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निर्गुण  : वि० [सं० निर्-गुण, ब० स०] [भाव० निर्गुणता] १. जिसमें कोई गुण न हो। सत्त्व, रज और तम इन तीनों प्रकार के गुणों से रहित। २. जिसमें कोई अच्छा गुण या खूबी न हो। गुणरहित। पुं० परमात्मा का वह रूप जो सत्त्व, रज और तम तीनों गुणों से परे तथा रहित माना जाता है।
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निर्गुण-धारा  : स्त्री० [सं० ष० त०] हिन्दी साहित्य की वह ज्ञानाश्रयी धारा या शाखा जिसमें मुख्यतः निर्गुण ब्रह्म की उपासना आदि के काव्य और पद हैं।
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निर्गुण-भूमि  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] वह भूमि जिसमें कुछ भी पैदा न होता हो। ऊसर या बंजर जमीन। (कौ०)
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निर्गुण-संप्रदाय  : पुं० [सं० ष० त०] भारतीय धार्मिक क्षेत्र में, ऐसे एकेश्वरवादी संतों और साधुओं का संप्रदाय, जो निर्गुण ब्रह्म में विश्वास रखते और उसकी उपासना करते हैं। (कहते हैं कि मूलतः इस्लाम धर्म की देखा-देखी जाति-पाँति का भेद मिटाने और लोगों को सगुणोपासना से हटाकर एकेश्वरवाद की ओर लाने के लिए स्वामी रामानंद, कबीर आदि ने इसका समर्थन किया था।)
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निर्गुणता  : स्त्री० [सं० निर्गुण+तल्–टाप्] निर्गुण होने की अवस्था या भाव।
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निर्गुणिया  : वि०=निर्गुणी।
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निर्गुणी  : वि० [सं० निर्गुण] (व्यक्ति) जिसमें कोई गुण या खूबी न हो।
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