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धरहर  : स्त्री० [हिं० धरना+हर (प्रत्य०)] १. दो या अधिक लड़नेवालों को धर-पकड़कर अलग करने या लड़ाई बंद कराने का कार्य। बीच-बचाव। २. किसी को पकड़ जाने या मार खाने से बचाने के लिए किया जाने वाला काम। बचाव। रक्षा। ३. धीरज। धैर्य। ४. दृढ़ निश्चय। उदा०—जमकरि मुँह तर हरि पर्यौ, इहिं धरि हरि चित्त लाउ।—बिहारी। ५. दे० ‘धर-पकड़’। वि० रक्षक।
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धरहरना  : अ० १. दे० ‘धड़कना’। २. दे० ‘धड़धड़ाना’।b स० दे० ‘धड़धड़ाना’।
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धरहरा  : पुं० [हिं० धुर=ऊपर+घर] १. खंबे के सदृश ऐसी ऊंची वास्तु-रचना, जिस पर चढ़ने के लिए अंदर से सीढ़ियाँ बनी होती हैं। धौरहर। मीनार। २. ’जल-स्तंभ’।
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धरहरि  : स्त्री०, वि०=धरहर।
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धरहरिया  : पुं० [हिं० धरहरि] १. धर-पकड़कर बचानेवाला। बीच-बचाव करनेवाला। २. रक्षक।
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