आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- मातु सकल मोरे बिरहँ, जेहिं न होहिं दुख दीन।।
सोइ उपाउ तुम्ह करेहु सब, पुर जन परम प्रबीन॥८०॥
सोइ उपाउ तुम्ह करेहु सब, पुर जन परम प्रबीन॥८०॥
हे परम चतुर पुरवासी सज्जनो! आपलोग सब वही उपाय करियेगा जिससे मेरी सब माताएँ मेरे विरहके दुःखसे दु:खी न हों॥८०॥
एहि बिधि राम सबहि समुझावा।
गुर पद पदुम हरषि सिरु नावा॥
गनपति गौरि गिरीसु मनाई।
चले असीस पाइ रघुराई॥
गुर पद पदुम हरषि सिरु नावा॥
गनपति गौरि गिरीसु मनाई।
चले असीस पाइ रघुराई॥
इस प्रकार श्रीरामजीने सबको समझाया और हर्षित होकर गुरुजीके चरणकमलों में सिर नवाया। फिर गणेशजी, पार्वतीजी और कैलासपति महादेवजीको मनाकर तथा आशीर्वाद पाकर श्रीरघुनाथजी चले॥१॥
राम चलत अति भयउ बिषादू।
सुनि न जाइ पुर आरत नादू॥
कुसगुन लंक अवध अति सोकू।
हरष बिषाद बिबस सुरलोकू॥
सुनि न जाइ पुर आरत नादू॥
कुसगुन लंक अवध अति सोकू।
हरष बिषाद बिबस सुरलोकू॥
श्रीरामजीके चलते ही बड़ा भारी विषाद हो गया। नगरका आर्तनाद (हाहाकार) सुना नहीं जाता। लङ्का में बुरे शकुन होने लगे, अयोध्या में अत्यन्त शोक छा गया और देवलोक में सब हर्ष और विषाद दोनों के वशमें हो गये। [हर्ष इस बातका था कि अब राक्षसों का नाश होगा और विषाद अयोध्यावासियों के शोक के कारण था]॥२॥
गइ मुरुछा तब भूपति जागे।
बोलि सुमंत्रु कहन अस लागे॥
रामु चले बन प्रान न जाहीं।
केहि सुख लागि रहत तन माहीं॥
बोलि सुमंत्रु कहन अस लागे॥
रामु चले बन प्रान न जाहीं।
केहि सुख लागि रहत तन माहीं॥
मूर्छा दूर हुई, तब राजा जागे और सुमन्त्र को बुलाकर ऐसा कहने लगे-श्रीराम वन को चले गये, पर मेरे प्राण नहीं जा रहे हैं। न जाने ये किस सुखके लिये शरीर में टिक रहे हैं॥३॥
एहि तें कवन ब्यथा बलवाना।
जो दुखु पाइ तजहिं तनु प्राना॥
पुनि धरि धीर कहइ नरनाहू।
लै रथु संग सखा तुम्ह जाहू॥
जो दुखु पाइ तजहिं तनु प्राना॥
पुनि धरि धीर कहइ नरनाहू।
लै रथु संग सखा तुम्ह जाहू॥
इससे अधिक बलवती और कौन-सी व्यथा होगी जिस दुःखको पाकर प्राण शरीर को छोड़ेंगे। फिर धीरज धरकर राजा ने कहा-हे सखा! तुम रथ लेकर श्रीराम के साथ जाओ॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
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- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
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- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
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- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
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- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का सहमना
अनुक्रम
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