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अधिष्ठान  : पुं० [सं० अधि√स्था+ल्युट्-अन) १. वास स्थान। रहने का स्थान। २. नगर। ३. पड़ाव। ४. वह वस्तु जो किसी आरोपित तत्त्व या धर्म का आधार हो। जैसे—यदि रज्जु में सर्प का या सीपी में चाँदी का आरोप या भ्रम हो तो रज्ज या सीपी अधिष्ठान मानी जाएगी। ५. संस्था। ६. किसी संस्था के अधिकारियों और कार्य-कर्ताओं का वर्ग या समूह। (एस्टैब्लिश्मेन्ट) ७. शासन और उसके नियम, व्यवस्था आदि। ८. किसी वस्तु में स्वामित्व आदि का अधिकार प्राप्त होना अथवा ऐसा अधिकार किसी को दिया जाना। (वेस्टिंग) ९. लाभ आदि के लिए व्यापार में धन लगाना। (इन्वेस्टमेन्ट) १. गच जिसपर खंभा या पाया आदि बनाया जाए (वास्तु) ११. सांख्य में, भोक्ता और भोग (आत्मा, देह, इन्द्रिय-विषय) का संयोग।
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अधिष्ठान-शरीर  : पुं० (ष० त०) वह सूक्ष्म शरीर जो मरण के उपरान्त जीव को मिलता है। प्रेत शरीर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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