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कुरु  : पुं० [सं०√कृ+कु, उत्व] १. आर्यों का एक प्राचीन कुल। २. एक प्राचीन प्रदेश जिसके अन्तर्गत कुरुराष्ट्र, कुरुक्षेत्र और कुरुजांगल ये तीन इलाके थे। ३. एक प्रसिद्ध राजा जिसके वंश में पाण्डु और धृतराष्ट्र हुए थे। ४. उक्त वंश में उत्पन्न पुरुष। पुं० =कर्त्ता। वि०=क्रूर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कुरु-क्षेत्र  : पुं० [मध्य० स०] १. दिल्ली और अम्बाले के बीच के उस प्रदेश का प्राचीन नाम जहाँ महाभारत का युद्ध हुआ था। २. उक्त प्रदेश में स्थित एक तीर्थ जहाँ सूर्य-ग्रहण के समय स्नान करने के लिए लोग जाते है।
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कुरुआ  : पुं० [सं० कुडव] अन्न मापने का एक पात्र जिसमें लगभग दस छटाँक अन्न आता है।
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कुरुआर  : स्त्री० [हिं० कुरियाल] चिडियों आदि का मौज में पंख खुजलाना। उदा०-कोउ नहिं करै केलि कुरुआरा।—जायसी।
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कुरुई  : स्त्री० [सं० कुडव] बाँस या मूँज की छोटी डलिया। मौनो।
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कुरुख  : वि० [सं० कु+फा० रूख] १. जिसने किसी के प्रति उदारता दया प्रेम आदि का भाव छोड दिया हो। २. कुपित। नाराज।
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कुरुखेत  : पुं० =कुरुक्षेत्र।
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कुरुजांगल  : पुं० [द्व स०] एक प्राचीन प्रदेश जो पांचाल देश के पश्चिम में था।
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कुरुंट (क)  : पुं० [सं० कु√ रुण्ट् (चुराना)+अण् (कुरुण्ट+क)] लाल कटसरैया।
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कुरुंड  : पुं० [सं० कु√रुण्ड् (चुराना)+अण्] लाल कटसरैया। पुं० =कुरंड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कुरुंब  : पुं० [सं०√कृ+उम्बच्, उत्व] नारंगी का पेड़ और उसका फल।
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कुरुंबा  : स्त्री०, [सं० कुरुंब+टाप्] द्रोणपुष्पी।
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कुरुंबिका  : स्त्री० [सं० कुरुंब+कन्+टाप्, इत्व]=कुरुंबा।
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कुरुम  : पुं० [सं० कूर्म्म] कूर्म। कच्छप। उदा०-गवनत कुरुम पीठि कलमली। -जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कुरुल  : पुं० [सं० ] सिर के बालों की लट। पुं० =कुरंड।
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कुरुला  : स्त्री० [सं० कुरुल+टाप्] एक प्रकार का गमक। (संगीत)।
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कुरुविंद  : पुं० [सं० कुरु√विद् (लाभ)+श, मुम्] १. मोथा। २. नीलम और मानिक की तरह का एक रत्न जिसका चूर्ण पालिश के काम आता है। ३. दर्पण। शीशा। ४. उरद। ५. ईंगुर।
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