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काँटा  : पुं० [सं० कटक] [वि० कँटीला] १. कुछ विशिष्ट प्रकार के पेड़-पौधों की डालियों तनों,पत्तों आदि पर उगनेवाला वह कड़ा, नुकीला और लंबा अंश जो अधिकतर सीधा और कभी-कभी कुछ टेढ़ा या मुड़ा हुआ भी होता है और जिसमें मुख्यतः काठवाला तत्त्व प्रधान होता है। कंटक। (थार्न) जैसे—गुलाब, नागफली, बबूल बेर या बेल का काँटा या काँटे। विशेष—शरीर के किसी अंग में कांटा चुभ जाने पर उसमें तब तक जलन और पीड़ा होती है जब तक वह निकल नहीं जाता। मुहावरा—(मार्ग हृदय आदि में का) काँटा निकलना=कष्ट देनेवाली अड़न या बाधा (अथवा विरोधी या शत्रु) का अलग या दूर होना या किसी प्रकार नष्ट हो जाना कांटा-सा(या काँटे=सा) खटकना-उसी प्रकार कष्टदायक होना जिस प्रकार शरीर में गड़ा या चुभा हुआ काँटा होता है। जैसे—(क)उनका उस दिन का व्यवहार आजतक मुझे काँटे सा खटक रहा है। (ख) यह दुष्ट लड़का सब की आँखों में कांटे-सा खटकता है। (किसी वस्तु का) सूखकर काँटा होना=बहुत कड़ा या नुकीला होकर ऐसा होना कि गड़ने लगे अथवा ठीक तरह से काम न दे सके। (किसी व्यक्ति का) सूखकर काँटा होना=चिंता दुर्बलता रोग आदि के कारण सूखकर दुबला-पतला हो जाना। (किसी के लिए या रास्ते में) काँटे बिछाना या बोना=किसी के कार्य या मार्ग में अनेक प्रकार की बाधाएँ या विघ्न खड़े करना अर्थात् बहुत अधिक शत्रुता का व्यवहार करना। उदाहरण—जो तोकों काँटा बुवै,ताहि बोउ तू फूल।—कबीर। विशेष—इस मुहावरे का प्रयोग दूसरों के अतिरिक्त स्वयं अपने लिए भी होता है। जैसे—हम ने आप ही आप ही अपने रास्ते में काँटे बिछाये (या बोये) हैं। काँटों पर लोटना=प्रायः ईर्ष्या, द्वेष, संताप आदि के प्रसंगों में ऐसी मानसिक कष्टपूर्ण स्थिति में रहना या होना कि मानों बैठने रहने या सोने की जगह पर बहुत काँटे बिछे हों, अर्थात् बहुत अधिक मानसिक कष्ट भोगना। जैसे—मैं तो यहाँ काँटों पर लेटती हूँ और सौत वहाँ फूलों से तुलती है। स्त्रियाँ। कांटों में घसीटना=(क) दूसरे के पक्ष में किसी को बहुत अधिक मानसिक या शारीरिक कष्ट पहुँचाना। (ख) स्वयं अपने पक्ष में विशेष आदर, प्रशंसा, सम्मान आदि होने पर अपनी नम्रता जतलाते हुए यह सूचित करना कि आप मुझे बहुत अधिक लज्जित कर रहे हैं। जैसे—आप तो मेरी इतनी बड़ाई करके मुझे काँटों में घसीटते हैं। पद—कांटे पर की ओस=बहुत ही थोड़े समय तक टिकने या ठहरने वाला (अर्थात् क्षणभंगुर) वैभव सुख या सुभीता। रास्ते का कांटा=किसी काम या बात में कष्टदायक रूप में सामने आनेवाली बाधा या व्यक्ति। जैसे—उस चुगलखोर के यहाँ से चले जाने से तुम्हारें रास्ते का काँटा निकल गया। २. उक्त के आधार पर जीभ अथवा शरीर के किसी अंग पर निकलनेवाला छोटा नुकीला अंकुर जो प्रायः फुंसी की तरह कष्टदायक होता और चुभता है। जैसे—व्यास रोग आदि के कारण गले या जीभ में कांटे पड़ना। (अर्थात् इन अंगों का सूखकर कड़ा और खुरदुरा हो जाना।) विशेष—प्रायः पशु-पक्षियों के गले में या जीभ पर रोग के रूप में इस प्रकार के काँटे निकल आते हैं; और यदि उपचार या चिकित्सा करके वे निकाले या नष्ट न किये जाएँ तो उनके कारण पशु-पक्षी मर भी जाते हैं। मुहावरा—(पशु या पक्षी को) कांटा लगना=उक्त प्रकार का रोग होना। ३. [स्त्री० अल्पा० कँटिया, काँटी] वानस्पतिक कांटे के आकार या रूप के आधार पर किसी धातु विशेषतः लोहे का वह पतला लम्बा टुकड़ा जिसका एक सिरा नुकीला और दूसरा चपटा होता है और जिसका उपयोग किसी कड़ी चीज को वैसी ही दूसरी चीज पर ठोंककर जड़ने या बैठाने के लिए होता है। कील। (नेल) ४. उक्त के आकार-प्रकार की कोई कड़ी, नुकीली और लंबी चीज। जैसे—साही नामक जंतु के शरीर पर काँटे घड़ी में लगे हुए घंटा, मिनट आदि बतलाने वाले काँटे, तराजू की डंडी के ऊपर बीचोंबीच लगा हुआ काँटा जो तौल की अधिकता और न्यूनता सूचित करता है। ५. उक्त के आधार पर किसी प्रकार का तराजू विशेषतः चाँदी, सोना, हीरे आदि जवाहिरात तौलने का छोटा तराजू। (स्केल) उदाहरण—मैं तौल लिया करती हूँ नजरों में हर इक को। काँटा सी हूँ, आँखें हैं तराजू से जियादह।—कोई शायर। मुहावरा—काँटे की तौल=हर तरह से बिलकुल ठीक, पक्का या पूरा। न तो आवश्यकता औचित्य आदि से कुछ भी कम और न कुछ भी अधिक। जैसे—आपकी हर बात कांटे की तौल होती है। ६. अँकुड़े या अँकुसी की तरह की कोई ऐसी कड़ी और नुकीली चीज जिसका सिरा कुछ झुका या मुड़ा हुआ हो। जैसे—कमीज या कोट के बटन, लगाने के काँटे, स्त्रियों के कान या नाक में पहनने के काँटे, मछली फँसाने का काँटा, कुएँ में गिरा हुआ डोल या लोटा निकालने का काँटा, पटहारों का गहने गूँथने का काँटा आदि। मुहावरा—काँटा डालना या लगाना=(क) जलाशय में से मछली फँसाने या कुएँ में से लोटा निकालने के लिए उसमें काँटा डालना। (ख) लाक्षणिक रूप में किसी को अपने जाल या फंदे में फँसाने के लिए कोई युक्ति करना। ७. पंजे के आकार का खेतिहारों का काठ का एक औजार जिससे वे घास भूसा इधर-उधर हटाते हैं। ८. उक्त प्रकार या रूप का धातु का एक छोटा उपकरण जिससे उठा-उठाकर पाश्चात्य देशों के लोग भोजन के समय चीजें खाते हैं। जैसे—इतना पढ़-लिखकर तुमने भी बस छुरी काँटे से खाना ही सीखा है। ९. एक प्रकार की आतिशबाजी जिसमें एक लम्बी लकड़ी के सिरे पर दोनों ओर दो डालें लगी रहती हैं। १॰. गणित में वह क्रिया जिससे यह जाना जाता है कि जो गणना की गई है वह ठीक है या नहीं। ११. उक्त के आधार पर गुणन-फल की शुद्धि की परीक्षा के लिए की जानेवाली वह क्रिया जिसके लिए पहले एक खडी़ लकीर बनाकर फिर उसे बेड़ी लकीर से काटते हैं। १२. कोई ऐसी प्रतियोगिता जो ईर्ष्या,द्वेष या वैर भाव से की जाय अथवा जिसका उद्देश्य प्रतियोगी को हराने के सिवा और कुछ न हो। जैसे—पहलवानों की काँटे की कुश्ती। अर्थात् ऐसी कुश्ती जिसमें वे सारी शक्ति लगाकर एक दूसरे को हराने का प्रयत्न करते हों। १३. किसी प्रकार के काँटे से अथवा किसी प्रकार की प्रतियोगिता में लगा या सहा हुआ कोई आघात या वार। १४. कैदियों को पहनाई जानेवाली हथकड़ी, बेड़ी और डंडा। मुहावरा—काँटा खाना=(क)किसी प्रकार की प्रतियोगिता में बुरी तरह से परास्त होना। (ख) कैद की सजा भुगतना जैसे—अभी तो हाल में वह कांटा खाकर आया है।
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काँटा-चूहा  : पुं० [हिं० काँटा+चूहा] एक छोटा जानवर जिसकी पीठ छोटे-छोटे काँटों से भरी होती है।
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कांटा-बाँस  : पुं० [हिं० काँटा+बाँस] एक प्रकार का कँटीला बाँस। मगर बांस। नाल बाँस।
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