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पूछ  : स्त्री० [हिं० पूछना] १. पूछने की क्रिया या भाव। जिज्ञासा। २. चाह। तलब। जरूरत। ३. आदर। खातिर। स्त्री०=पूँछ (दुम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पूछ  : स्त्री० [हिं० पूछना] १. पूछने की क्रिया या भाव। जिज्ञासा। २. चाह। तलब। जरूरत। ३. आदर। खातिर। स्त्री०=पूँछ (दुम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूछ-गाछ  : स्त्री०=पूछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पूछ-गाछ  : स्त्री०=पूछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूछ-ताछ  : स्त्री० [हिं० पूछना+ताछना अनु०] १. कुछ जानने के लिए किसी से प्रश्न करने की क्रिया या भाव। किसी बात का पता लगाने के लिए बार-बार या कई लोगों से कुछ पूछना या प्रश्न करना. २. किसी विषय में खोज, अनुसंधान या जाँच पडताल करने के लिए बार-बार जिज्ञासा या प्रश्न करना। जैसे—बहुत पूछ-ताछ करने पर इस मामले का कुछ पता चला।
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पूछ-ताछ  : स्त्री० [हिं० पूछना+ताछना अनु०] १. कुछ जानने के लिए किसी से प्रश्न करने की क्रिया या भाव। किसी बात का पता लगाने के लिए बार-बार या कई लोगों से कुछ पूछना या प्रश्न करना. २. किसी विषय में खोज, अनुसंधान या जाँच पडताल करने के लिए बार-बार जिज्ञासा या प्रश्न करना। जैसे—बहुत पूछ-ताछ करने पर इस मामले का कुछ पता चला।
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पूछ-पाछ  : स्त्री०=पूछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पूछ-पाछ  : स्त्री०=पूछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूछना  : स० [सं० पृच्छण] १. किसी से कोई बात जानने या समझने के लिए शब्दों का प्रयोग करना। जिज्ञासा करना। जैसे—किसी से कहीं का रास्ता (या किसी का नाम) पूछना। २. जाँच, परीक्षा आदि के प्रसंग में इसलिए किसी के सामने कुछ प्रश्न रखना कि वह उसका उत्तर दे। प्रश्न करना। जैसे—परीक्षा के समय विद्यार्थियों से तरह-तरह की बातें पूछी जाती हैं। ३. किसी के प्रति सहानुभूति रखते हुए उससे यह जानने का प्रयत्न करना कि आज-कल तुम कैसे हो या किस प्रकार जीवन यापन करते हो। किसी का हाल-चाल या खोज-खबर लेना। जैसे—(क) वह महीनों बीमार पड़ा रहा पर कोई उसके पास पूछने तक न गया। (ख) अजी, गरीबों को कौन पूछता है। ४. किसी के प्रति आदर-सत्कार का भाव प्रकट करते हुए उसकी ओर उचित ध्यान देना। जैसे—इतनी भीड़ भाड़ में कौन किसे पूछता है। मुहा०—(किसी से) बात तक न पूछना या बात न पूछना=(क) कुछ भी ध्यान न देना। (ख) बहुत ही उपेक्षापूर्ण व्यवहार करना। ५. उचित महत्व या मूल्य समझते हुए आदर या कदर करना। जैसे—आज-कल गुण या योग्यता को कौन पूछता है। ६. किसी प्रकार का ध्यान देते हुए कोई जिज्ञासा करना या कुछ कहना। जैसे—उनके घर पहुँचकर सीधे ऊपर चले जाना; कोई कुछ नहीं पूछेगा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पूछना  : स० [सं० पृच्छण] १. किसी से कोई बात जानने या समझने के लिए शब्दों का प्रयोग करना। जिज्ञासा करना। जैसे—किसी से कहीं का रास्ता (या किसी का नाम) पूछना। २. जाँच, परीक्षा आदि के प्रसंग में इसलिए किसी के सामने कुछ प्रश्न रखना कि वह उसका उत्तर दे। प्रश्न करना। जैसे—परीक्षा के समय विद्यार्थियों से तरह-तरह की बातें पूछी जाती हैं। ३. किसी के प्रति सहानुभूति रखते हुए उससे यह जानने का प्रयत्न करना कि आज-कल तुम कैसे हो या किस प्रकार जीवन यापन करते हो। किसी का हाल-चाल या खोज-खबर लेना। जैसे—(क) वह महीनों बीमार पड़ा रहा पर कोई उसके पास पूछने तक न गया। (ख) अजी, गरीबों को कौन पूछता है। ४. किसी के प्रति आदर-सत्कार का भाव प्रकट करते हुए उसकी ओर उचित ध्यान देना। जैसे—इतनी भीड़ भाड़ में कौन किसे पूछता है। मुहा०—(किसी से) बात तक न पूछना या बात न पूछना=(क) कुछ भी ध्यान न देना। (ख) बहुत ही उपेक्षापूर्ण व्यवहार करना। ५. उचित महत्व या मूल्य समझते हुए आदर या कदर करना। जैसे—आज-कल गुण या योग्यता को कौन पूछता है। ६. किसी प्रकार का ध्यान देते हुए कोई जिज्ञासा करना या कुछ कहना। जैसे—उनके घर पहुँचकर सीधे ऊपर चले जाना; कोई कुछ नहीं पूछेगा।
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पूछरी  : स्त्री०=पूँछ (दुम)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पूछरी  : स्त्री०=पूँछ (दुम)।
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पूछा-ताछी, पूछा-पाछी  : स्त्री० [हिं० पूछना]=पूछ-ताछ।
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पूछा-ताछी, पूछा-पाछी  : स्त्री० [हिं० पूछना]=पूछ-ताछ।
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