शब्द का अर्थ
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क्षत :
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वि० [सं०√क्षण्+क्त] १. जिसे क्षति या हानि पहुँची हो। २. (व्यक्ति) जिसका आघात या चोट लगने से कोई अंग टूट या बिगड़ गया हो। घायल। ३. (वस्तु) जिसका कोई भाग टूट चुका हो। खंडित। पुं० आघात आदि से उत्पन्न होनेवाला घाव। जखम। |
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क्षत-योनि :
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वि० [ब० स०] (बालिका या स्त्री) जिसका कौमार्य खंडित हो चुका हो। |
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क्षत-रोहण :
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पुं० [ष० त०] जखम या घाव का भरना। |
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क्षत-विक्षत :
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वि० [कर्म० स०] १. (व्यक्ति) जिसे बहुत चोट लगी हो। बहुत घायल और लहूलुहान। २. (पदार्थ) अनेक आघातों अथवा भारी आघात के कारण जिसके सब अंग विकृत हो गये हों। |
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क्षत-वृत्ति :
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वि० [ब० स०] जिसकी वृत्ति या जीविका का साधन नष्ट हो चुका हो। |
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क्षत-व्रण :
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पुं० [मध्य० स०] आघात या चोट लगने से होनेवाला घाव। |
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क्षत-व्रत :
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वि० [ब० स०] जिसका व्रत खंडित हो चुका हो। |
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क्षतघ्न :
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पुं० [सं० क्षत√हन् (हिंसा)+टक्] कुकरौंधा। |
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क्षतघ्नी :
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स्त्री० [सं० क्षतघ्न+ङीप्] लाख। लाह। |
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क्षतज :
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वि० [सं० क्षत√जन् (उत्पत्ति)+ड] १. क्षत या आघात से उत्पन्न होने वाला। जैसे क्षतज ज्वर। २. लाल। सुर्ख। पुं० १. खून। रक्त। २. पीव। मवाद। ३. वैद्यक में सात प्रकार की प्यासों में से एक जो घाव में से बहुत अधिक रक्त निकल जाने के कारण लगती है। |
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क्षतहर :
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पुं० [सं० क्षत√ह् (हरण)+ट] अगर का पेड़। |
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क्षता :
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वि० [सं० क्षत+टाप्] (कन्या) जिसका कौमार्य खंडित हो चुका हो। |
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क्षतारि :
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वि० [सं० क्षत-अरि, ब० स०] विजयी। |
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क्षताशौच :
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पुं० [सं० क्षत-अशौच, मध्य० स०] घायल या जख्मी होने के कारण लगनेवाला एक प्रकार का अशौच। |
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क्षति :
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स्त्री० [सं० √क्षण्+क्तिन्] १. आघात या चोट लगने से होने वाला घाव। २. कोई चीज खो जाने, खराब या क्षीण हो जाने अथवा किसी के द्वारा नष्ट किये जाने पर होनेवाली हानि। ३. व्यापार में होनेवाली हानि। घाटा। ४. कीर्ति या यश में लगनेवाला धब्बा। कलंक। |
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क्षति-ग्रस्त :
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वि० [तृ० त०] जिसकी किसी प्रकार की क्षति या हानि हुई हो। |
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क्षति-पूर्ति :
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स्त्री० [ष० त०] १. हानि या घाटे का पूरा होना। २. वह धन जो किसी की हानि पूरी करने के बदले में उसे दिया जाय। |
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क्षतोदर :
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पुं० [सं० क्षत-उदर, ब० स०] एक रोग जिसमें आंतों में क्षत या घाव हो जाने पर जल भरने लगता है। |
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क्षत्ता (त्तृ) :
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पुं० [सं०√क्षद् (संभरण)+तृच] १. द्वारपाल। दरबान। २. मछली। ३. नियोग करनेवाला पुरुष। ४. दासी पुत्र। ५. एक प्राचीन वर्णसंकर जाति जिसकी उत्पत्ति शूद्र पिता और क्षत्रिय माता से कही गई है। |
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क्षत्र :
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पुं० [सं०√क्षण्+क्विप् क्षत्√त्रै (रक्षाकरना)+क] १. बल, शक्ति या सत्ता। २. शासित क्षेत्र। ३. योद्धा। ४. क्षत्रिय जति या उसका व्यक्ति। ५. शरीर। ६. घन। ७. जल। पानी। ८. तगर का वृक्ष। |
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क्षत्र-कर्म (न्) :
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पुं० [ष० त०] ऐसे कर्म जिन्हें क्षत्रिय करते हों अथवा जो क्षत्रियों को करने चाहिए। |
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क्षत्र-धर्म :
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पुं० [ष० त०] १. क्षत्रियों के काम या धर्म। यथा—अध्ययन दान, प्रजापालन आदि। २. शौर्य। बहादुरी। |
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क्षत्र-धर्मा (र्मन्) :
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वि० [ब० स०] क्षत्रियों के धर्म का पालन करनेवाला। पुं० योद्धा। वीर। |
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क्षत्र-धृति :
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पुं० [ष्० त०] १. सावन की पूर्णिमा को होनेवाला एक यज्ञ। २. राजसूय यज्ञ का एक भाग। |
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क्षत्र-पति :
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पुं० [ष० त०] किसी क्षत्र या राज्य का स्वामी। राजा। |
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क्षत्र-बंधु :
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पुं० [ष० त०] १. क्षत्रिय जाति का व्यक्ति। २. ऐसा व्यक्ति जो जन्म से तो क्षत्रिय हो, परन्तु क्षत्रियों के से कर्म न करता हो। |
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क्षत्र-योग :
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पुं० [ष० त०] ज्योतिष में एक योग। जो मनुष्य को प्रायः राजा या उसके समान बनाता है। |
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क्षत्र-विद्या :
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स्त्री० [ष० त०] क्षत्रियों की विद्या अर्थात् युद्ध करने की कला या विद्या। |
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क्षत्र-वृक्ष :
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पुं० [मध्य० स०] मुचकुन्द नामक वृक्ष। |
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क्षत्र-वृद्ध :
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पुं० [स० त०] तेरहवें मनु के पुत्र का नाम। |
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क्षत्र-वृद्धि :
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पुं० [ब० स०]=क्षत्रवृद्ध। |
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क्षत्र-वेद :
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पुं० [ष० त०] धनुर्वेद। |
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क्षत्र-सव :
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पुं० [ष० त०] १. केवल क्षत्रियों के करने योग्य यज्ञ। २. प्राचीन भारत का एक उत्सव जिसमें बलि चढ़ाई जाता थी। |
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क्षत्रप :
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पुं० [सं० क्षत्र√पा (रक्षण)+क] १. क्षत्रपति। राजा। २. शक अथवा पारस के प्राचीन साम्राज्य में मांडलिक राजाओं की उपाधि या पद। ३. राजा की ओर से किसी देश या प्रान्त का शासन करनेवाला प्रधान अधिकारी। |
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क्षत्राणी :
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स्त्री० [सं० क्षात्र+आनुक्, ङीप्] १. क्षत्रिय जाति की स्त्री। २. बहादुर या वीर स्त्री। |
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क्षत्रांतक :
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पुं० [सं० क्षत्र-अतंक ष० त०] परशुराम जिन्होंने क्षत्रियों का अन्त या नाश किया था। |
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क्षत्रिनी :
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स्त्री० [सं०] मजीठ। स्त्री०=क्षत्राणी। |
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क्षत्रिय :
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पुं० [सं० क्षत्र+घ—इय] [स्त्री० क्षत्रिया, क्षत्राणी] १. हिन्दुओं के चार वर्णों में से दूसरा वर्ण। इस वर्ण के लोगों का काम देश का शासन और शत्रुओं से उसकी रक्षा करना माना गया है। २. उक्त जाति का पुरुष। 3 राजा। ४. बल। शक्ति। |
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क्षत्रियका :
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स्त्री० [सं० क्षत्रिया√कन्+टाप्, ह्रस्व]=क्षत्रिया। |
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क्षत्रियहण :
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स्त्री० [सं० क्षत्रिय√हन् (हिंसा)+अच्, ण्त्व] परशुराम। |
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क्षत्रिया :
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स्त्री० [सं० क्षत्रिय+टाप्] क्षत्रिय जाति की स्त्री। |
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क्षत्रियाणी :
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स्त्री० [सं० क्षत्रिय+आनुक, ङीष्] क्षत्रिय की पत्नी। |
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क्षत्रियिका :
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स्त्री० [सं० क्षत्रिया+कन् टाप्, ह्रस्व]=क्षत्रिया। |
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क्षत्रियी :
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स्त्री० [सं० क्षत्रिय+ङीष्]=क्षत्रियाणी। |
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क्षत्री :
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पुं०=क्षत्रिय। |
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