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शब्द का अर्थ

प्राग  : वि० [सं० प्राक्] १. पहले का। पहलेवाला। २. पहला माना या समझा जानेवाला; अर्थात् मुख्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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प्रागज्योतिष  : पुं० [सं० ब० स०] महाभारत आदि के अनुसार असम राज्य। कामरूप देश।
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प्रागभाव  : पुं० [सं० प्राग्-अभाव, मध्य० स०] १. पहले से अथवा पूर्वकाल से वर्तमान रहने या होने की अवस्था। (प्रि-एग्ज़िस्टेन्स) २. वैशेषिक दर्शन के अनुसार, पाँच प्रकार के अभावों में से पहला। ऐसा अभाव जिसकी पूर्ति पीछे या शब्द में हो गई हो। जैसे—बनकर तैयार होने-से पहले घर या वस्त्र का प्रागभाव होता है। ३. ऐसा पदार्थ जिसका आदि तो न हो, परन्तु अंत होता हो। अनादि परंतु सांत।
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प्रागल्भ  : पुं० [सं० प्रगल्भ+ष्यत्र्]=प्रगल्भता।
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प्रागार  : पं० [सं० प्र-अगार, प्रा० स०] १. घर। मकान। २. प्रासाद। महल।
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प्रागुक्ति  : स्त्री० [सं० प्राची-उक्ति, कर्म० स०] पहले कही हुई बात। पूर्व-कथन।
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प्रागुत्तर  : वि० [सं० प्राच्-उत्तर, कर्म० स०] पूर्वोत्तर।
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प्रागुत्तर  : स्त्री० [सं० प्राची-उत्तरा, कर्म० स०] ईशान कोण।
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प्रागुदीची  : स्त्री० [सं० प्राची-उदीची, कर्म० स०] ईशान कोण।
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प्रागैतिहासिक  : वि० [सं० प्राक्-ऐतिहासिक, कर्म० स०] क्रम-बद्ध रूप में प्राप्त होनेवाला लिखित इतिहास से पूर्व काल का। इतिहास में वर्णित और निश्चित काल से पहले का। (प्री-हिस्टारिक)
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प्राग्ज्योतिषपुर  : पुं० [सं०] प्राग्ज्योतिष की राजधानी जिसे अब गोहाटी कहते हैं। कहते हैं कि यह नगर कुश के पत्र अमूर्तरज ने बसाया था और परवर्ती काल में नरकासुर की राजधानी यही थी।
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प्राग्दक्षिणा  : स्त्री० [सं० प्राची-दक्षिण, कर्म० स०] अग्निकोण।
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प्राग्द्वार  : पुं० [सं० कर्म० स०] पूर्वीद्वार।
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प्राग्भक्त  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. वैद्यक में, भोजन करने से कुछ पहले का समय जिसमें ओषधि खाई जाती है। २. उक्त समय में ओषधि खाना।
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प्राग्भव  : पं० [सं० कर्म० स०] पूर्व-जन्म।
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प्राग्भाग  : पुं० [सं० कर्म० स०] अगला या आगे का भाग।
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प्राग्र  : पुं० [सं० प्र-अग्र, प्रा० स०] चरम या शीर्षविंदु।
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प्राग्वचन  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. प्राक्कथन। २. मन्वादि महर्षियों के वचन। (महा०) ३. पहले से किसी को दिया हुआ वचन।
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प्राग्वर्ण  : पुं० [सं० कर्म० स०] वर्णमाला का प्रारम्भिक अक्षर या वर्ण। उदा०—ये नयन डूबे अनेकों बार हैं, काव्य के प्राग्वर्ण पर भी हैं रुके।—पन्त।
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