आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
|
0 |
भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- साँझ समय सानंद नृपु, गयउ कैकई गेहँ।
गवनु निठुरता निकट किय, जनु धरि देह सनेहँ॥२४॥
गवनु निठुरता निकट किय, जनु धरि देह सनेहँ॥२४॥
सन्ध्याके समय राजा दशरथ आनन्द के साथ कैकेयी के महल में गये।
मानो साक्षात् स्नेह ही शरीर धारण कर निष्ठुरताके पास गया हो!॥ २४॥
कोपभवन सुनि सकुचेउ राऊ।
भय बस अगहुड़ परइ न पाऊ॥
सुरपति बसइ बाहँबल जाकें।
नरपति सकल रहहिं रुख ताकें।
भय बस अगहुड़ परइ न पाऊ॥
सुरपति बसइ बाहँबल जाकें।
नरपति सकल रहहिं रुख ताकें।
कोपभवन का नाम सुनकर राजा सहम गये। डर के मारे उनका पाँव आगे को
नहीं पड़ता। स्वयं देवराज इन्द्र जिनकी भुजाओंके बलपर [राक्षसों से निर्भय
होकर] बसता है और सम्पूर्ण राजा लोग जिनका रुख देखते रहते हैं,॥१॥
सो सुनि तिय रिस गयउ सुखाई।
देखहु काम प्रताप बड़ाई॥
सूल कुलिस असि अँगवनिहारे।
ते रतिनाथ सुमन सर मारे॥
देखहु काम प्रताप बड़ाई॥
सूल कुलिस असि अँगवनिहारे।
ते रतिनाथ सुमन सर मारे॥
वही राजा दशरथ स्त्रीका क्रोध सुनकर सूख गये। कामदेवका प्रताप
और महिमा तो देखिये। जो त्रिशूल, वज्र और तलवार आदिकी चोट अपने अङ्गोंपर
सहनेवाले हैं, वे रतिनाथ कामदेवके पुष्पबाणसे मारे गये॥२॥
सभय नरेसु प्रिया पहिं गयऊ।
देखि दसा दुखु दारुन भयऊ॥
भूमि सयन पटु मोट पुराना।
दिए डारि तन भूषन नाना॥
देखि दसा दुखु दारुन भयऊ॥
भूमि सयन पटु मोट पुराना।
दिए डारि तन भूषन नाना॥
राजा डरते-डरते अपनी प्यारी कैकेयी के पास गये। उसकी दशा देखकर
उन्हें बड़ा ही दुःख हुआ। कैकेयी जमीन पर पड़ी है। पुराना मोटा कपड़ा पहने
हुए है। शरीर के नाना आभूषणों को उतारकर फेंक दिया है॥३॥
कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी।
अनअहिवातु सूच जनु भाबी॥
जाइ निकट नृपु कह मृदु बानी।
प्रानप्रिया केहि हेतु रिसानी।।
अनअहिवातु सूच जनु भाबी॥
जाइ निकट नृपु कह मृदु बानी।
प्रानप्रिया केहि हेतु रिसानी।।
उस दुर्बुद्धि कैकेयीको यह कुवेषता (बुरा वेष) कैसी फब रही है,
मानो भावी विधवापनकी सूचना दे रही हो। राजा उसके पास जाकर कोमल वाणीसे बोले
हे प्राणप्रिये! किसलिये रिसाई (रूठी) हो?॥४॥
छं०- केहि हेतु रानि रिसानि परसत पानि पतिहि नेवारई।
मानहुँ सरोष भुअंग भामिनि बिषम भाँति निहारई॥
दोउ बासना रसना दसन बर मरम ठाहरु देखई।
तुलसी नृपति भवतब्यता बस काम कौतुक लेखई॥
मानहुँ सरोष भुअंग भामिनि बिषम भाँति निहारई॥
दोउ बासना रसना दसन बर मरम ठाहरु देखई।
तुलसी नृपति भवतब्यता बस काम कौतुक लेखई॥
'हे रानी! किसलिये रूठी हो?' यह कहकर राजा उसे हाथ से स्पर्श
करते हैं तो वह उनके हाथ को [झटककर हटा देती है और ऐसे देखती है मानो क्रोध
में भरी हुई नागिन क्रूर दृष्टिसे देख रही हो। दोनों [वरदानोंकी] वासनाएँ उस
नागिन की दो जीभें हैं और दोनों वरदान दाँत हैं; वह काटनेके लिये मर्मस्थान
देख रही है। तुलसीदासजी कहते हैं कि राजा दशरथ होनहार के वश में होकर इसे (इस
प्रकार हाथ झटकने और नागिन की भाँति देखने को) कामदेवकी क्रीडा ही समझ रहे
हैं।
सो०- बार बार कह राउ सुमुखि सुलोचनि पिकबचनि।
कारन मोहि सुनाउ गजगामिनि निज कोप कर॥२५॥
कारन मोहि सुनाउ गजगामिनि निज कोप कर॥२५॥
राजा बार-बार कह रहे हैं-हे सुमुखी! हे सुलोचनी! हे कोकिलबयनी! हे गजगामिनी! मुझे अपने क्रोधका कारण तो सुना॥२५॥
|
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
लोगों की राय
No reviews for this book