रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
|
0 |
भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
श्रीसीताजी का स्वप्न
उहाँ रामु रजनी अवसेषा।
जागे सीयँ सपन अस देखा।
सहित समाज भरत जनु आए।
नाथ बियोग ताप तन ताए।
जागे सीयँ सपन अस देखा।
सहित समाज भरत जनु आए।
नाथ बियोग ताप तन ताए।
उधर श्रीरामचन्द्रजी रात शेष रहते ही जागे। रातको सीताजीने ऐसा स्वप्न देखा [जिसे वे श्रीरामजीको सुनाने लगीं] मानो समाजसहित भरतजी यहाँ आये हैं। प्रभुके वियोगकी अग्रिसे उनका शरीर संतप्त है।।२।।
सकल मलिन मन दीन दुखारी।
देखीं सासु आन अनुहारी॥
सुनि सिय सपन भरे जल लोचन।
भए सोचबस सोच बिमोचन।
देखीं सासु आन अनुहारी॥
सुनि सिय सपन भरे जल लोचन।
भए सोचबस सोच बिमोचन।
सभी लोग मनमें उदास, दीन और दु:खी हैं। सासुओंको दूसरी ही सूरतमें देखा। सीताजीका स्वप्न सुनकर श्रीरामचन्द्रजीके नेत्रोंमें जल भर आया और सबको सोचसे छुड़ा देनेवाले प्रभु स्वयं [लीलासे] सोचके वश हो गये ॥३॥
लखन सपन यह नीक न होई।
कठिन कुचाह सुनाइहि कोई॥
अस कहि बंधु समेत नहाने।
पूजि पुरारि साधु सनमाने॥
कठिन कुचाह सुनाइहि कोई॥
अस कहि बंधु समेत नहाने।
पूजि पुरारि साधु सनमाने॥
[और बोले-] लक्ष्मण ! यह स्वप्न अच्छा नहीं है। कोई भीषण कुसमाचार (बहुत ही बुरी खबर) सुनावेगा। ऐसा कहकर उन्होंने भाईसहित स्नान किया और त्रिपुरारि महादेवजी का पूजन करके साधुओं का सम्मान किया ॥४॥
|
लोगों की राय
No reviews for this book