
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पुं० [सं० ष० त०] जंगली सूअर जो बहुत ही बलवान भीषण तथा हिंसक होता है। |
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वन-संस्कृति :
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स्त्री० [सं०] आदि काल की वह संस्कृति जिसका विकास उस समय हुआ था जब लोग वन में ही रहते थे, फल-मूल खाकर अथवा पशुओं का शिकार करके और खालें, छालें आदि ओढ़-पहनकर रहते थे (फ़ॉरेस्ट कल्चर)। |
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वनग :
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पुं० [वन√गम् (जाना)+ड] बनगामी। वि० वन की ओर जानेवाला। |
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वनचर :
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पुं० [सं० वन√चर् (चलना)+ट] १. वन में भ्रमण करनेवाला या रहनेवाला। २. जंगली जीव या प्राणी। ३. शरभ नामक जंतु। |
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वनज :
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वि० [सं० वन√जन् (उत्पन्न करना)+ड] जो वन (जंगल या पानी) में उत्पन्न हो। पुं० १. कमल। २. मोथा। ३. तुंबुरू का फल। ४. बनकुलथी। ५. जंगली बिजौरा नीबू। |
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वनजा :
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स्त्री० [सं० वनज+टाप्] १. मुदगपर्णी। २. निर्गुडी। ३. सफेद कँटियारी। ४. बन-तुलसी। ५. असगंध। ६. बन-कपास। |
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वनजीवी (विन्) :
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पुं० [सं० वन√जीव् (जीना)+णिनि] १. लकड़हारा। २. बहेलिया। |
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वनद :
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पुं० [सं० वन√दा (देना)+क] मेघ। बादल। |
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वनमाली (लिन्) :
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वि० [सं० वनमाला+इनि] वनमाला धारण करनेवाला। पुं० श्रीकृष्ण का एक नाम। |
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वनराज :
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पुं० [ष० त० समासान्त टच् प्रत्यय] १. सिंह। २. अश्मंतक नामक वृक्ष। |
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वनवास :
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पुं० [सं० स० त०] वन का निवास। जंगल में रहना। मुहावरा– (किसी को) वनवास देना=बस्ती छोड़कर जंगल में जाकर रहने की आज्ञा देना। |
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वनवासक :
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पुं० [सं० ष० त०] १. शाल्मली कंद। २. एक प्राचीन नगर। |
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वनवासी (सिन्) :
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वि० [सं० वन√वस् (बसना)+णिनि] [स्त्री० वनवासिनी] १. वन में रहनेवाला। २. बस्ती छोड़कर जंगल में जाकर वास करनेवाला। पुं० १. ऋषभ नामक ओषधि। २. वराही कंद। ३. नील महिष नामक कंद। ४. डोम कौआ। ५. दक्षिण भारत का एक प्राचीन नगर जहाँ कादम्ब राजाओं की राजधानी थी। |
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वनस्थ :
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वि० [सं० वन√स्था (ठहरना)+क०] १. वन में रहनेवाला। २. वह जिसने वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण कर लिया हो। ३. जंगली जानवर। |
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वनस्थली :
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स्त्री० [सं० ष० त०] वनों से घिरा हुआ प्रदेश। |
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वनस्था :
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स्त्री० [सं० वनस्थ+टाप्] अश्वत्थ। पीपल। |
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वनस्पति :
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स्त्री० [सं० वन-पति, ष० त० सुट्, आगम] जमीन से उगनेवाले पेड़, पौधे लताएँ आदि। |
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वनस्पति-घी :
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पुं० [सं०+हिं०] आज-कल घी की तरह का वह चिकना पदार्थ जो नारियल, मूँगफली आदि के तेल साफ करके बनाया जाता है और प्रायः तरकारियाँ, पकवान आदि बनाने के लिए घी के स्थान पर काम में लाया जाता है। |
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वनस्पति-विज्ञान :
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पुं० [सं० ष० त०] आधुनिक विज्ञान की वह शाखा जिसमें वनस्पतियों, के उद्भव, रचना, आकार-प्रकार, विकार आदि का विवेचन होता है। (बोटैनी)। |
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वनहास :
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पुं० [सं० ष० त०] १. काश। काँस। २. कुंद का पौधा और फूल। |
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वनाग्नि :
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स्त्री० [सं० वन-अग्नि, ष० त०] वन में लगनेवाली आग। दावानल। |
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वनाच्छादन :
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पुं० [सं० वन-आच्छादन, ष० त०] वन-रोपण। |
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वनांत :
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पुं० [सं० वन-अंत, ष० त०] जंगली भूमि या मैदान। |
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वनायु :
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पुं० [सं०√वन्+आयुच्] १. अच्छे घोड़ों के लिए प्रसिद्ध एक प्राचीन देश। २. उक्त देश का निवासी। ३. पुरुरवा का एक पुत्र। |
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वनायुज :
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पुं० [सं० वनायु√जन् (उत्पन्न करना)+ड] वनायु देश का घोड़ा। |
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वनाश :
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वि० [सं० वन√अश् (खाना)+अण्०] १. जल पीनेवाला। २. केवल जल पीकर रहनेवाला। पुं० एक तरह का छोटा जौ। |
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वनि :
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पुं० [सं०√वन्+इ०] १. अग्नि। २. ढेर। ३. याचना। ४. इच्छा। |
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वनिका :
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स्त्री० [सं०√वनी+कन्+टाप्, हृस्व] छोटा वन। उपवन। |
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वनित :
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भू० कृ० [सं० वन् (माँगना)+क्त] १. याचित। २. अभिलषित। ३. पूजित। |
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वनिता :
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स्त्री० [सं० वनित+टाप्] १. अनुरक्त स्त्री। प्रिया। प्रियतमा। २. औरत। स्त्री। ३. छः वर्णों की एक वृत्ति जिसे ‘तिलका’ और ‘डिल्ला’ भी कहते हैं। इसमें दो सगण होते हैं। |
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वनिता-मुख :
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पुं० [सं० ब० स०] मार्कण्डेय पुराण के अनुसार मनुष्यों की एक जाति। |
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वनी :
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स्त्री० [सं० वन+ङीष्] छोटा वन। वनस्थली। |
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वनीकृत :
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भू० कृ० [सं० वन+च्वि, ईत्व√कृ+क्त] (स्थान) जिसमें बहुत से पेड़ लगाये गये हों। जो जंगल के रूप में लाया गया हो। |
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वने-किंशुक :
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पुं० [सं० स० त०] ऐसी चीज जो वैसे ही बिना माँगे मिले, जैसे वन में किशुंक बिना माँगे या बिना प्रयास किए मिलता है। |
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वनेचर :
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वि० [सं० वने√चर् (गति)+ट, अलुक, स०]=वनचर। पुं० १. जंगली आदमी। २. संन्यासी। ३. वन्य पशु। |
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वनेज्य :
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पुं० [सं० वन-जन्य, स० त०] १. आम। २. पर्पट। पापड़ा। |
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वनोत्सर्ग :
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पुं० [सं० वन-उत्सर्ग, ष० त०] १. देवमंदिर, वापी, कूप, उपवन आदि का शास्त्रविधि से किया जानेवाला उत्सर्ग। मंदिर, कूआँ आदि बनवाकर सर्वसाधारण के लिए दान करना। २. उक्त प्रकार के उत्सर्ग की शास्त्रीय विधि। |
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वनौकस् :
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वि० [सं० वन-ओकस्, ब० स०] जिसका घर वन में हो। वनवासी। पुं० १. तपस्वी। २. जंगली जानवर। |
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वनौषधि :
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स्त्री० [सं० वन-ओषधि, मध्य० स०] जंगल में पैदा होनेवाली जड़ी-बूटी। |
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वन्नरवाल :
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स्त्री० [सं० वंदन+माला]वंदनवार। उदाहरण-वन्नरवाल बंधाणी वल्ली।–प्रिथीराज। |
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वन्य :
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वि० [सं० वन+यत्] १. वन में उत्पन्न होनेवाला। वनोद्भव। २. जंगल में रहनेवाला। जंगली। जैसे–वन्य जातियाँ। ३. जो सभ्य या शिष्ट न हो, बल्कि जिसकी प्रवृत्तियाँ बर्बर हों। पुं० १. जंगली सूरन। २. क्षीरविदारी। ३. वाराही कन्द। ४. राख। |
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वन्या :
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स्त्री० [सं० वन+य, टाप्] १. मुद्गुपर्णी। २. गोपाल ककड़ी। ३. गुंजा। घुँघची। ४. असगंध। |
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