आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड

रामराज्याभिषेक की तैयारी, देवताओं की व्याकुलता तथा सरस्वतीजी से उनकी प्रार्थना


दो०- बिपति हमारि बिलोकि बड़ि, मातु करिअसोइ आजु।
रामु जाहिं बन राजु तजि, होइ सकल सुरकाजु॥११॥

[वे कहते हैं-] हे माता! हमारी बड़ी विपत्ति को देखकर आज वही कीजिये जिससे श्रीरामचन्द्रजी राज्य त्यागकर वन को चले जायँ और देवताओंका सब कार्य सिद्ध हो॥११॥


सुनि सुर बिनय ठाढ़ि पछिताती।
भइउँ सरोज बिपिन हिमराती॥
देखि देव पुनि कहहिं निहोरी।
मातु तोहि नहिं थोरिउ खोरी।


देवताओं की विनती सुनकर सरस्वतीजी खड़ी-खड़ी पछता रही हैं कि [हाय!] मैं कमलवन के लिये हेमन्त-ऋतु की रात हुई। उन्हें इस प्रकार पछताते देखकर देवता फिर विनय करके कहने लगे- हे माता! इसमें आपको जरा भी दोष न लगेगा॥१॥


बिसमय हरष रहित रघुराऊ।
तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ॥
जीव करम बस सुख दुख भागी।
जाइअ अवध देव हित लागी॥


श्रीरघुनाथजी विषाद और हर्ष से रहित हैं। आप तो श्रीरामजी के सब प्रभाव को जानती ही हैं। जीव अपने कर्मवश ही सुख-दुःख का भागी होता है। अतएव देवताओं के हित के लिये आप अयोध्या जाइये॥२॥


बार बार गहि चरन सँकोची।
चली बिचारि बिबुध मति पोची।
ऊँच निवासु नीचि करतूती।
देखि न सकहिं पराइ बिभूती॥


बार-बार चरण पकड़कर देवताओं ने सरस्वती को संकोच में डाल दिया। तब वह यह विचारकर चली कि देवताओं की बुद्धि ओछी है। इनका निवास तो ऊँचा है, पर इनकी करनी नीची है। ये दूसरे का ऐश्वर्य नहीं देख सकते॥३॥


आगिल काजु बिचारि बहोरी।
करिहहिं चाह कुसल कबि मोरी॥
हरषि हृदयँ दसरथ पुर आई।
जनु ग्रह दसा दुसह दुखदाई॥

 
परंतु आगे के काम का विचार करके (श्रीरामजी के वन जाने से राक्षसों का वध होगा, जिससे सारा जगत् सुखी हो जायगा) चतुर कवि [श्रीरामजी के वनवास के चरित्रों का वर्णन करने के लिये] मेरी चाह (कामना) करेंगे। ऐसा विचारकर सरस्वती हृदय में हर्षित होकर दशरथजी की पुरी अयोध्या में आयीं, मानो दुःसह दुःख देने वाली कोई ग्रहदशा आयी हो॥४॥


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    अनुक्रम

  1. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
  2. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
  3. अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
  4. अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
  5. अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
  6. अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
  7. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
  8. अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
  9. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
  10. अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
  11. अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
  12. अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
  13. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
  14. अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
  15. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
  16. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
  17. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
  18. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
  19. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
  20. अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
  21. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
  22. अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
  23. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
  24. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
  25. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
  26. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
  27. अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
  28. अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना

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