शब्द का अर्थ
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अस्थि :
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स्त्री० [सं० √अस् (फेंकना)+क्थिन्] रीढ़वाले जीवों के शरीर के वे विशिष्ट कड़े अंश जो सम्मिलित रूप से कंकाल या ढाँचा खड़ा करते हैं। हड्डी। (बोन) |
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अस्थि-कुंड :
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पुं० [ष० त०] पुराणों के अनुसार एक नरक का नाम जो हड्डियों से भरा हुआ है। |
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अस्थि-तुंड :
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पुं० [ब० स०] चिड़िया। पक्षी। |
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अस्थि-तेज (स्) :
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पुं० [ष० त०] हड्डियों के अंदर का गूदा। मज्जा। |
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अस्थि-तैल :
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पुं० [ष० त०] एक प्रकार का बदबूदार तेल जो हड्डियों को उबाल कर तैयार किया जाता है। (बोन-ऑयल) |
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अस्थि-धन्वा (न्वन्) :
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पुं० [ब० स०] शिव। |
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अस्थि-पंजर :
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पुं० [ष० त०] शरीर की हड्डियों का ढाँचा। कंकाल। |
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अस्थि-प्रक्षेप :
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पुं० [ष० त०] =अस्थि-प्रवाह। |
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अस्थि-प्रवाह :
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पुं० [ष० त०] किसी मृत व्यक्ति का शव जलाने पर उसकी बची हुई अस्थियाँ किसी पवित्र नदी या जलाशय में डालना। |
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अस्थि-भंग :
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पुं० [ष० त०] अस्थि या हड्डी टूटना। (फ़ैक्चर) |
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अस्थि-भेद :
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पुं० [ष० त०] दे०=अस्थिभंग। |
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अस्थि-मज्जा :
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स्त्री [ष० त०] १. हड्डियों के अंदर रहनेवाली मज्जा। २. वज्र। |
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अस्थि-विग्रह :
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वि० [ब० स०] बहुत दुबला। पुं० शिव का भृंगी नामक गण। |
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अस्थि-शेष :
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वि० [ब० स०] जिसके शरीर में केवल हड्डियाँ रह गई हों। मांस या रक्त समाप्तप्राय हो। कंकाल। |
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अस्थि-संचय :
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पुं० [ष० त०] शव के जल चुकने पर बची-खुची हड्डियों को चुनने तथा उनको संग्रहीत करने का एक कृत्य। |
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अस्थि-संभव :
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पूं० [ब० स०] १. मज्जा। २. बज्र। |
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अस्थि-समर्पण :
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पुं० =अस्थि-प्रवाह। |
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अस्थिज :
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वि० [सं० अस्थि√जन् (पैदा होना)+ड] अस्थियों या हड्डियों से निकलने या बननेवाला। |
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अस्थिति :
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स्त्री० [सं० न० त०] १. स्थिति या ठहराव का अभाव। २. अस्थिरता। ३. चंचलता। स्त्री० =स्थिति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अस्थिभक्ष :
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वि० [सं० अस्थि√भक्ष् (खाना)+अण्] हड्डी खानेवाला। पुं० कुत्ता। |
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अस्थिभुक (ज्) :
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पुं० [अस्थि√भुज् (खाना)+क्विप्] कुत्ता। |
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अस्थिमाली (लिन्) :
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पुं० [अस्थि-माला, ष० त०+इनि] शिव। |
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अस्थिर :
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वि० [सं० न० त०] १. जिसमें स्थिरता न हो। जो स्थिर न हो। गतिमान या चंचल। २. किसी एक या निश्चित स्थान या सिद्धांत पर न टिकनेवाला। वि० =स्थिर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अस्थिर-सार :
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पुं० [ष० त०] मज्जा। |
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अस्थिरता :
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स्त्री० [सं० अस्थिर+तल्—टाप्] अस्थिर होने की अवस्था या भाव। (अन्स्टैबिलिटी) |
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