आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- रचि पचि कोटिक कुटिलपन, कीन्हेसि कपट प्रबोधु।
कहिसि कथा सत सवति कै, जेहि बिधि बाढ़ बिरोधु॥१८॥
कहिसि कथा सत सवति कै, जेहि बिधि बाढ़ बिरोधु॥१८॥
इस तरह करोड़ों कुटिलपन की बातें गढ़-छोलकर मन्थराने कैकेयीको
उलटा सीधा समझा दिया और सैकड़ों सौतों की कहानियाँ इस प्रकार [बना-बनाकर]
कहीं जिस प्रकार विरोध बढ़े॥१८॥
भावी बस प्रतीति उर आई।
पूँछ रानि पुनि सपथ देवाई॥
का पूँछहु तुम्ह अबहुँ न जाना।
निज हित अनहित पसु पहिचाना॥
पूँछ रानि पुनि सपथ देवाई॥
का पूँछहु तुम्ह अबहुँ न जाना।
निज हित अनहित पसु पहिचाना॥
होनहारवश कैकेयीके मनमें विश्वास हो गया। रानी फिर सौगन्ध
दिलाकर पूछने लगी। [मन्थरा बोली-] क्या पूछती हो? अरे, तुमने अब भी नहीं
समझा? अपने भले-बुरेको (अथवा मित्र-शत्रुको) तो पशु भी पहचान लेते हैं॥१॥
भयउ पाखु दिन सजत समाजू।
तुम्ह पाई सुधि मोहि सन आजू॥
खाइअ पहिरिअ राज तुम्हारें।
सत्य कहें नहिं दोषु हमारें।
तुम्ह पाई सुधि मोहि सन आजू॥
खाइअ पहिरिअ राज तुम्हारें।
सत्य कहें नहिं दोषु हमारें।
पूरा पखवाड़ा बीत गया सामान सजते और तुमने खबर पायी है आज
मुझसे! मैं तुम्हारे राज में खाती-पहनती हूँ, इसलिये सच कहने में मुझे कोई
दोष नहीं है॥२॥
जौं असत्य कछु कहब बनाई।
तौ बिधि देइहि हमहि सजाई॥
रामहि तिलक कालि जौं भयऊ।
तुम्ह कहुँ बिपति बीजु बिधि बयऊ।
तौ बिधि देइहि हमहि सजाई॥
रामहि तिलक कालि जौं भयऊ।
तुम्ह कहुँ बिपति बीजु बिधि बयऊ।
यदि मैं कुछ बनाकर झूठ कहती होऊँगी तो विधाता मुझे दण्ड देगा।
यदि कल राम को राजतिलक हो गया तो [समझ रखना कि तुम्हारे लिये विधाता ने
विपत्तिका बीज बो दिया॥३॥
रेख खँचाइ कहउँ बलु भाषी।
भामिनि भइहु दूध कइ माखी॥
जौं सुत सहित करहु सेवकाई।
तौ घर रहहु न आन उपाई॥
भामिनि भइहु दूध कइ माखी॥
जौं सुत सहित करहु सेवकाई।
तौ घर रहहु न आन उपाई॥
मैं यह बात लकीर खींचकर बलपूर्वक कहती हूँ, हे भामिनी! तुम तो
अब दूध की मक्खी हो गयी ! (जैसे दूधमें पड़ी हुई मक्खीको लोग निकालकर फेंक
देते हैं, वैसे ही तुम्हें भी लोग घर से निकाल बाहर करेंगे) जो पुत्रसहित
[कौसल्याकी] चाकरी बजाओगी तो घरमें रह सकोगी; [अन्यथा घर में रहनेका] दूसरा
उपाय नहीं॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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