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कील  : स्त्री० [सं०√कील् (ठोंकना, बाँधना आदि)+घञ्] १. लकड़ी, लोहे आदि का कोई ऐसा गोलाकार, लंबोतरा नुकीला टुकड़ा जो गाड़ने, फँसाने आदि के लिए बनाया गया हो। मेख। पद—कील-काँटा=किसी कार्य के संपादन के लिए आवश्यक उपकरण या उपयोगी सामग्री। जैसे—अब चट पट कील काँटे से लैस होकर चल पड़ो। २. कोई गोलाकार लंबोतर नुकीली चीज। जैसे—(क) कान या नाम में पहनने की कील या फूल। (ख) फुंसी या फोड़े के मुँह पर अड़ी हुई पीब की कील। (ग) मुहासे की मांस-कील। (घ) चक्की या जांते के बीच में लगी हुई कील या खूँटी। (ङ) कुम्हार के चाक में की कील आदि। ३. वैद्यक में, वह मूढ़-गर्भ जो योनि के मुँह पर आकर अटक गया हो। ४. कामशास्त्र में, स्त्री-प्रसंग का एक प्रकार का आसन। कीलासन। ५. आग की लपट। अग्नि-शिखा। ६. माला। ७. खंभा। ८. एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र। ९. शिव का एक नाम। १॰. हाथ की कोहनी या उससे किया जानेवाला आघात। स्त्री० [देश] असम देश में होनेवाली एक प्रकार की देव-कपास। खुंगी।
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कील-मुद्रा  : स्त्री० [सं० मध्य० स०]=कीलाक्षर। (लिपि)।
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कीलक  : वि० [सं०√कील्+ण्वुल-अक] १. कीलन करनेवाला। २. कीलनेवाला। पुं० १. बड़ी कील या काँटा। २. गौएँ आदि बाँधने का खूँटा। ३. ऐसा यंत्र या साधन, जो किसी का प्रभाव या शक्ति रोककर उसे व्यर्थ कर दे। ४. ज्योतिष में ६॰ संवत्सरों में से बयालीसवाँ संवत्सर। ५. मंच का मध्य भाग। ६. एक तांत्रिक देवता। ७. दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के समय पढ़ा जानेवाला एक स्तव या स्त्रोत। ८. एक प्रकार के केतु या पुच्छल तारे।
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कीलन  : पुं० [सं०√कील्+ल्युट-अन] १. कील लगाकर बाँधने या रोकने की क्रिया या भाव। २. किसी क्रिया, गति या शक्ति को पूरी तरह से निष्फल या व्यर्थ करना। ३. वह उपचार जिससे किसी मंत्र की शक्ति रोककर व्यर्थ कर दी जाती है।
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कीलना  : स० [सं० कीलन] १. किसी चीज में कील अथवा कील जैसी कोई नुकीली वस्तु गाड़ना या ठोंकना। २. दो वस्तुओं को जोड़ने के लिए उसमें कील आदि ठोंकना। ३. कील आदि ठोंककर किसी चीज का मुँह बन्द करना। जैसे—तोप में कुंदा कीलना, बोतल में काग कीलना। ४. किसी की आगे बढ़ती हुई गति या शक्ति को बीच में रोकना। जैसे—मंत्र-बल से साँप को कीलना। उदाहरण—जानत हौं कलि तेरेऊ मनु-गन कीले।—तुलसी। ५. बहुत सी चीजों को एक में बाँधना, मिलाना या लगाना। उदाहरण—आधा बाजा, आधा गोला। सब को लेकर एक में कीला।—‘दफ्तर’ की पहेली।
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कीला  : पुं० [सं० कील] [स्त्री० अल्पा० कीली] १. बड़ी और मोटी। कील। जैसे—चक्की या चाक में का कीला। २. अर्गल। ब्योंड़ा।
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कीलाक्षर  : पुं० [सं० कील-अक्षर, मध्य० स०] एक प्रकार की बहुत पुरानी लिपि, जिसके अक्षर देखने में कील या काँटे के आकार-प्रकार के होते थे और जो किसी समय अक्कड़, असुरिया, ईरान बैबिलोन आदि देशों में प्रचलित थी। (क्यूनिफार्म)।
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कीलाल  : पुं० [सं० कील√अल् (गति)+अण्] १. पुराणानुसार देवताओं का एक पेय पदार्थ जो अमृत की तरह का कहा गया है। २. अमृत। ३. जल। पानी। ४. मधु। शहद। ५. खून। रक्त। ६. जानवर। पशु। वि० बन्धन काटने या दूर करनेवाला।
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कीलालप  : पुं० [सं० कीलाल√पा (पीना)+अण्] १. राक्षस। २. भ्रमर। भौंरा।
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कीलिका  : स्त्री० [सं० कील+कन्, टाप्, इत्व] १. वैद्यक में मनुष्य के शरीर की कुछ विशिष्ट हड्डियों, जो ऋषभ और नाराच से भिन्न प्रकार के स्नायुओं में बँधी हुई कही गई हैं। २. एक प्रकार का तीर या बाण।
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कीलित  : भू० कृ० [सं०√कील्+क्त] १. जिसमें कीलें जड़ी या लगी हो। २. जिसका प्रभाव या शक्ति किसी युक्ति से बाँध या रोक दी गई हो। जैसे—मंत्र-बल से कीलित सर्प।
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कीलिया  : पुं० [हि० कील] वह जो पुर या मोट चलाने के समय बैलों को हाँकता हो। पैरहा।
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कीली  : स्त्री० [सं० कील] १. छोटा कीला या खूँटा। २. किसी चक्र के बीच वाले छेद में लगी हुई कील या डंडा जिसके सहारे या चारों ओर वह चक्र घूमता है। ३. किसी प्रकार की वह केन्द्रीय शक्ति, जिसके बल पर उसके ऊपर बनी या लगी हुई चीज गोलाकार घूमती हो। धुरी। (एक्सिम) जैसे—पृथ्वी रात-दिन में एक बार अपनी कीली पर घूमती है। ४. छोटी अर्गला या ब्योंड़ा। ५. किसी चीज को बाँध या रोक रखनेवाली कोई चीज। उदाहरण—सुठि बँदि गाढ़ न निकसै कीली।—जायसी।
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