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                         रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (सुंदरकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (सुंदरकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। पंचम सोपान सुन्दरकाण्ड
दो०- एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर। 
जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर॥३५॥
    
    जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर॥३५॥
    इस प्रकार कृपानिधान श्रीरामजी समुद्रतटपर जा उतरे। अनेकों रीछ-वानर वीर
    जहाँ-तहाँ फल खाने लगे॥३५॥ 
    
    
उहाँ निसाचर रहहिं ससंका। 
जब तें जारि गयउ कपि लंका॥
निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा।
नहिं निसिचर कुल केर उबारा॥
    
    जब तें जारि गयउ कपि लंका॥
निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा।
नहिं निसिचर कुल केर उबारा॥
    वहाँ (लङ्का में) जब से हनुमानजी लङ्का को जलाकर गये; तबसे राक्षस भयभीत रहने
    लगे। अपने-अपने घरों में सब विचार करते हैं कि अब राक्षसकुल की रक्षा [का कोई
    उपाय] नहीं है॥१॥ 
    
    
 जासु दूत बल बरनि न जाई। 
तेहि आएँ पुर कवन भलाई।
दूतिन्ह सन सुनि पुरजन बानी।
मंदोदरी अधिक अकुलानी।
    
                            
                                          
                        तेहि आएँ पुर कवन भलाई।
दूतिन्ह सन सुनि पुरजन बानी।
मंदोदरी अधिक अकुलानी।
                                                
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